नई दिल्ली। लोग कह रहे थे कि हरियाणा बदल रहा है, लेकिन कोई विश्वास नहीं कर पा रहा था, लेकिन ताजा आंकडों ने पूरी सोच को ही बदल कर रख दिया है। बेटियों से परहेज करने की सोच के चलते बेटे और बेटियों में बढ़ता लिंगानुपात अब कुछ सिमटने लगा है।
जिस हरियाणा के बारे में कई दशकों से लोग 1000 लड़कों पर 860-870 लड़कियों के अनुपात पर सिहरने लगे थे और लड़कों के लिए दूसरे राज्यों से बहुएं लाने की प्रथा शुरू हो चुकी थी। हरियाणा पर बनने वाली फिल्मों में भी पहला सीन बेटी को कोख में मारने का ही होता था, वहाँ अब तश्वीर बदल रही है। पिछले 5 साल में सरकार और समाज के भागीरथ प्रयासों से 1000 बेटों के सापेक्ष बेटियांे की सं 871 से बढ़ कर 933 तक हो गयी है।
निश्चित रूप से ये हरियाणा के लिए ही नहीं पूरे देश और समाज के लिए एक अच्छी खबर है। इसे बढ़ते लिंगानुपात की तपती धरती पर सोच परिवर्तन की ठंडी बयार के रूप में देखा जा सकता है। अब समाजसेवियों और कलमकारों का दायित्व है कि इस बयार को थमने न दें।