डिजीटल युग में सेंधमारी
इस स्टडी में चीन के एक डिफेंस एक्सपर्ट के हवाले से लिखा गया था कि 20वीं सदी में जैसे परमाणु युद्ध था, वैसे ही 21वीं सदी में साइबर युद्ध है
लखनऊ। इस स्टडी में चीन के एक डिफेंस एक्सपर्ट के हवाले से लिखा गया था कि 20वीं सदी में जैसे परमाणु युद्ध था, वैसे ही 21वीं सदी में साइबर युद्ध है। बिटकॉइन एक तरह की क्रिप्टोकरेंसी है, जिसे डिजिटल करेंसी भी कहा जा सकता है।
ट्विटर के लिए 15 जुलाई की रात भयावह रही। इस हमले से अमेरिका के कई हाई प्रोफाइल ट्विटर अकाउंट हैक कर लिए गए। इसमें अमेरिकी नेता जो बिडन, टेसला के सीईओ एलन मस्क, माइक्रोसॉफ्ट के सहसंस्थापक बिल गेट्स और एपल के कई और अहम अकाउंट शामिल हैं। इसके बाद कई घंटों तक ट्विटर ने ब्लू टिक वाले सभी अकाउंट को बंद कर दिया। है। ट्विटर हैंडल हैक करने के बाद इन अकाउंट से एक खास तरह के मैसेज पोस्ट किए गए। इनके अकाउंट से एक लिंक पोस्ट किया गया और बिटकॉइन मांगे गए। ट्विटर हैंडल हैक करके दावा किया गया कि लोगों को बिटकॉइन डबल करके वापस किए जाएंगे। एक तरफ जहां टेस्ला के प्रमुख एलन मस्क के अकाउंट से पोस्ट किए गए ट्वीट में भी कहा गया कि अगले एक घंटे तक बिटकॉइन में भेजे गए पैसों को दोगुना करके वापस लौटाया जाएगा। बिटकॉइन के पते के लिंक के साथ ट्वीट में लिखा गया, 'मैं कोविड महामारी की वजह से दान कर रहा हूं.' पोस्ट किए जाने के कुछ ही मिनटों में ये ट्वीट डिलीट हो गए। तो वहीं दूसरी तरफ बिल गेट्स के ट्विटर अकाउंट पर लिखा गया कि हर कोई मुझसे कह रहा है कि ये समाज को वापस देने का समय है, तो मैं कहना चाहता हूं कि अगले तीस मिनट में मुझे जो पेमेंट भेजी जाएगी मैं उसका दोगुना लौटाऊंगा। आप 1000 डॉलर का बिटकॉइन भेजिए, मैं 2000 डॉलर वापस भेजूंगा। इतने बड़े प्रोफाइल से इस तरह का ट्वीट किया जाएगा तो जाहिर है कि हर कोई हैरान रह जाएगा क्योंकि जिन अकाउंट को निशाना बनाया गया उन सबके लाखों फॉलोअर्स हैं। साइबर सुरक्षा के प्रमुख अल्पेरोविच का कहना है कि आम लोगों को कुछ हद तक नुकसान पहुंचा है। हैकर्स ने लगभग 300 लोगों से एक लाख 10 हजार डॉलर के बिटकॉइन निकाले हैं।
सूचना तकनीक और डिजिटल डिवाइस मानव सभ्यता के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारे जीवन का शायद ही कोई पक्ष ऐसा है, जो इंटरनेट, स्मार्ट फोन, कंप्यूटरों आदि के वैश्विक संजाल से परे हो। ऐसे में न केवल अपराधी साइबर स्पेस में सेंध मारते रहते हैं, बल्कि आतंकी संगठनों के लिए भी यह एक मुफीद जगह बन चुका है तथा देशों की आपसी दुश्मनी का एक अहम मोर्चा यहां भी खुल गया है।जिस तरह इस वक्त कई देश क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, उसी तरह डिजिटल दुनिया में एक नेटवर्क तक पहुंच हासिल करने के लिए साइबर हमले किए जाते हंै। किसी सिस्टम का एक्सेस और डेटा पर कंट्रोल पाने करने के लिए हैकर्स अनैतिक साधनों का इस्तेमाल करते हैं. ये हमलावर एक कमजोर सिस्टम पर हमला करने और उस पर कंट्रोल पाने के लिए हैकिंग करते हैं। साइबर अटैक सिस्टम को हैक करने, क्रिप्टोकरेंसी के रूप में पैसे की मांग के लिए या फिर डार्क वेब पर डेटा बेचते के लिए इस्तेमाल किया जाता है। साल 2009 में अमेरिकी पॉलिसी थिंक टैंक रानडा की एक स्टडी आई थी। इस स्टडी में चीन के एक डिफेंस एक्सपर्ट के हवाले से लिखा गया था कि 20वीं सदी में जैसे परमाणु युद्ध था, वैसे ही 21वीं सदी में साइबर युद्ध है। कहने का मतलब ये था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए साइबर युद्ध अब बेहद जरूरी हो गया है। 15-16 जून को लद्दाख में गलवान घाटी के पास भारत-चीन की सेना के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी। उसके बाद ही भारत पर चीनी हैकर्स की ओर से साइबर अटैक होने का अंदेशा था और इसके लिए एडवाइजरी भी जारी हुई थी। हिंसक झड़प के बाद चीनी हैकर्स ने 5 दिन तक 40 हजार 300 से ज्यादा बार साइबर हमले किए थे। साइबर वॉर को लेकर चीन का रवैया हमेशा आक्रामक रहा है। चीन में साइबर वॉर के लिए बाकायदा हैकर्स ग्रुप हैं और माना जाता है कि दुनिया की सबसे बड़ी हैकर आर्मी जिसमें 3 लाख से ज्यादा हैकर्स काम करते हैं के पास है।
