अब लाशें भी बन रही हैं खबर
अंतिम संस्कार के बाद शोक को भुलाने के कुछ उपक्रम होते हैं जिन्हें अलग अलग धर्मो में अलग अलग नाम दिये गये हैं।
लखनऊ। लाशें अर्थात मृत शरीर जला दिया जाता है अथवा दफना दिया जाता है। इसके बाद उसकी कहानी खत्म हो जाती है। अंतिम संस्कार के बाद शोक को भुलाने के कुछ उपक्रम होते हैं जिन्हें अलग अलग धर्मो में अलग अलग नाम दिये गये हैं। मृत शरीर के अंतिम दर्शन का आकर्षण अलग तरह का होता है क्योंकि उस शरीर को चलता फिरता फिर नहीं देख पाएंगे। इसलिए परिजन अंतिम दर्शन करते समय लिपट कर रोते हैं। कोरोना की महामारी ने बुरी तरह से भयभीत कर रखा है। पहले बीमार होने पर डाक्टर के पास ले जाने की खबर से ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती थी, अब कोरोना के भय से डॉक्टरों के पास जाने से डर लगता है। कितने ही लोग फांसी लगा कर मर गये। उनकी लाशें भी खबर बन रही हैं। पहले कभी कभार पोस्टमॉर्टम गृह में किसी शव को खुले में छोड़ दिया जाता था तो उसकी खबर बनती थी, आज लाशों के अंतिम संस्कार की समस्या है। कर्नाटक से ही खबर मिली थी कि वहां कोविड-19 से मरने वालों के शव एक गड्ढे में फेंके जा रहे थे। अब वहीं से समाचार मिला कि शव दाह के लिए लाइन लगी हुई है। कोरोना ने जब इस साल के शुरू में ही पांव पसारे थे और ब्रिटेन में सरकार की उदासीनता के चलते मौतों की संख्या बढ़ने लगी तो अस्पतालों के डाक्टर बहुत दुखी होकर यह कहते थे कि हमने तो अब मृतकों की संख्या बताना ही बंद कर दिया है। कोरोना की बीमारी से पहले लाशें इस तरह की खबर नहीं बनी थीं।
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों ने खतरनाक रूप ले लिया है। कोरोना वायरस की वजह से बेंगलुरू में इतनी मौतें हो रही हैं कि इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में अंतिम संस्कार के लिए लाइन लगानी पड़ रही है। शहर के अलग-अलग इलाकों से आ रहीं एंबुलेंस शवदाह गृह के बाहर कतार में खड़ी हैं और कई-कई घंटों का समय लग रहा है।बेंगलुरु के इस इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में कोरोना से होने वाली मौत के साथ ही दूसरी वजहों से होने वाली मौत के बाद शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में काम करने वाले कर्मचारियों ने बताया कि एक ही जगह पर सामान्य रूप से होने वाली मौत और कोरोना मरीजों के शव का अंतिम संस्कार किए जाने से दिक्कत बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि कोरोना मरीज के शव का अंतिम संस्कार होने के बाद कुछ देर के लिए दूसरे शव को आने से रोक दिया जाता है। ऐसे में शवदाह गृह के बाहर वाहनों की लंबी कतार लगती जा रही है। बृहत बैंगलोर महानगर पालिका के आंकड़ों के मुताबिक बेंगलुरु में 1 मई से 17 जुलाई तक 4,278 लोगों की मौत हो चुकी है। महानगर पालिका की ओर से दिए गए आंकड़ों में कोरोना के साथ सामान्य मौत के आंकड़ों को भी रखा गया है। बता दें कि कर्नाटक में कोरोना मरीजों की संख्या 59,652 हो गई है जबकि राज्य में अब 36,637 एक्टिव केस हैं। राज्य में अब तक 21,775 लोग कोरोना से ठीक हो चुके हैं। कुल 1240 लोगों की मौत हो चुकी है।
देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या ने 18 जुलाई को सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। देश में पहली बार कोरोना के नए मरीजों का आंकड़ा 38 हजार के पार पहुंच गया। शनिवार को कोरोना के 38 हजार 902 कोरोना केस सामने आए, जिसके बाद देश में कुल कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 10 लाख 77 हजार 618 हो गई। पिछले 24 घंटे में कोरोना महामारी के चलते 543 मरीजों ने दम तोड़ दिया है। देश में एक ही दिन मंे कोरोना के 34,884 नए मामले सामने आए थे जबकि 671 लोगों की मौत हुई थी। कोरोना के अब 3,73,379 एक्टिव केस हैं।कोरोना महामारी से अब तक 26,816 मरीजों की मौत हो गई है और 6,77,422 लोग ठीक हो चुके हैं। एक विदेशी भी ठीक होकर लौट चुका है। इन सबके बीच अच्छी बात ये ही है कोरोना संक्रमित मरीजों के ठीक होने का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। देश में रिकवरी रेट 65।24ः हो गया है। कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा महाराष्ट्र प्रभावित दिख रहा है लेकिन कर्नाटक में भी हालात चिंताजनक हैं।
