पाप बन गया कोरोना संक्रमण
संक्रमण फैलने का थोड़ा जोखिम तो है लेकिन यह जोखिम लोग उठाते हैं बडे़-बड़े नेताओं की तरह घोषणा नहीं कर पाते कि वे कोरोना पाजिटिव हैं
लखनऊ। पिछले दिनों हमारे संस्थान के ही एक अधिकारी ने बहुत व्यथित होकर कहा था कि परिवार में किसी को बुखार भी आ जाए तो आसपास के लोग हेय दृष्टि से क्यों देखने लगते हैं? कोरोना वायरस संक्रमण के चलते यह मानसिकता बन गयी है। हमारी कालोनी में भी गाॅशिप का प्रमुख विषय यही कोरोना बन गया है। सबेरे सबेरे चौहान साहब का फोन आया। कहने लगे, तुम्हें कुछ पता है, डाक्टर जायसवाल के नौकर को कोरोना हो गया है? वह अपनी मां के साथ पार्क में बैठा था। हमने अनभिज्ञता जताई तो कहने लगे कि पास पड़ोस की खबर तो रखा करो। इजहार अहमद साहेब अपनी बेटी का टेस्ट कराने डाक्टर के पास गये थे। अब संयोग देखिए कि वह डाक्टर मेरा मित्र है। मुझसे पूछने लगा कि आपकी कालोनी में कोई इजहार अहमद रहते हैं। मैंने कहा हां, तो बताने लगे कि उनकी बेटी पाॅजिटिव आयी है। इजहार अहमद का घर मेरे घर के पास ही है और इस बात का उन्होंने मुझसे जिक्र तक नहीं किया। मैंने चैहान साहेब से कहा, डाक्टर जायसवाल तो नामी सरकारी अस्पताल में काम करते हैं फिर उन्होंने नौकर को अस्पताल में भर्ती क्यों नहीं करवाया? पार्क में बैठाने का क्या मतलब? चैहान साहेब कहने लगे कि अस्पताल में कोविड पेशेंट को भर्ती कराना कितना मुश्किल है, यह पता नहीं है। अखबारों में बयान छप रहे हैं, उन पर मत जाओ। कोरोना मरीज की बात तो छोड़ दीजिए, अन्य कोई परेशानी के लिए भी सरकारी अस्पताल में भर्ती होकर इलाज कराना टेढ़ी खीर है। प्राइवेट अस्पताल में अगर पहुंच गये तो समझो आपका घरबार बिक गया। मैं सोच रहा था कि सरकारी अस्पतालों में जनसामान्य को भर्ती होकर इलाज कराना क्या इतना दुरूह हो गया है, तभी लोकल सर्किल्स का एक सर्वे देखा। इस सर्वे के अनुसार कोरोना से संक्रमित आईसीयू बेड के लिए ही अस्पताल जाना चाहते हैं और वही बेड अगर वहां नहीं मिला तो उससे बेहतर तो अपना घर है। कम से कम कोई बात तो करने वाला पास में मौजूद है और चाय, काढ़ा भी बनाकर दे देता है। संक्रमण फैलने का थोड़ा जोखिम तो है लेकिन यह जोखिम लोग उठाते हैं। बडे़-बड़े नेताओं की तरह घोषणा नहीं कर पाते कि वे कोरोना पाजिटिव हैं।
हमारे देश में तकरीबन हर रोज 90 हजार से ज्यादा कोरोना (कोविड-19) के नए मामले सामने आ रहे हैं। मरीजों की बढ़ती संख्या के साथ गंभीर संक्रमितों के लिए आईसीयू बेड की व्यवस्था करना एक बड़ी चुनौती है। स्वतंत्र आंकड़ों में दावा किया गया है कि अक्टूबर के मध्य तक भारत मरीजों की संख्या के मामले में अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा। इस बीच सरकार का कहना है कि देश में कोरोना के 92 प्रतिशत केस माइल्ड हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय में सचिव राजेश भूषण का कहना है कि सिर्फ 6 प्रतिशत कोरोना रोगियों को ही अस्पतालों में ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। इसमें भी 3.69 प्रतिशत मरीजों को सिर्फ ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है और 2.17 प्रतिशत को आईसीयू बेड की जरूरत होती है। हालांकि लोकल सर्किल्स द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक मरीजों को आईसीयू बेड हासिल करने के लिए सिफारिश तक की जरूरत पड़ रही है। देश के 211 जिलों में किए गए सर्वे के मुताबिक 37 प्रतिशत लोगों ने माना कि आईसीयू बेड के लिए उन्होंने कॉन्टैक्ट का इस्तेमाल किया। इस सर्वे में करीब 17 हजार लोगों से पूछताछ की गई है। सात प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्हें आईसीयू बेड हासिल करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। यहां तक कि सात प्रतिशत लोगों का यह भी कहना है कि उन्होंने आईसीयू बेड