क्रिसमस पर उपहार के साथ करें यह काम

धर्म का मूल ही दया और दान है। इसी प्रकार इस्लाम धर्म में भी रमजान के महीने में जकात देने की परम्परा है।

Update: 2020-12-25 00:15 GMT

नई दिल्ली। दान-धर्म सभी धर्म सम्प्रदायों में एक प्रमुख अंग होता है। हिन्दू धर्म में तो दान को सर्वोत्तम कर्तव्य मानते हैं।   

धर्म का मूल ही दया और दान है। इसी प्रकार इस्लाम धर्म में भी रमजान के महीने में जकात देने की परम्परा है। यह जकात भी एक तरह का दान है जो जरूरतमंदों को आमतौर पर नकद रूप में  दिया जाता है। क्रिश्चियन धर्म में प्रभु ईसा मसीह का जन्म दिन 25 दिसम्बर को बड़े दिन के रूप में मनाते हैं। इस त्योहार में अन्य शिक्षाओं के साथ सेन्टा क्लाज के रूप में लोगों को उपहार बांटना सभी का ध्यान आकर्षित करता है। यह भी एक तरह का दान है। क्रिसमस के सम्बन्ध में एक लघु कहानी भी इस संदर्भ में कही जाती है।

यह चर्चित लघु कथा इस प्रकार है। क्रिसमस गैदरिंग पर एकांकी प्रस्तुत हो रहा था। जोसेफ गर्भवती मरियम को लेकर नाम लिखाने के लिए बेतलेहम गये। दरवाजे-दरवाजे, रात बिताने के लिए लालटेन लेकर आश्रय ढूंढ रहे थे। ठंड से शरीर ठिठुरा जा रहा था। उन्हें घर में जगह नहीं मिल रही थी। एक सराय के मालिक ने बेरहमी से कह दिया- घर में जगह नहीं है, कहीं और जाइए। ये वाक्य स्कूली छात्र ने सराय मालिक का किरदार निभाते तो कह दिया, पर वह छात्र भूल गया कि यह नाटक है और जोसेफ और गर्भवती महिला को तकलीफ से परेशान होते देख चिल्ला उठा- ''कृपया लौट आइए, मेरे घर में आपके रात बिताने के लिए काफी जगह है।'' नाटक का क्रम तो भंग हो गया, लेकिन सभी दर्शकों को एक हृदय स्पर्शी संदेश दे गया और वह है- 'देना', दूसरों पर उपकार करना, दूसरों की सेवा करना। अर्थात पूरे मन और दिल से देना, खुशी से देना, हाथ फैला कर देना, निःस्वार्थ भाव से देना, पाने की इच्छा किये बिना देना।

क्रिश्चियन धर्म के अनुसार पिता ईश्वर ने इकलौते पुत्र को मानव शरीर धारण कर इस दुनिया में भेजा, इसलिए कि संपूर्ण मानव जाति की मुक्ति हो उन्होंने इकलौते पुत्र को दान दे दिया. वे लोगों के बीच रहे और मानव मुक्ति हेतु संपूर्ण जीवन का बलिदान किया और बदले में वे हमसे बस इतना चाहते हैं कि हम बुराई से दूर रहें, पाप न करें और दूसरों की भलाई करते रहें। बाइबल के अनुसार, विनम्रता का अर्थ है- व्यक्ति का यह समझना कि वह ईश्वर की शक्ति और कृपा के बिना कुछ भी नहीं। धन्य मदर टेरेसा अनाथाश्रम के बच्चों एवं बीमार लोगों के लिए भीख मांगा करती थीं।

एक बार एक धनी व्यापारी के घर का दरवाजा खटखटाया। वह व्यक्ति भड़क गया। उसने मदर की हथेली पर थूक दिया। मदर थोड़ी देर चुपचाप रहीं, फिर दूसरी हथेली पसारते हुए कहा- सर, यह थूक मेरे लिए है, अब मेरे गरीब बच्चों के लिए कुछ दे दीजिए। वह धनी व्यक्ति मदर की विनम्रता देख अपनी करतूत पर शर्मिंदा हुआ। उसने माफी मांगी और उनका सबसे बड़ा परोपकारी एवं हितैषी बन गया। यीशु ख्रीस्त के जीवन-मार्गों पर चलने से स्वतः हम इन महान गुणों को अपना सकते हैं। क्रिसमस हमें ईश्वर की विनम्रता, दीनता और दयालुता, दानशीलता का प्रमाण देता है और हमें भी इन्हीं गुणों के साथ जीने का संदेश देता है।

