आर्थिक उजाला भी फैलाते हैं दीपक
दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने की परम्परा यूं ही नहीं पड़ी है। यह हमारे ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था से भी जुड़ी है।
लखनऊ। दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने की परम्परा यूं ही नहीं पड़ी है। यह हमारे ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था से भी जुड़ी है। अलग-अलग वर्ग के लोग जीविकापार्जन के लिए अलग-अलग कार्य करते थे और इसकी उन्हंे दक्षता भी हासिल हो जाती थी। लोहार किसानों के लिए कृषि उपकरण तैयार करता था तो कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाता था। अब भी यह कार्य हो रहे हैं लेकिन हमने परम्पराएं बदल दीं। दीपावली पर मिट्टी के दीपक की जगह मोमबत्ती और झालरों की रोशनी करने लगे। इन्हीं झालरों से चीन ने दुनिया भर के बाजार पर कब्जा कर लिया। अब भारत में चीन की झालरों का विरोध हो रहा है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में दीपावली का भव्य उत्सव मनाना शुरू किया है। वहां सरयू के तट पर लाखों दीप जगमगाते हैं। इसी से प्रेरणा लेकर अब लखनऊ के गोमती तट पर दीपों को सजाया जाता है। वाराणसी और हरिद्वार में गंगा के तट पर दीप जगमगाने लगे हैं। इससे मिट्टी के दीए का बाजार बढ़ा है, दीपक आर्थिक उजाला भी फैलाते है।, इस बात को ध्यान में रखते हुए हम सभी अपने-अपने घरों में मिट्टी के दीप ही जलाएं।
इस साल अब दिवाली में कुछ ही दिन रह गए हैं। लोग अपने-अपने घरों की सजावट में जोर-शोर से लगे हुए हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के पश्चात जब वापस अयोध्या लौटे थे तो अयोध्यावासियों ने उनका स्वागत लाखों दीप जलाकर किया था। यह परंपरा आज भी कायम है। दीपावली के दिन सभी घर दीयों से जगमग-जगमग रहते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि घर को साफ-सुथरा रखने से इस दिन मां लक्ष्मी स्वयं घर पधारती हैं। इसलिए दिवाली के दिन हर कोने में दीएं जलने चाहिए। हालांकि, आजकल एक से बढ़कर एक रंग-बिरंगे बल्ब लगाने का चलन हैं लेकिन मिट्टी के दीयों का आज भी कोई जवाब नहीं हैं। वैसे भी मिट्टी के दीयों को सबसे शुद्ध माना जाता है। त्योहार की परंपरा के अनुरूप मिट्टी के दीये ही सर्वमान्य हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये भारतीयता की खुशबू से भरपूर हैं। आप भी अपने घर को सस्ते में दीयों से रोशन करना चाहते हैं, तो मिट्टी के दीयों से बढ़कर कोई चीज नहीं है। वैसे तो, हरेक जगह दीयों की दुकान मिल ही जाएंगी, लेकिन हम यहां कुछ फेमस दीयों की जगह के बारे में बता रहे हैं, जहां हर तरह के दीयों की खरीददारी की जा सकती है।
पुरानी दिल्ली का दरियागंज मिट्टी के दीयों के लिए मशहूर है। यहां एक से बढ़कर एक दीयें मिल जाएंगे। यहां विभिन्न राज्यों की मिट्टी से तैयार दीये मिल जाएंगे। पदमचंद मार्ग स्थित दुकानों पर दीयों के अलावा हस्तनिर्मित मिट्टी की वस्तुओं का भंडार भी है। इसके आस-पास भी कुछ दुकानें हैं, जहां मिट्टी की दीयों की खरीददारी की जा सकती है। पुरानी दिल्ली में ही चांदनी चौक से सटे भागीरथ पैलेस के अंदर बिजली मार्केट में दीयों का बाजार लगता है। यहां थौक में डिजाइनर दीयें लिए जा सकते हैं। दक्षिणी दिल्ली के मैदानगढ़ी गांव में कई कुंभकार परिवार मिट्टी के दीयें बनाने में दक्ष हैं। इनके बनाए दीयें की मांग हर जगह रहती है। दीवाली पर बाजार में पर्याप्त मात्रा में दीये उपलब्ध रहें, इसके लिए मैदानगढ़ी के ये परिवार आजकल दिन रात काम कर रहे हैं। हरियाणा के झज्जर में