किसानों ने खोयी सहानुभूति
किसान नेता इसे ट्रैक्टर परेड का नाम दे रहे थे लेकिन उसी समय यह आशंका हो रही थी कि अलग अलग किसान नेताओं के इरादे भी अलग अलग हैं
नई दिल्ली। तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी जामा पहनाने की मांग को लेकर लगभग दो महीने से आंदोलन कर रहे किसानों ने जनता की सहानुभूति खो दी है। गणतंत्र दिवस पर किसानों के ट्रैक्टर मार्च का कोई औचित्य नहीं था। हालांकि कुछ किसान नेता इसे ट्रैक्टर परेड का नाम दे रहे थे लेकिन उसी समय यह आशंका हो रही थी कि अलग अलग किसान नेताओं के इरादे भी अलग अलग हैं। ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा में यही आशंका सच साबित हुई।
किसानों ने परेड रूट का उल्लंघन करते हुए लालकिले के अंदर प्रवेश करने का प्रयास किया। तोड़फोड़, मारपीट, आगजनी और अराजकता ने किसान आंदोलन पर लगाए जा रहे सभी आरोप सच साबित कर दिये। हम सब लोग उसदिन गोमतीनगर के पत्रकार पुरम स्थित अखिलेश मिश्र पार्क में गणतंत्र दिवस समारोह मना रहे थे। आयोजन स्थल पर वरिश्ठ पत्रकार पीके राय की बेटी रिआ दिल्ली से आयी थी। उसने किसानों की इस अराजकता पर सपाट प्रतिक्रिया यही दी कि वे किसान हैं ही नहीं। किसान, जो अन्नदाता हैं, भगवान विष्णु ने जिसे अपना सबसे बडा भक्त बताकर नारद मुनि को शिक्षा दी थी, वह किसान आज अपने कथित रहनुमाओं के कदाचरण से शर्मिन्दा हुआ है। किसान सचमुच दुखी है। उसने अपना धान मजबूरी में गांव के ही बनिये को 800 रुपए प्रति कुंतल के भाव से बेचा क्योंकि सरकारी खरीद केन्द्र पर उसे एमएसपी 1800 रुपये प्रति कुंतल नहीं मिल पायी लेकिन वह ऐसे किसान नेताओं से भी शर्मिन्दा है जिन्होंने दिल्ली की सड़कों पर हमारे महान राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर फर अशुभ आचरण किया है।
गणतंत्र दिवस 26 जनवरी, 2021 को देश की राजधानी दिल्ली में किसानों द्वारा निकाली गई ट्रैक्टर परेड के दौरान सुरक्षाबलों और किसानों के बीच भारी संघर्ष देखने को मिला। ये कथित किसान देश के सामान्य किसानों के हित को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन को लेकर लगभग दो महीने बीत चुके हैं। सरकार के मंत्री 11दौर की वार्ता भी कर चुके हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी हस्तक्षेप किया और तीनों कानून लागू करने से एक सीमित समय तक रोक भी लगा दी थी लेकिन किसान नेता तीनों कानूनों को वापस लेने की जिद पर अड़े हैं। इसी बीच गणतंत्र दिवस आ गया। आंदोलनकारी किसानों ने ट्रैक्टर परेड निकालने की घोषणा की। इस परेड के लिए पुलिस की अनुमति लेने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था। पुलिस ने तय समय और तय मार्ग से परेड निकालने की अनुमति भी दे दी थी।
इस प्रकार संघर्ष की कोई गुंजाइश नहीं थी, फिर भी अप्रिय स्थिति क्यों आयी। परेड निकालने के दौरान मध्य एवं बाहरी दिल्ली के इलाकों में हालात काफी गंभीर बने रहे। दिनभर किसान और दिल्ली पुलिस के जवानों के साथ चले इस गतिरोध की वजहें आखिर क्या-क्या रहीं और अभी तक शांतिपूर्वक तरीके से चले किसान आंदोलन में किसानों की तरफ से क्या गलतियां रहीं, इस पर ध्यान देना जरूरी है। बताया गया कि टकराव की स्थिति तब उत्पन्न हुई, जब दिल्ली पुलिस से सहमति के बाद तय समय और रूटों का किसानों द्वारा उल्लंघन करना शुरू कर दिया गया। सुबह सिंघु, टिकरी, गाजीपुर बॉर्डर एवं अन्य जगहों से किसानों का ट्रैक्टर काफिला निकला, लेकिन वह अपने तय रूट से भटकते हुए दिल्ली में प्रवेश करने लगा। इस दौरान किसानों ने पुलिस द्वारा लगाए गए अवरोधकों को जबरन हटाना शुरू कर दिया। इससे सुरक्षाबलों एवं किसानों के बीच टकराव के हालात पैदा हो गए और दोनों पक्षों में भिड़ंत हो गई।
