मैं मां हूं, मातृत्व में नहीं कोई भेदभाव
मां तो मां होती है। मां का वात्सल्य ऐसा है कि उसे ईश्वर से भी बड़ा दर्जा दिया गया है
मुजफ्फरनगर। मां तो मां होती है। मां का वात्सल्य ऐसा है कि उसे ईश्वर से भी बड़ा दर्जा दिया गया है। मां का मातृत्व ही उसे सबसे विशिष्ट बनाता है। मां के प्रेम में न तो कोई छल-कपट होता है और न ही किसी तरह का कोई भेदभाव। उससे अपने बच्चों के लिए जो भी हो सकता है, वह करती है। यह शक्ति उसे ईश्वर ने प्रदान की है, जिसका वह बखूबी निर्वहन करती है। मां के प्रेम में कोई भेदभाव नहीं होता, इसका सबसे सटीक उदाहरण सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक वीडियो में देखने को मिल रहा है।
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रही है। इसमें एक गाय को दिखाया गया है, जो ठंड के मौसम में धरती पर बैठी हुई है। इस तरह की बात कोई रेयर नहीं है, वरन आम जिंदगी में भी यह देखने को मिल जाता है। लेकिन जो इस वीडियो में दिखाया गया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। श्वान के छोटे-छोटे बच्चे जो शायद अपनी मां के न आने से भूख से व्याकुल थे, उक्त गाय के पास चले गये। इतना ही नहीं, भूख से व्याकुल उक्त श्वान के छोटे-छोटे दुधमुंहे बच्चों ने गाय के थनों से दूध पीना शुरू कर दिया। इस पर गाय ने कोई विरोध नहीं किया, वरना अपने मातृत्व का अनूठा उदाहरण पेश करते हुए श्वान के बच्चों को दूध पिलाती रही। गाय चाहती, तो श्वान के बच्चों को डराकर हटा सकती थी। गाय और श्वान का कोई भी संबंध नहीं है। बावजूद इसके गाय ने अपने मातृत्व की ममता छलकाने में कोई भी कोताही नहीं की और जब तक बच्चों का पेट भर नहीं गया, वे गाय का दूध पीने में मशगूल रहे।
श्वान के बच्चों ने न तो अपनी मां और गाय में कोई भेद किया और न ही गाय ने अपने मातृत्व का अमृत छलकाने में किसी भी तरह की कोताही बरती। यह मानवता के लिए एक विशेष संदेश है। गाय ने जानवर होकर मानवता के जो आदर्श स्थापित किये हैं, उससे सभी मनुष्यों को एक सीख लेनी चाहिए। सबसे बड़ा धर्म मानवता का है, उसे सभी को निभाना चाहिए। बिना किसी भेदभाव के एक-दूसरे की सहायता करना, जरूरतमंदों की जरूरत को पूर्ण करने में अपना सहयोग करना यह मानवता की पहचान है। जब पशु, जो कि मनुष्य की तरह नहीं सोच सकते, मानवता का इतना बड़ा उदाहरण पेश कर सकते हैं, तो फिर मानव क्यों नहीं। गाय के मातृत्व, निश्छल प्रेम से सभी को सीख लेने की महती आवश्यकता है।