विधायिका पर गम्भीर अपराध के आरोपी राजनेताओं का दबदबा?
सर्वोच्च न्यायालय को प्रस्तुत एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश में 1217 आपराधिक मामले लंबित हैं
नई दिल्ली। लोकतंत्र के तीन स्तम्भ-विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका में से विधायिका गम्भीर अपराध के आरोपी राजनेताओं के शिकंजे में सिसक रही है। जिन पर कानून बनाने व देश को दिशा देने की जिम्मेवारी दी गई है, उनमें से बड़ी संख्या गम्भीर अपराधों के आरोपी राजनेताओं की बताई जा रही है। यहां तक कि इनके विरुद्ध मामलों को निपटाने में बड़ी बाधा खड़ी की जा रही है। ढाई हजार से ज्यादा माननीय विधायक/सांसद ऐसे मामलों के आरोपी बताए जा रहे है। ऐसे माननीयों में उत्तर प्रदेश अव्वल है। जबकि रनर्स अप बिहार है। यहां तक कि उत्तर प्रदेश में अपराध के आरोपी राजनेताओं का दबदबा, पुलिस बल को अपने हिसाब से हांकने की प्रवृत्ति उत्तर प्रदेश को अपराध के दलदल से बाहर निकालने में बड़ी बाधा है।
सर्वोच्च न्यायालय को प्रस्तुत एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश में 1217 आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से 446 मामलों में वर्तमान विधायक/सांसद आरोपी हैं। वर्तमान विधायक/सांसदों में से 35 और पूर्व विधायक/सांसदों में से 81 पर जघन्य अपराधों का आरोप है, जिसमें आजीवन कारावास की सजा भी हो सकती है। उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है।
उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए स्थगनादेश के कारण 85 मामलों में ट्रायल रुक गया है। वर्तमान मामले में जारी निर्देशों के संदर्भ में इलाहाबाद में एक विशेष अदालत का गठन किया गया था। वर्तमान में, कहा गया है कि विशेष अदालत 12 जिलों से संबंधित मामलों का ट्रायल कर रही है। बताया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया है कि वर्तमान और पूर्व विधायक व सांसदों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की संख्या 4442 हैं। मौजूदा विधायकों व सांसदों में से 2556 आरोपी हैं। एमिकस क्यूरी ने अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका में शीर्ष न्यायालय के उस निर्देश पर कार्रवाई की है, जिसमें पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों का तेजी से निपटान करने की मांग की गई है, जिसके अंतर्गत देश भर के उच्च न्यायालयों को पूर्व और वर्तमान विधायकों व सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों की एक सूची संकलित करने का निर्देश दिया गया था।
जानकारी हो वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया और अधिवक्ता स्नेहा कलिता की ओर से दाखिल रिपोर्ट में एमिकस ने कहा है, सांसदों/विधायकों ( वर्तमान और पूर्व) के खिलाफ विभिन्न अदालतों में कुल 4442 मामले लंबित हैं जिनमें सांसद और विधायकों के लिए विशेष अदालत भी शामिल हैं। हाईकोर्ट में लंबित 2556 मामलों में वर्तमान आरोपी व्यक्ति वर्तमान विधायक व सांसद हैं। उल्लेखनीय है कि इसमें शामिल विधायकोंध् सांसदों की संख्या कुल मामलों से अधिक है क्योंकि कुछ मामलों में एक से अधिक आरोपी हैं, और एक ही विधायक/सांसद एक से अधिक मामलों में आरोपी है। ऐसा कहा कहा जाता है कि बड़ी संख्या में मामलों में, ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी नहीं किए गए थे और कई मामलों में उन्हें ट्रायल कोर्ट द्वारा निष्पादित किया जाना बाकी था। उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में 73 मामले हैं जो आजीवन कारावास के साथ दंडनीय अपराध से संबंधित है, जिसमें से 30 मामले वर्तमान विधायक/सांसदों के खिलाफ और 43 पूर्व विधायक/सांसदों के विरुद्ध हैं। रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में, कुल 330 मामले लंबित हैं, जिनमें से 222 में वर्तमान विधायक/सांसद आरोपी हैं, 31 मामले आजीवन कारावास के साथ दंडनीय अपराध से संबंधित हैं, जिसमें से 17 मामले वर्तमान विधायक/ सांसदों के विरुद्ध और 14 