ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम
मगर स्कूल-कॉलेज-टेक्निकल इंस्टीट्यूट जाए बगैर क्या बच्चों से असल पढ़ाई-लिखाई करवाई जा सकती है?
लखनऊ। बीते करीब छह माह से देश-दुनिया में बहुत सी गतिविधियां ठप हैं। लॉकडाउन के चार महीने बाद मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे और गिरजाघर तो खुल गए मगर स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय आदि शिक्षा के ठिकाने बंद हैं। हां लेकिन ऑनलाइन शिक्षा जारी है मगर स्कूल-कॉलेज-टेक्निकल इंस्टीट्यूट जाए बगैर क्या बच्चों से असल पढ़ाई-लिखाई करवाई जा सकती है?
दुनियाभर में कोरोना संक्रमण का कहर एक बार फिर बढ़ता देखा गया है। पिछले 24 घंटे में 3.13 लाख नए कोरोना मामले दर्ज हुए और 6289 मरीजों की जान चली गई। हालांकि 2 लाख 78 हजार 615 लोग वायरस से ठीक भी हुए हैं। वर्ल्डामीटर की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में अबतक 3 करोड़ 20 लाख 83 हजार लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। इसमें से 9 लाख 81 हजार (3.05 फीसद) लोगों ने अपनी जान गंवा दी है तो वहीं कुल 2 करोड़ 78 लाख (73 फीसद) से ज्यादा मरीज ठीक हो चुके हैं। पूरी दुनिया में 74 लाख से ज्यादा एक्टिव केस हैं यानी कि फिलहाल इतने लोगों का अस्पताल में इलाज चल रहा है। अमेरिका, ब्राजील जैसे देशों में कोरोना मामले और मौत के आंकड़ों में कमी आई है। भारत ही एक मात्र देश है जहां कोरोना महामारी सबसे तेजी से बढ़ रही है। हालांकि कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की लिस्ट में अमेरिका पहले पायदान पर है।
बीते करीब छह माह से देश-दुनिया में बहुत सी गतिविधियां ठप हैं। लॉकडाउन के चार महीने बाद मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे और गिरजाघर तो खुल गए मगर स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय आदि शिक्षा के ठिकाने बंद हैं। हां लेकिन ऑनलाइन शिक्षा जारी है मगर स्कूल-कॉलेज-टेक्निकल इंस्टीट्यूट जाए बगैर क्या बच्चों से असल पढ़ाई-लिखाई करवाई जा सकती है? शिक्षण कार्यां पर व्यापक रूप से इसका असर पड़ा है। शिक्षार्थियों का बहुत नुकसान हुआ है। ऑनलाइन पठन-पाठन के कुछ सक्रिय प्रयासों के अलावा शैक्षिक संस्थानों की कोई विशेष उपलब्धि नहीं रही। नीतिगत तैयारियों में खामियां और तकनीकी गैर सुलभता के चलते अधिकांश छात्र ऑनलाइन शिक्षा तक अपनी पहुंच नहीं बना सके। समग्र रूप में कहें तो कोरोना संकट ने समानुपातिक रूप से शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्र के छात्रों को नुकसान पहुंचाया है लेकिन इससे इतर इस दौरान देश में कुछ ऐसे अनूठे प्रयास होते रहे, जिसने शिक्षा की परिभाषा और मायने दोनों ही बदल दिए।
ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम को लेकर दो तरह के मत हैं। कुछ एक्सपर्ट्स इसे पैरेंट्स और बच्चों के हित का मान रहे हैं तो कुछ कहते हैं इससे बच्चों की ग्रूमिंग ठीक से नहीं हो पाएगी। यदि हमारे यहां का पूरा ऑनलाइन पैटर्न होता है तो इससे बच्चों का शहर के हैवी ट्रैफिक में आने-जाने का वक्त बचेगा। अभी स्कूल से दूरी के हिसाब से दो से ढाई घंटे तक बसों में लग जाता है। स्कूलों के मेस का खर्च बचेगा। ट्रांसपोर्टेशन और मेस का खर्च कम होने और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में होने वाला खर्च बचने का सीधा असर फीस पर होगा। इसका फायदा पैरेंट्स को होगा। अधिकांश स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास या फिर व्हाट्सएप्प के जरिए असाइनमेंट दिए जाने लगे हैं और उन्हें कॉपी में सॉल्व करने को कहा जाता है। कई स्कूलों में वीडियो सेशन रिकॉर्ड करके व्हाट्सएप्प के जरिए भेजे जा रहे हैं। इसी तरह कुछ स्कूलों ने अपनी वेबसाइट पर अलग-अलग क्लास के लिए चैप्टर वाइज सेशन अपलोड कर दिए हैं। बच्चों की मदद के लिए टीचर्स वाट्सएप, वीडियो कॉल और फोन कॉल के जरिए भी उपलब्ध है। टीचरों ने बच्चों की क्लास और सिलेबस के हिसाब से वाट्सएप गु्रप बनाए हैं, जिन पर शिक्षक 30 से 40 मिनट के वीडियो रिकार्ड कर भेज रहे हैं। छात्रों को जो बातें वीडियो या वर्कशीट से समझ में नहीं आती है वो उसके बारे में शिक्षक के निजी वाट्सएप नंबर पर चर्चा करते हैं। शिक्षक ने जो आज पढ़ाया उसके अगले दिन छात्र को एक वर्कशीट हल करने को दी जा रही है। छात्र उसका प्रिंट लेकर या उसके प्रश्नों को कॉपी में लिखकर उत्तर लिखते हैं और टीचर को भेज रहे हैं। टीचर व्हाट्सएप्प पर ही रिमार्क व करेक्शन बता देते हैं।
