संदेह में घिरा भाजपा का 'माॅडल'

गुजरात में भाजपा के एक सांसद ने यह कहकर इस्तीफा दे दिया कि सरकार जनता की भावनाओं को नहीं समझ रही है।

Update: 2021-01-01 00:45 GMT

नई दिल्ली। नए साल में पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। गुजरात भाजपा का माॅडल राज्य है। सन् 2014 में भी पूरे देश के लिए गुजरात को ही माॅडल बनाया गया था क्योंकि तब नरेन्द्र मोदी वहीं के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। अब गुजरात में विजय रूपाणी छठीं बार मुख्यमंत्री बने हैं। भाजपा की सबसे ज्यादा निगाह पश्चिम बंगाल पर है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व अन्य नेताओं ने पश्चिम बंगाल की जनता से वादा किया है कि यहां गुजरात माॅडल लागू किया जाएगा। उसी गुजरात में भाजपा के एक सांसद ने यह कहकर इस्तीफा दे दिया कि सरकार जनता की भावनाओं को नहीं समझ रही है।

हालांकि बाद में उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया, पार्टी के अंदर नाराजगी कोई नई नहीं है। सरकार बनाते समय ही उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने महत्वपूर्ण मंत्रालय न मिलने पर खुलेआम नाराजगी जतायी थी। इस तरह भाजपा का माॅडल ही सवालों के घेरे में आ गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा ने पश्चिम बंगाल में दूसरे दलों से दर्जनों नेता अपने साथ लाने में सफलता पायी है लेकिन एनडीए के कई साथी भी उससे अलग हो चुके हैं। गुजरात में भाजपा ने 2017 में छठीं बार अपनी सरकार बना तो ली थी लेकिन 150 का मिशन लेकर चल रही भाजपा को सिर्फ 99 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। उसे पिछले चुनाव से 16 सीटें कम मिली थीं। विजय रूपाणी की सरकार जोड़ तोड़ के सहारे ही चल रही है।


वर्ष 2020 के बीतते समय गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के लिए एक झटका देने वाली खबर मिली। यहां के भरूच से लोकसभा सांसद मनसुख वसावा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। साथ ही जल्द ही संसद की सदस्यता से भी इस्तीफा देने की बात कही। उन्होंने सरकार पर आरोप भी लगाए। भरुच से बीजेपी सांसद मनसुखभाई धनजीभाई वसावा ने 28 दिसंबर को गुजरात के प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सी.आर. पाटिल को पत्र लिखकर अपने फैसले की जानकारी दी। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष को भेजे गए पत्र में मनसुख वसावा ने लिखा कि उन्होंने पार्टी के साथ वफादारी निभाई है। साथ ही पार्टी और जिंदगी के सिद्धांत का पालन करने में बहुत सावधानी रखी है, लेकिन आखिरकार मैं एक इंसान हूँ और इंसान से गलती हो जाती है। इसलिए मैं पार्टी से इस्तीफा देता हूँ। वसावा ने ये भी कहा कि लोकसभा सत्र शुरू होने से पहले वो सांसद पद से भी इस्तीफा दे देंगे। भाजपा ने डैमेज कंट्रोल कर लिया। वसावा इस्तीफा नहीं देंगे।

गौरतलब है कि मनसुख वसावा हाल ही में अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। गुजरात के सीएम विजय रुपाणी को पत्र लिखकर वसावा ने कहा था कि गुजरात में आदिवासी महिलाओं की तस्करी हो रही है। इसके अलावा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के संबंध में उन्होंने पीएम मोदी को भी एक पत्र लिखा था। एक अंग्रेजी दैनिक की खबर के मुताबिक, इसी महीने मनसुख वसावा का पीएम मोदी को लिखा गया पत्र सामने आया जिसमें उन्होंने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास इको-सेंसेटिव जोन रद्द करने की मांग की थी। पत्र में अपने इस आवेदन के पीछे मनसुख वसावा ने इलाके के आदिवासी समुदाय के विरोध को कम करने की वजह बताई थी।