चीन ने इन सबकी शुरुआत अमेरिका को देखकर की थी। दरअसल, 90 के दशक में इराक के खिलाफ अमेरिका ने युद्ध छेड़ दिया था। मकसद था कुवैत को इराक के कब्जे से छुड़ाना। इस लड़ाई में अमेरिका का साथ 34 देशों ने दिया था। इस लड़ाई को गल्फ वॉर या खाड़ी युद्ध कहते हैं। इस युद्ध में अमेरिकी सेना ने तकनीक का सहारा लिया था। उस समय इसे साइबर वॉरफेयर नहीं, बल्कि इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर कहते थे। यानी तकनीक के जरिए दूसरे देश के इन्फॉर्मेशन सिस्टम में सेंध लगाना और उससे सारा डेटा निकालना। इस तकनीक से अमेरिका और उसके समर्थित देशों को काफी मदद मिली थी और आखिर में जीत भी इन्हीं की हुई। खाड़ी युद्ध में तकनीक का इस तरह इस्तेमाल देखने के बाद ही चीन को भी महसूस हुआ कि कैसे नई तकनीक, खासतौर से इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक युद्ध से बचने में बहुत जरूरी भूमिका निभा सकती है। गल्फ वॉर के दो साल बाद 1993 में चीनी सेना ने अपनी स्ट्रैटेजिक गाइडलाइन में तय किया कि कैसे किसी युद्ध को जीतने के लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी मददगार साबित हो सकती है। गल्फ वॉर के करीब 13 साल बाद 2003 में इराक पर फिर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने हमला कर दिया। इस बार मकसद था इराक की सत्ता से सद्दाम हुसैन को बेदखल करना। अप्रैल 2003 में सद्दाम हुसैन की सत्ता चली गई। इस युद्ध में भी तकनीक की मदद ली गई। 2004 में इराक युद्ध के एक साल बाद चीन ने फिर गाइडलाइन में बदलाव किया और इस बार तय किया कि कैसे आम्र्ड फोर्सेस को युद्ध जिताने में सूचनाएं जरूरी फैक्टर साबित होती हैं। इसके बाद 2013 में मिलिट्री साइंस एकेडमी की एक स्टडी आई थी, जिसमें चीन ने पहली बार माना था कि आज के समय में किसी जंग को जीतने में साइबर स्पेस बहुत जरूरी है। इतना ही नहीं, पीएलए का यही मानना है कि युद्ध के हालात में सेना पर खर्च करने की बजाय दुश्मन देश के खिलाफ साइबर वॉर छेड़ना फायदे का सौदा है। 15 जुलाई को हुए हैक के बाद साइबर हमले और साइबर सुरक्षा और जहां बिटकाॅइन चर्चा का विषय हैं।
यह पहली बार नहीं है जब ट्विटर में हैकिंग का मामला सामने आया हो। इससे पहले भी कई बार कुछ देशों में हैकिंग के मामले देखने को मिले हैं। हालांकि तब किसी एक बड़े अकाउंट या कुछ अकाउंट को टारगेट किया जाता था। मगर इस बार बड़ी संख्या में हस्तियों को निशाना बनाया गया और इसका एक तरह से मकसद चूना लगाना था क्योंकि पहली बार बिटकॉइन मांगे गए हैं। दरअसल ये हैकिंग एक बिटकॉइन स्कैम है, इसके लिए सबसे पहले जाना होगा कि ये बिटकॉइन क्या है। जैसा कि हम जानते हैं सभी देशों की अपनी करेंसी होती है। जिस तरह से रुपये और डॉलर हैं, उसी तरह अब बिटकॉइन हैं। बिटकॉइन एक तरह की क्रिप्टोकरेंसी है, अंग्रेजी शब्द 'क्रिप्टो' का अर्थ गुप्त होता है। बिटकॉइन का आविष्कार साल 2009 में सतोषी नाकामोटो ने किया था। साल 2009 में लॉन्च होने के समय बिटकॉइन की वैल्यू 0 थी लेकिन आज इसकी कीमत हजारों डॉलर में पहुंच चुकी है।
वहीं अगर बिटकॉइन के नुकसान की बात करें तो बिटकॉइन का भाव देखते ही देखते कई बार काफी नीचे गिर जाता है। इस वर्चुअल करेंसी से लेन देन करना जोखिम से भरा हुआ है। हालांकि इस करेंसी का ज्यादातर इस्तेमाल गैर-कानूनी कामों के लिए किया जाता है। ताकि पैसों को किसी भी एजेंसी द्वारा ट्रैक न किया जा सके, इससे कई बार साइबर अपराधों का नाम भी जुड़ चुका है। कुछ ऐसा ही ट्विटर में भी देखने को मिला है ऐसे में इस पहलू पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि जब बेहद प्रभावशाली लोगों और अरबों-खरबों के टर्नओवर वाली कंपनियों के सोशल मीडिया खातों को बड़े पैमाने पर हैक किया जा सकता है तथा सरकारी फाइलों की चोरी हो सकती है, तो आम लोगों का डेटा कैसे सुरक्षित रह सकता है।
(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)