क्रिसमस पर उपहार तो बांटें, साथ ही दान करें। बच्चे जो अपने बाल अधिकार से वंचित हैं, जिनके पास कॉपी, किताब, पेन, पेंसिल आदि नहीं हैं, उन्हें हम पढ़ाई की सामग्री दान करेंगे. संभव हो तो खरीद कर भी दान करेंगे, ताकि वे स्कूल जा सकें। शिक्षा का दान उत्तम दान माना जाता है. क्यों न हम अपने में प्रण करें कि हम कम-से-कम एक व्यक्ति को शिक्षित करेंगे. हर शिक्षित व्यक्ति सिर्फ एक बच्चे/अनपढ़ को शिक्षित करने का बीड़ा उठा ले, तो हमारे समाज, देश का कायाकल्प हो जायेगा। हम अपने पहनने के कपड़े, जो अच्छी स्थिति में हैं, उन्हें दान करें, चाहे वे यूनिफॉर्म के कपड़े या फिर अन्य कपड़े हों। जो निर्धन बच्चों के साथ-साथ दूसरे गरीबों के भी प्रयोग में आ सकें. फेंकने लायक कपड़े न दें, बल्कि ऐसे कपड़े दें, जिनको देने में दिल में दर्द का अनुभव हो। हम अपनी पॉकेट मनी से कटौती कर पैसे भी दान करें, जिनसे जरूरतमंदों की आवश्यकता की पूर्ति हो सके। पूरा न सही, कुछ अंश तक ही आवश्यकता की पूर्ति हो। इस तरह हम प्रभु ईशु के संदेश को दुनिया में फैला सकते हैं।

ईसा मसीह के जन्मदिन 25 दिसंबर को पूरी दुनिया में क्रिसमस डे के तौर पर मनाया जाता है। इसे बड़ा दिन भी कहते हैं. क्रिसमस के दिन लोग एक-दूसरे के साथ पार्टी करते हैं, घूमते हैं और चर्च में प्रेयर करते हैं साथ ही क्रिसमस डे पर बच्चों को मोजे में तोहफे दिए जाते हैं घर पर बने केक बनाए और खिलाए जाते हैं। जीसस क्रिस्ट को भगवान का बेटा कहा जाता है।

बाइबल में जीसस की कोई बर्थ डेट नहीं दी गई है, लेकिन फिर भी 25 दिसंबर को ही हर साल क्रिसमस मनाया जाता है। इस तारीख को लेकर कई बार विवाद भी हुआ। लेकिन 336 ई. पूर्व में रोमन के पहले ईसाई रोमन सम्राट के समय में सबसे पहले क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया गया। इसके कुछ सालों बाद पोप जुलियस ने आधिकारिक तौर पर जीसस के जन्म को 25 दिसंबर को ही मनाने का ऐलान किया।

इस अवसर पर क्रिसमस ट्री का भी महत्व है। क्रिसमस ट्री की शुरुआत उत्तरी यूरोप में हजारों सालों पहले हुई। उस दौरान 'फायर' नाम के पेड़ को सजाकर इस विंटर फेस्टिवल को मनाया जाता था. इसके अलावा लोग चेरी के पेड़ की टहनियों को भी क्रिसमस के वक्त सजाया करते थे। जो लोग इन पौधों को खरीद नहीं पाते थे वो लकड़ी को पिरामिड का शेप देकर क्रिसमस मनाया करते थे। धीरे-धीरे क्रिसमस ट्री का चलन हर जगह बढ़ा और अब हर कोई क्रिसमस के मौके पर इस पेड़ को अपने घर लाता है और इसे कैंडी, चॉकलेट्स, खिलौने, लाइट्स, बेल्स और गिफ्ट्स से सजाता है।

क्रिसमस पर गिफ्ट देने की कई कहानियां हैं।

प्रचलित कहानियों के अनुसार चौथी शताब्दी में एशिया माइनर की एक जगह मायरा (अब तुर्की) में सेंट निकोलस नाम का एक शख्स रहता था जो बहुत अमीर था, लेकिन उनके माता-पिता का देहांत हो चुका था वो हमेशा गरीबों की चुपके से मदद करता था उन्हें सीक्रेट गिफ्ट देकर खुश करने की कोशिश करता रहता था।

एक दिन निकोलस को पता चला कि एक गरीब आदमी की तीन बेटियां है, जिनकी शादियों के लिए उसके पास बिल्कुल भी पैसा नही है। निकोलस इस शख्स की मदद करने पहुंचे. एक रात वो इस आदमी की घर की छत में लगी चिमनी के पास पहुंचे और वहां से सोने से भरा बैग डाल दिया। उस दौरान इस गरीब शख्स ने अपना मोजा सुखाने के लिए चिमनी में लगा रखा था। इसी से पूरी दुनिया में क्रिसमस के दिन मोजे में गिफ्ट देने यानी सीक्रेट सैंटा बनने का रिवाज है।

इस मोजे में अचानक सोने से भरा बैग उसके घर में गिरा। ऐसा एक बार नहीं बल्कि तीन बार हुआ। आखिरी बार में इस आदमी ने निकोलस को देख लिया। निकोलस ने यह बात किसी को न बताने के लिए कहा. लेकिन जल्द ही इस बात का शोर बाहर हुआ उस दिन से जब भी किसी को कोई सीक्रेट गिफ्ट मिलता सभी को लगता कि यह निकोलस ने दिया है। धीरे-धीरे निकोलस की ये कहानी पॉपुलर हुई। इसी से क्रिसमस के दिन बच्चों को तोहफे देने का प्रथा रही है। (हिफी)

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