सोशल मीडिया तथा सेना
सैन्यकर्मियों के लिए सोशल नेटवरकिंग प्लेटफार्मों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की नीति देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई है
लखनऊ। आजकल सोशल मीडिया लोगों के जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनता जा रहा है। परन्तु जवानों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध के आदेश पर बहस छिड़ गई है। मामला दिल्ली उच्च न्यायालय भी पहुंचा जहां न्यायालय ने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देने से मना करते हुए कठोर टिप्पणी कर दी। साथ ही प्रतिबन्ध का मूल आदेश प्रस्तुत करने को कहा क्योंकि बकौल, न्यायालय उक्त याचिका अखबारों पर छपी खबरों के आधार पर दायर की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अगर उन्हें फेसबुक ज्यादा पसंद है तो उनके पास इस्तीफा देने का विकल्प मौजूद है। अदालत ने कहा कि उन्हें फैसला लेना है। सैन्य अधिकारी को एफबी अकाउंट भी डिलीट करने के लिए कहा, क्योंकि सैन्यकर्मियों के लिए सोशल नेटवरकिंग प्लेटफार्मों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की नीति देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई है।
पीठ ने कहा, कोई अंतरिम राहत देने का सवाल ही नहीं उठता है, खासकर तब जब मामला देश की सुरक्षा और रक्षा से जुड़ा हो। जानकारी हो दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से सेना में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को लेकर अपनी नीति कोर्ट में प्रस्तुत करने को कहा।
न्यायालय ने यह आदेश ले कर्नल पीके चौधरी की याचिका पर दिया जिन्होंने मिलिटरी इंटेलिजेंस के महानिदेशक के आदेश को चुनौती दी है जिसमें भारतीय सेना के सभी कर्मियों को फेसबुक, इन्स्टाग्राम और 87 अन्य सोशल मीडिया एप्लिकेशन्स को हटा देने को कहा गया। बताया गया कि कर्नल चौधरी के परिवार के लोग भारत के बाहर रहते हैं और सोशल मीडिया तक पहुंच नहीं होने से उन्हें अपने परिवार के साथ संपर्क में असुविधा होगी। न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलाव और न्यायमूर्ति आशा मेनन ने कहा कि इस नीति पर गौर करने के बाद ही वे इसके मेरिट पर विचार कर सकते हैं। कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि यह याचिका सेना में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को लेकर अखबारों में छपी रिपोर्ट के आधार पर दायर की गई है और इसमें वास्तविक आदेश को पेश नहीं किया गया है। अदालत ने हालांकि, अपीलकर्ता को कोई भी अंतरिम राहत देने से मना कर दिया जिसने अपने फेसबुक अकाउंट को डिलीट किए जाने के बजाय उसको निष्क्रिय कर दिए जाने की अनुमति की मांग की थी, क्योंकि ऐसा करने से उसके महत्त्वपूर्ण डाटा हमेशा के लिए खो जाएंगे। न्यायालय ने कहा, ..चूंकि मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है इसलिए इसमें कोई अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती। याचिककर्ता के अनुसार सैनिक देश के दूर दराज के इलाके में पोस्टिंग के दौरान फेसबुक जैसे सोशल मीडिया नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म के माध्यम से अपने परिवार में उत्पन्न होनेवाले कई तरह के मसलों से निपटते हैं। इसके माध्यम से होने वाला जुड़ाव परिवार से दूर रहने की कमी को पूरा कर देता है। याचिका में कहा गया है कि प्रतिबंध याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और इसमें बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी और निजता की आजादी भी शामिल है और सिर्फ संसद ही सैनिकों के मौलिक अधिकारों में तब्दीली कर सकता है। अनुच्छेद 33 संसद को यह अधिकार देता है पर प्रतिवादी नंबर 1 संसद नहीं है। सोशल नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म पर पाबंदी और अकाउंट डिलीट करने का आदेश देकर प्रतिवादी नंबर 1 ज्यादा अधिकार हड़पना और हासिल करना चाहता है जबकि यह अधिकार सिर्फ संसद के पास है। इस बारे में भारत संघ बनाम जीएस बाजवा (2003) 9 एससीसी 630 मामले में आए फैसले का सन्दर्भ दिया गया। यह भी कहा गया है कि सोशल नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म पर प्रतिबंध की बात सेना अधिनियम, 1950 की धारा 21 में या केंद्र सरकार ने जो इस बारे में नियम बनाए हैं उसमें नहीं कही गई है। याचिका में कहा गया है कि एक ओर तो सैनिकों को सोशल मीडिया