किसान तय मार्ग का उल्लंघन करके दिल्ली के अंदरूनी इलाकों जैसे पूर्वी दिल्ली के बाहरी मुख्घ्य मार्ग, आईटीओ, लाल किला और उसके आसपास के मुख्य मार्ग, नांगलोई, पश्चिमी एवं बाहरी दिल्ली में हजारों ट्रैक्टर लेकर प्रवेश कर गए। इससे पूरी दिल्ली की यातयात एवं कानून-व्यवस्था चरमरा गई। दिल्ली पुलिस का कहना है कि किसानों ने उन सभी शर्तों का उल्लंघन किया, जोकि परेड को अनुमति देते हुए लगाई गई थीं। खुद पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव ने भी कहा कि कई दौर की बैठकों के बाद ट्रैक्टर रैली के लिए समय और मार्गों को अंतिम रूप दिया गया था, लेकिन किसानों ने ट्रैक्टरों को उन मार्गों से हटा दिया और दिल्ली में प्रवेश कर गए। उनकी ओर से बर्बरता की गई, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बड़े पैमाने पर पब्लिक प्रोपर्टी को भी नुकसान पहुंचा है।
इसीलिए दिल्ली की सड़कों पर 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर हुई हिंसा की हर ओर आलोचना हो रही है। किसान ट्रैक्टर रैली के दौरान हुए उपद्रव में दिल्ली पुलिस को भी निशाना बनाया गया। दिल्ली पुलिस ने इस हिंसा को लेकर जांच तेज कर दी है। दिल्ली पुलिस के सूत्रों का कहना है कि सेंट्रल दिल्ली में हुई हिंसा में गैंगस्टर व एक्टिविस्ट लक्खा सदाना की भूमिका की जांच की जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक, सेंट्रल दिल्ली में लक्खा सदाना और उसके करीबियों पर दिल्ली पुलिस पर हमले की भूमिका सामने आयी है। ये सभी सेंट्रल दिल्ली में हुई हिंसा में सक्रिय थे। लक्खा सदाना पर पंजाब में 2 दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज हैं। इसमें गैंगस्टर एक्ट भी शामिल है। सदाना किसान आंदोलन में काफी दिनों से एक्टिव है। पुलिस अब ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई अराजकता में उसकी भूमिका को लेकर जांच कर रही है। पुलिस ने 26 जनवरी को हुए उग्र भीड़ के पुलिस पर हमले में अबतक 13 एफआईआर दर्ज की हैं जिसमें ईस्ट दिल्ली, द्वारका और पश्चिमी दिल्ली में 3-3 एफआईआर, 2 आउटर नार्थ, एक शाहदरा और एक नार्थ जिले में दर्ज हुई हैं जिनकी संख्या बढ़ सकती हैं। बलवा, सरकारी संपत्ति को नुकसान और हथियार लूटने जैसी धाराएं शामिल हैं जो दिल्ली के 6 जिलों में दर्ज की गई हैं जबकि 153 पुलिसकर्मियों के घायल होने की सूचना है। इस हिंसा को लेकर ईस्टर्न रेंज में पुलिस ने 4 मुकदमे दर्ज किए हैं। इसमें एक मामला पांडव नगर थाने में, दो गाजीपुर थाने में और एक सीमापुरी थाने में दर्ज किया गया है। पुलिस के मुताबिक उपद्रवियों ने 8 डीटीसी बसें, 17 पब्लिक व्हिकल, 4 कंटेनर, 300 से ज्यादा लोहे के बेरीकेड्स तोड़े हैं।
वहीं, 41 किसान यूनियनों का प्रतिनिधित्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा में लिप्त हुए प्रदर्शनकारियों से खुद को अलग कर लिया और आरोप लगाया कि परेड में कुछ असामाजिक तत्व घुस गए थे। किसान नेताओं के इतने भर स्पष्टीकरण से बात नहीं बनने वाली है। उन्होंने ट्रैक्टर परेड निकालने की जब घोषणा की थी, उनको तभी यह सुनिश्चित कर लेना था कि परेड के दौरान किसी भी प्रकार की अराजकता नहीं होगी। अब अराजकता हुई है तो इसकी जिम्मेदारी भी उन्हें ही लेनी होगी। अराजकतत्व उनकी नरेड में कैसे आ गये, यह किसान नेताओं को ही बताना होगा। (हिफी)