कुंभकारों द्वारा बनाए गए दीयों की मांग देश भर में रहती है। दिल्ली के अधिकांश इलाकों में झज्जर से ही दीयें आते हैं। हालांकि, झज्जर के ज्यादातर दीयों की सप्लाई मुंबई में होती है। मिट्टी के बर्तन आपको लखनऊ के गोमतीनगर स्थित एनीथिंग मार्केट के पास मिल सकता है । इसके अलावा भूतनाथ मार्केट, लेखराज मार्केट जो की इंदिरानगर के पास है, वहाँ भी आपको मिट्टी से निर्मित बर्तन अच्छे मूल्य में मिल सकता है । इसके अलवा चिनहट पर शाम के समय बाजार लगती है। जहाँ आप मिट्टी से बने बर्तन ले सकते हैं । अगर आप ट्रान्स्पोर्ट नगर के आसपास रहते हैं तो लखनऊ-कानपुर हाई वे पर भी मिट्टी के बर्तन की काफी दुकान हैं ।
गाँवों में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन-रात काम कर रहे हैं। कुम्हारों को उम्मीद है कि दीपावली पर इस बार लोगों के घर आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे और उनके कारोबार को दोबारा दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे। पिछले वर्ष चीन के साथ तनाव को देखते हुए सोशल मीडिया पर जमकर चीनी उत्पादों के खिलाफ अभियान चला था। जिसमें दिवाली के मौके पर चाइनीज झालरों के बहिष्कार की भी बात थी। वहीं पीएम मोदी के वोकल फार लोकल की अपील का भी लोगों पर जबरदस्त असर पड़ा और दिवाली के मौके पर दीयों की बिक्री भी जमकर हुई थी। ऐसा लग रहा है कि वोकल फॉर लोकल की अपील का असर इस बार भी लोगों के बीच दिख रहा है और लोग चायनीज झालरों के बजाय मिट्टी के दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं, इससे कुम्हारों में बेहद खुशी है।
आधुनिकता के इस दौर में भी मिट्टी के दीये की पहचान बरकरार रखने के कारण कुम्हारों को कुछ कमाई की उम्मीद बन गई है। कुम्हारों का कहना है पहले लोग पूजा पाठ के लिए सिर्फ 5, 11 या 21 दीये खरीदते थे। मगर पिछली दिवाली में लोगों ने 10 से 12 दर्जन दीये खरीदे थे। इस बार की दिवाली में कुम्हारों को उम्मीद हैं कि दीपावली में एक बार फिर दीया और बाती का मिलन होगा और लोगों के घर-आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे।चाक की तेजी का असर ये है कि बाजार में भी मिट्टी के दीये बिकने के लिए पहुंच गए हैं और लोगों ने अभी से दीयों की खरीदारी भी शुरू कर दी है। चाइनीज झालरों व मोमबत्तियों की चकाचौंध ने दीयों के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था। मगर पिछले दो वर्षों से लोगों की सोच में खासा बदलाव आया और एक बार फिर गाँव की लुप्त होती इस कुम्हारी कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं। कुम्हारी कला से निर्मित खिलौने, दियाली, सुराही व अन्य मिट्टी के बर्तनों की माँग बढ़ी तो कुम्हारों के चेहरे खिल गए। मिट्टी से निर्मित मूर्तियाँ, दीये व खिलौने पूरी तरह इको-फ्रेंडली होते हैं। इसकी बनावट, रंगाई व पकाने में किसी भी प्रकार का केमिकल प्रयोग नहीं किया जाता है। दीये पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
गाँव में सदियों से पारंपरिक कला उद्योग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जहाँ पूरा सहयोग मिलता रहा, वहीं गाँव में रोजगार के अवसर भी खूब रहे। इनमें से ग्रामीण कुम्हारी कला भी एक रही है, जो समाज के एक बड़े वर्ग कुम्हार जाति के लिए रोजी-रोटी का बड़ा सहारा रहा।
हिंदू परंपरा में मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। मंगल साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि को न्याय और भाग्य का देवता कहा जाता है। मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है। (हिफी)