के लिए घूस दी। इस सर्वे में सिर्फ चार प्रतिशत लोगों का कहना था कि उन्हें आसानी से बेड मिल गया। कुछ लोगों ने यह भी बताया कि उन्हें बेड हासिल करने के लिए सोशल मीडिया पर मामला उठाना पड़ा। तकरीबन 92 प्रतिशत लोगों का मानना है कि अस्पतालों को कोविड 19 के मद्देनजर आईसीयू बेड की संख्या बढ़ानी चाहिए। कुछ लोगों ने बताया कि दिल्ली सरकार के ऐप दिल्ली कोरोना पर तो अस्पतालों में आईसीयू बेड की उपलब्धता दिखाई जा रही थी लेकिन अस्पताल पहुंचने पर बेड नहीं मिला। दिल्ली सरकार का कहना है कि बीते कुछ दिनों के भीतर राज्य में 500 कोरोना बेड बढ़ाए गए हैं। दिल्ली की तरह ही हालात पूरे देश में हैं। मध्य प्रदेश से पिछले दिनो एक खबर आयी थी कि एक डाक्टर को ही कोरोना संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया।
देश भर में कोरोना वायरस की चपेट में आने वालों की संख्या रोज बढ़ती ही जा रही है। कोरोना संक्रमण की रफ्तार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश में रोजाना 50 हजार से ज्यादा संक्रमित मरीजों के केस सामने आ रहे हैं। देश में पिछले 24 घंटे में कोरोना संक्रमित 54,736 मरीजों की पुष्टि हुई है। स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 17 लाख को पार कर चुकी है। देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़कर 17,50,723 हो चुकी है। इनमें 5,67,730 एक्टिव केस हैं। कोरोना वायरस दूर-दराज के क्षेत्रों तक फैल गया है। आंकड़े बताते हैं कि बीते तीन महीनों में 1,000 से अधिक कोरोना केस वाले जिलों की संख्या पांच से बढ़कर 206 तक पहुंच गई है। विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि प्रसार की सीमा का अनुमान लगाने को लेकर एक अखिल भारतीय सीरो-सर्वे करने की जरूरत है। आंकड़ों को देखकर पता चल रहा है कि अब यह जानलेवा वायरस देश के ज्यादातर जिलों में तेजी से पैर पसार रहा है। कोरोना के आंकड़े बताते हैं कि अब तक यह महामारी देश के तकरीबन हर जिले को अपनी चपेट में ले चुकी है। फरवरी के अंत तक सिर्फ तीन जिलों में कोरोना के केस दर्ज हुए थे, लेकिन अप्रैल अंत तक कोरोना वायरस 450 जिलों में फैल गया था। अब देश का कोई हिस्सा नहीं बचा, जहां कोरोना का संक्रमण न हुआ हो। कोरोना का संक्रमण इतना बढ़ गया लेकिन सरकारी अस्पतालों में इसके इलाज की सुविध्सा उस अनुपात में नहीं बढ़ पायीं। इतना ही नहीं अस्पतालों में सामान्य कोरोना मरीजों के साथ उपेक्षा बरतने की शिकायतें भी जनता के बीच पहुंच चुकी हैं। इनमें कितनी सच्चाई है, यह ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता लेकिन इससे इसी के चलते जन सामान्य बीमारी को छिपाने लगा है। उसने अपने को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। पास पड़ोस में रहने वाले इसलिए हेयदृष्टि से देखते हैं। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए मार्च अप्रैल में जिस तरह से मास्क, सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जाता था, अब उसे किनारे कर दिया गया है। बड़े बुजुर्गों की बात भी बच्चे नहीं सुनते। इसलिए पडोस में किसी को सामान्य बुखार भी आने पर लोग आशंकित हो जाते हैं।
इसलिए जनसामान्य और सरकार दोनों की जिम्मेदारी बढ़ गयी है। कोरोना संक्रमण से बचाव के प्रति जिस तरह की लापरवाही बढ़ी है, उसे कम कर सावधानी बरतनी होगी। इसी के चलते कई देशों को फिर से लॉकडाउन करना पड़ा है। सरकार को भी इसके सक्षम इलाज की व्यवस्था का विस्तार करना होगा। क्योंकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि यह महामारी उतार की तरफ बढ़ रही है और कुछ ही महीनों में इससे पीछा छूट जाएगा। ईश्वर करे ऐसा ही हो और इस महामारी से मुक्ति मिले लेकिन इसी उम्मीद में हम हाथ पर हाथ रखकर न बैठे रहें। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)