कोरोना महामारी के बढ़ते संकट के बीच स्कूलों के ऑनलाइन एजुकेशन के साथ ही साथ इस महामारी के दौर में ऑनलाइन एजुकेशन सर्विस देने वाली कंपनियों के लिए साल 2020 अवसर की तरह साबित हुआ हैं। ऑनलाइन एजुकेशन सेवा देने वाले स्टार्टअप ने इस साल निवेश के जरिए अरबों रुपये जुटाने में भी सफलता हासिल की है। इस दौरान ऑनलाइन एजुकेशन का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है। अगर बात हाल में ही शुरू हुए ऑनलाइन एजुकेशन एप बायजू की करें तो इसे हाल में ही ब्लैकरॉक, सैंड्स कैपिटल और एल्केऑन कैपिटल की मदद मिली है एडटेक स्टार्टअप ने सालों से चले आ रहे एजुकेशन के पारंपरिक तौर-तरीकों को भी बदलने में सफलता पाई है। छात्रों के लिए घर बैठे कंटेंट मुहैया कराना, ऑनलाइन क्लास के अलावा अन्य कई शैक्षणिक सुविधाओं ने ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम को काफी बदला है। कोरोना के प्रकोप से देश में लॉकडाउन किया गया, जिसका फायदा ऑनलाइन एजुकेशन सर्विस देने वाली स्टार्टअप को मिला है।
ऑनलाइन शिक्षा में जो सबसे बड़ी खामी है वो ये कि ऑनलाइन शिक्षा उन मुट्ठी भर बच्चों तक ऐसे राज्यों में ही पहुंच पा रही है जहां बच्चों के पास स्मार्ट मोबाइल फोन के साथ इंटरनेट का ब्रॉडबैंड नेटवर्क मौजूद है। भारत के ज्यादातर गांवों में तो बॉडबैंड है ही नहीं, अनेक गांवों में बिजली भी हरेक घर को नसीब नहीं है। ऐसे में बच्चे ऑनलाइन शिक्षा कैसे प्राप्त कर पाएंगे? जाहिर है कि वे बच्चे सिर्फ स्कूल में ही शिक्षा पा सकते हैं। ऑनलाइन क्लासेज के जरिये शहरों में स्कूलों के नए एकेडमिक सेशन शुरू हो गए हैं, जबकि आर्थिक रूप से कमजोर और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले छात्र इस मामले में पीछे छूट रहे हैं। समय आ गया है कि शिक्षा के पारंपरिक तरीकों से इतर कुछ नवीन प्रयोग किए जाएं, जिससे संसाधनहीनता और तकनीकी अनुपलब्धता के बावजूद अधिगम को अनिवार्य रूप से सर्वसुलभ और सर्वग्राह्य बनाया जा सके। ऑनलाइन एजुकेशन बेहतर हो सकती है, लेकिन फिलहाल हमारे यहां इस पूरे सिस्टम को ठीक से सेट होने में बहुत वक्त लगेगा।
इस कठिन दौर में देश के कई जिलों के असंख्य शिक्षकों ने अपनी अनूठी पहल से शिक्षा की नई वैकल्पिक व्यव्स्था की शुरुआत की है और पठन-पाठन के ये अनूठे तरीके छात्रों के बीच खासे लोकप्रिय हो भी रहे हैं। ऐसे में भविष्य के विकल्पों की पूर्व तैयारी मुफीद साबित हो सकती है। महाराष्ट्र में कुछ जगहों पर शिक्षकों द्वारा एक ऐसा ही अभिनव प्रयोग किया गया, जहां स्कूल की दीवारों पर पाठ्य आधारित बुनियादी सबक उकेरकर बच्चों को पढ़ाया गया। इस सकारात्मक प्रयास ने कई अन्य ग्राम-पंचायतों को भी प्रेरित किया। एक और बानगी देखने को मिली हरियाणा के बेगमपुर में, जहां स्थानीय शिक्षादूतों की तैनाती के जरिये सर्वसुलभ शिक्षा की पैरोकारी की गई। इलाके के युवाओं के समग्र प्रयास और स्वैच्छिक योगदान से पटरी से उतरी शिक्षा को पुनर्जीवित किया गया। जिले के शिक्षाधिकारियों की सहभागिता से ये युवा शिक्षादूत पांच बच्चों के समूहों को बगीचों और सामुदायिक भवनों में ज्ञान का अमृत बांट रहे हैं। ये प्रयोग यहीं नहीं रुके। कहीं माइक और लाउडस्पीकर का सहारा लिया गया, तो कहीं खुली दीवारों को ही ब्लैक बोर्ड में तब्दील कर दिया गया। देशभर में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले, जिसने विपरीत परिस्थिति में भी आशा की किरण जलाए रखी। (हिफी)