पूर्व विधायक/ सांसदों के विरुद्ध हैं। उड़ीसा में, 331 मामले हैं, जिनमें से 220 मामलों में वर्तमान विधायक/ सांसद आरोपी हैं, जिनमें से 32 मामले आजीवन कारावास और 10 विधायकों के विरुद्ध सजा और पूर्व विधायकों के विरुद्ध 22 मामले हैं। मध्य प्रदेश में 184 मामले हैं, जिनमें से 125 मामलों में वर्तमान विधायक/सासंद आरोपी हैं, 31 मामले ऐसे हैं जो आजीवन कारावास से दंडनीय हैं, जिनमें से 12 मामले वर्तमान विधायक/सांसदों के खिलाफ और 19 पूर्व वर्तमान विधायक/सांसदों के खिलाफ हैं। आंध्र प्रदेश में, 106 मामले हैं और सभी एक विशेष सांसदों, विजयवाड़ा के समक्ष लंबित हैं। 85 मामलों में वर्तमान विधायक/सासंद हैं। हालांकि, इसमें शामिल वर्तमान विधायक/सांसद की संख्या कुल मामलों की संख्या से अधिक है क्योंकि एक मामले में एक से अधिक आरोपी हैं। उक्त मामला आईपीसी की धारा के तहत धारा 188 के अपराध से संबंधित है जिसमें दो साल की सजा है, ये बताया गया है। रिपोर्ट बताती है कि पश्चिम बंगाल में, कुल 131 मामले लंबित हैं, जिनमें से 101 मामलों में वर्तमान विधायकध् सांसद आरोपी हैं। एमिकस कहते है कि रिपोर्ट से प्रतीत होता है कि अधिकांश मामलों में अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं, क्योंकि आरोप तय करने की तारीख के कॉलम में इसे निल के रूप में बताया गया है, यहां तक कि जब मामलों की घटना बहुत पहले 1981 से संबंधित है। इसी प्रकार कर्नाटक में 53 मामले आजीवन कारावास के साथ दंडनीय अपराधों से संबंधित हैं, जिनमें से 27 मामले वर्तमान विधायकध् सांसदों के विरुद्ध और 26 पूर्व वर्तमान विधायक/सांसदों के विरुद्ध हैं। केरल में, 333 आपराधिक मामले हैं, जिनमें से 310 मामलों में वर्तमान विधायकध् सांसद आरोपी हैं। असम में, 35 मामले लंबित हैं, जिनमें से 25 मामलों में वर्तमान विधायक/सांसद आरोपी हैं, जिनमें से 12 मामले आजीवन कारावास के साथ दंडनीय अपराध से संबंधित हैं, जिनमें से 8 मामले वर्तमान विधायक/सांसद के विरुद्ध हैं। देश की राजधानी दिल्ली में, सत्र (25) और मजिस्ट्रियल स्तर (62) में से प्रत्येक में दो विशेष न्यायालयों के समक्ष 87 मामले लंबित हैं। इन मामलों में 118 विधायक (87 वर्तमान विधायक/सांसद और 31 पूर्व वर्तमान विधायक /सांसद) आरोपी हैं। पंजाब में, 35 मामले हैं, जिनमें से 21 मामलों में वर्तमान विधायक/सांसद शामिल हैं । झारखंड में 142 मामले हैं, जिनमें से 86 मामलों में वर्तमान विधायकध् सांसद आरोपी हैं। 89 मामले लंबित हैं, जिनमें से 69 मामलों में सांसद ध् विधायक आरोपी व्यक्ति हैं, जिनमें से 8 मामले अपराध के मामले में आजीवन कारावास के साथ दंडनीय हैं। तेलंगाना में, 118 मामले हैं और 107 वर्तमान विधायकध् सांसद आरोपी हैं। हैदराबाद में एक विशेष अदालत के समक्ष ये सभी मामले लंबित हैं। राजस्थान में, 49 मामले लंबित हैं, जिनमें से 17 वर्तमान विधायकध् सांसद आरोपी हैं। 4 मामले ऐसे हैं जो आजीवन कारावास के साथ दंडनीय अपराधों से संबंधित हैं, और ये सभी पूर्व वर्तमान विधायक/सांसदों पर हैं। छत्तीसगढ़ में, 21 मामले लंबित हैं, जिनमें से 13 मामलों में वर्तमान विधायक/सांसद आरोपी हैं। उत्तराखंड में, 20 मामले हैं और 16 मामलों में वर्तमान विधायक/सांसद अभियुक्त बताए जाते हैं। गोवा में, कुल 12 मामले हैं, जिनमें से 10 मामलों में वर्तमान विधायक/सांसद आरोपी हैं। मणिपुर में, 15 मामले हैं जिनमें से 10 मामलों में वर्तमान विधायक/सांसद आरोपी हैं। मिजोरम में, तीन वर्तमान विधायक/सांसद के खिलाफ 4 मामले हैं, जिनमें से दो उम्रकैद और दो अन्य 10 साल की कैद के साथ दंडनीय है। बताया गया कि उपर्युक्त के अलावा, अन्य राज्यों का विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया है क्योंकि वहां कुछ मामले ही हैं और विशेष रूप से न्यायालय के ध्यान में लाने के लिए वहां कोई मुद्दा नहीं है। देखना होगा कि सर्वोच्च न्यायालय विधायिका को स्वच्छ करने में सफल हो पाएगा या नहीं ?
(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)