इस बीमारी ने सारी व्यवस्था को अस्त व्यस्त कर दिया है। उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल में भाजपा नेताओं के कोरोना संक्रमण की चपेट में आने के बाद पार्टी संगठन में कुमाऊं से लेकर देहरादून तक हड़कंप मचा है। पार्टी ने प्रदेश में पार्टी गतिविधियों और सरकार की नीतियों के प्रभाव की समीक्षा के लिए भेजे अपने तीनों महामंत्रियों को वापस बुला लिया है। दरअसल, मार्च में कोरोना संक्रमण के बाद से ही भाजपा ने वर्चुअल एक्टिविटीज की ओर फोकस करना शुरू कर दिया था। जून में राष्ट्रीय एजेंडे के तहत पार्टी ने वर्चुअल रैलियां और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की। ये सिलसिला 10 जुलाई को समाप्त हुआ। इसके बाद समीक्षा बैठक शुरू हुई, उसी दौरान पार्टी नेताओं के कोरोना पॉजिटिव होने का सिलसिला शुरू हो गया, जिसके बाद महामंत्रियों को वापस बुलाने और सभी कार्यक्रम स्थगित करने का निर्णय लिया गया। कोरोना काल में की गई गतिविधियों, सरकार के कार्यक्रमों की विधानसभा स्तर तक समीक्षा के लिए भाजपा ने अपने तीनों महामंत्रियों को प्रदेश के दौरे पर भेजा था। महामंत्रियों को सभी 70 विधानसभाओं में पार्टी पदाधिकारियों से वन टू वन कर फीडबैक लेना था। महामंत्री संगठन अजेय कुमार और महामंत्री राजेंद्र भंडारी को गढ़वाल और पार्टी महामंत्री कुलदीप कुमार को कुमाऊं के दौरे पर भेजा गया। तीनों महामंत्री अभी तक 70 में से 35 विधानसभाओं में पार्टी पदाधिकारियों की मीटिंग कर समीक्षा कर चुके थे। इस प्रकार कोरोना ने सारे कार्यक्रम अस्त-व्यस्त कर दिये हैं।
दिल्ली के लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल की मोर्चरी में रखे शवों को लेकर प्रकाशित और प्रसारित मीडिया रिपोर्ट पर दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार और तीनों नगर निगमों को नोटिस जारी करते हुए कहा था कि इस बेहद गंभीर और संवेदनशील मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सुनवाई करेंगे और देखेंगे कि इसमें मानवाधिकार से जुड़े किन-किन अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
दरअसल मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, लोक नायक अस्पताल में विशेष तौर पर बनाए गए कोविड-19 मोर्चरी में 108 शव रखे हुए थे। सभी 80 रैक भरे हुए थे। यानी यहां नए शवों को रखने के लिए कोई जगह नहीं बची। क्योंकि कोरोना संक्रमण की वजह से मृत 28 मरीजों के शव जमीन पर एक के ऊपर एक पड़े हुए थे। यह हालत तब थी जब दिल्ली में कोविड-19 का इलाज करने वाला सबसे बड़ा अस्पताल लोकनायक जयप्रकाश ही है।
कोर्ट ने इस बाबत सरकार और नगर निगम से जवाब तलब किया। कोर्ट ने नोटिस के जरिए इस स्थिति के लिए जिम्मेदारी तय करने और इससे निपटने के लिए रणनीति का पूरा ब्योरा तलब किया। दिल्ली में स्थिति इतनी भयावह है कि 5 दिन पहले मरने वाले लोगों के शवों का अंतिम संस्कार नहीं किया जा सका था। लकड़ी से दाह संस्कार कराने को लेकर श्मशान का संचालन करने वाले कर्मचारियों ने मना कर दिया।
जैसे-जैसे महामारी से मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है वैसे अस्पतालों की मोर्चरी पर भी दबाव बढ़ रहा है। एक तरफ शव की सही देखभाल से अंतिम संस्कार तक गरिमा बनाए रखनी है। दूसरी ओर मोर्चरी में बड़ी संख्या में शव पहुंचने से स्थिति पर काबू रख पाना मुश्किल हो रहा है। मोर्चरी में आए शवों की रिश्तेदारों से पहचान कराना भी स्टाफ के लिए बड़ी दिक्कत वाला है। बहुत केस में रिश्तेदार पहचान करने के लिए ही नहीं आ रहे। वे पहले ये जानना चाहते हैं कि मृतक की रिपोर्ट पॉजिटिव है या नेगेटिव। ये जान लेने के बाद ही वो तय करते हैं कि मोर्चरी आना है या नहीं। उन्हें डर है कि कहीं वो यहां आकर खुद ही संक्रमित न हो जाएं।
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)