का प्रयोग नहीं करने को कहा जा रहा है दूसरी ओर प्रतिवादी सैनिकों को सोशल नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म पर उचित तरीके से व्यवहार करने के बारे में जानकारी देने की योजना बना रहे हैं। इस तरह का प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है क्योंकि नागरिक प्रशासन और राजनीति में ऐसे कई लोग हैं जिनके पास नियमित सैनिकों की तुलना में कहीं ज्यादा ऊँचे स्तर की संवेदनशील सूचनाएँ होती हैं। पर इन्हें सोशल मीडिया का प्रयोग नहीं करने को नहीं कहा जा रहा है। इसलिए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया है कि वह प्रतिवादी को 6 जून, 2020 को जारी नीति को वापस लेने को कहे जिसमें सैनिकों को अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स को बन्द रखने या डिलीट करने को कहा गया है। याचिका में यह भी कहा गया है कि मिलिटरी इंटेलिजेंस के महानिदेशक को संविधान के तहत सशस्त्र सैनिकों के मौलिक अधिकारों को संशोधित करने या उन पर पाबंदी लगाने का अधिकार नहीं है। ध्यान रहे संघर्ष के बाद भारत सरकार ने चीन के 59 एप पर प्रतिबंध लगा दिया। इनमें टिकटॉक हेलो, वीचैट, यूसी न्यूज जैसे प्रमुख एप भी शामिल हैं। ये एप्प भारत में पूरी से काम करना बंद हो चुके हैं। सरकार का कहना था कि इन एप के गलत इस्तेमाल को लेकर कई शिकायतें भी मिल रही थी। ये एप एंड्रायड एवं आईओएस प्लेटफार्म से डाटा चोरी करने में भी सहायक है जिससे देश की सुरक्षा खतरा था।
इस बैन के चलते सेना ने सैनिकों के लिए फेसबुक और इंस्टा समेत पूरे 89 मोबाइल एप पर बैन लगा दिया है। बताया जा रहा है कि सैनिकों का सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना देश की सुरक्षा पर खतरा हो सकता है। कई बार सैनिक अनजाने में ऐसी पोस्ट कर देते हैं जो सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील हो सकती है।
ज्ञात हो भारतीय सेना में कार्यरत 13 लाख जवानों को 89 ऐप की एक लिस्ट दी गई है जिसे उन्हें 15 जुलाई तक अनइंस्टॉल कर देना था। इस लिस्ट में अमरीकी सोशल नेटवर्किंग साइट्स फेसबुक, इंस्टग्राम, ट्रू-कॉलर भी शामिल हैं। इन एप पर बैन लगाने की वजह सुरक्षा कारणों को बताया गया है। सेना की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि इन सभी एपीपी को बैन करने का मकसद संवेदनशील जानकारियों को लीक होने से बचाना है। सोशल मीडिया सेना के लिए कितना घातक है, इस का विश्लेषण आवश्यक है ।
सोशल मीडिया ऐप इस्तेमाल करने का सबसे बड़ खतरा डेटा की चोरी है। हालांकि ये खतरा सभी के लिए है लेकिन जवानों के लिए ये एक गंभीर समस्या है। ज्यादातर ऐप कई लोकेशन ट्रैक कर सकते हैं। माइक्रोफोन या कैमरे का इस्तेमाल कर सकते हैं जो सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक साबित हो सकता है। इन सब के अलावा कुछ एप्प तो गैलरी में मौजूद फोटो वीडियो को भी एक्सेस कर सकते हैं।
सेना के जवान सोशल मीडिया के जरिए जासूसी और हनीट्रैप का शिकार हो जाते हैं, ऐसे कई मामले सामने आए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान लगातार फेक आईडी के जरिये भारतीय सुरक्षा तंत्र में घुसने की कोशिश कर रहा है। वहां की खुफिया एजेंसी अक्सर भारतीय सेना को हनीट्रैप करने की कोशिश करती है। उल्लेख है कि जम्मू-कश्मीर में जवानों द्वारा ड्यूटी के समय या ऑपरेशन के समय मोबाइल बन्द रखने की मांग की जा रही है। बताया जाता है कि ऐसी स्थिति में जवान के फोन पर काल आने से मोबाइल फ्लश हो जाता है। इससे आतंकवादी जवान की पोजिशन जान लेते हैं । मुठभेड़ों में अनेक जवानों के वीरगति को प्राप्त होने में यह भी बड़ा कारण साबित हो रहा है। सोशल मीडिया या मोबाइल जवानों की सुरक्षा के साथ ही सेना की रणनीति के लिए बड़े खतरे के तौर पर देखे जा रहे हैं। परन्तु कठिन परिस्थितियों में ड्यूटी पर तैनात जवानों के लिए अपने परिजनों से सम्पर्क का एकमात्र माध्यम है। ले कर्नल पी के चैधरी की याचिका में जिन तथ्यों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है , वे बेहद महत्वपूर्ण हैं। सेना अधिकारी अंकुश चैधरी की शहादत पर उनके परिजनों ने सेना से जो सवाल किए हैं, उससे पता चलता है कि सेना के अंदरूनी हालात अच्छे नहीं हैं। समीचीन होगा यदि जवानों की आवाज को अनुशासन के नाम पर दमन करने की बजाय सरकार उन्हें बेहतर वातावरण प्रदान करे।
(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)