मनसुख वसावा खुद एक आदिवासी नेता हैं और वो इस समुदाय की लंबे समय से राजनीति करते आए हैं। उन्होंने इस्तीफा जरूर वापस लिया लेकिन जनता तक संदेश तो पहुंच ही गया।  मनसुख भाई वसावा, बीजेपी के कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं। वह 6 बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन चुके हैं। पिछले मोदी सरकार में उन्होंने राज्यमंत्री का पदभार भी संभाला था, लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह पार्टी के कामकाज के तरीकों से नाखुश नजर आ रहे थे।

भाजपा का कई लोगों ने साथ पकड़ा भी है लेकिन कई लोग साथ छोड़ गये। नए कृषि कानून और किसानों के आंदोलन के मुद्दे पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के रवैये से नाराज होकर राजस्थान में बीजेपी की सहयोगी रही राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (एनडीपी) ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़ दिया है। एनडीपी के अध्यक्ष हनुमान प्रसाद बेनीवाल ने खुद इसका एलान किया। पिछले चार महीनों में एनडीए छोड़ने वाली यह चैथी पार्टी है। इससे पहले सितंबर में किसानों के मुद्दे पर ही बीजेपी के सबसे पुराने साथी शिरोमणि अकाली दल ने और इसके बाद अक्टूबर में पी सी थॉमस की अगुवाई वाली केरल कांग्रेस ने भी एनडीए का साथ छोड़ दिया। दिसंबर आते-आते असम में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने भी एनडीए का साथ छोड़ दिया। इस प्रकार 2014 के मुकाबले अब एनडीए में मात्र 16 दल रह गए हैं। हालांकि, कुछ दल ऐसे हैं जो हालिया एनडीए में शामिल हुए हैं। ऐसे दलों में बिहार में जीतन राम मांझी की हम, मुकेश साहनी की वीआईपी शामिल है। इसी तरह असम में प्रमोद बोरो की पार्टी यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी ने हाल ही में बीटीसी चुनावों के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन किया हैं। शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए छोड़ दी थी। मोदी सरकार में मंत्री रहीं हरसिमरत कौर ने किसानों के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था।


2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने वृहतर एनडीए गठबंधन बनाते हुए आम चुनावों में बड़ी जीत दर्ज की थी लेकिन धीरे-धीरे उसके सहयोगी दल उससे छिटकते चले गए। सबसे पहले बीजेपी का साथ हरियाणा जनहित कांग्रेस ने छोड़ा था। कुलदीप विश्नोई ने लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद ही एनडीए को अलविदा कह दिया था। इसके बाद 2014 में ही तमिलनाडु की एमडीएमके ने भी बीजेपी पर तमिलों के खिलाफ काम करने का आरोप लगा एनडीए छोड़ दी थी। इसके बाद तमिलनाडु चुनाव से पहले 2016 में वहां की दो अन्य पार्टियों (डीएमडीके, रामदौस की पीएमके ) ने भी बीजेपी का साथ छोड़ दिया था।

आंध्र प्रदेश में अभिनेता पवन कल्याण की पार्टी जन सेना ने भी 2014 में ही बीजेपी का साथ छोड़ दिया। बाद में 2016 में केरल की रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने भी बीजेपी का साथ छोड़ा। 2017 में महाराष्ट्र में स्वाभिमान पक्ष नाम की पार्टी मोदी सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाकर एनडीए से अलग हो गई। नागालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट , बिहार में जीतनराम मांझी की हम ने भी गठबंधन छोड़ दिया। हालांकि, 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव से पहले मांझी और साहनी फिर से एनडीए कुनबे में लौट आए हैं।

मार्च 2018 में एनडीए को तब बड़ा झटका लगा था, जब उसकी बड़ी सहयोगी पार्टी तेलगु देशम ने साथ छोड़ दिया। इस पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार पर आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया था। इसके बाद उसी साल पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सहयोगी रही गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने भी एनडीए से नाता तोड़ लिया। इसी साल कर्नाटक प्रज्ञानवथा पार्टी ने भी एनडीए से अलग राह पकड़ ली। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार में मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने भी एनडीए को छोड़ दिया। उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए और योगी मंत्रिमंडल छोड़ दी थी और महाराष्ट्र मंे लम्बा साथ निभाने वाली शिवसेना ने इसी वर्ष कांगे्रस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनायी है। (हिफी)

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