शिक्षा को रोजगारपरक बनाने की जरूरत
विश्वविद्यालय रोजगारपरक सिलेबस को लागू कर कोरोना की इस लड़ाई में आत्मनिर्भरता की कड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं;
लखनऊ। वैश्विक महामारी के दौर में आत्मनिर्भरता के संकल्प को पूरा करने के लिए विश्वविद्यालय रोजगारोन्मुखी कोर्स शुरू करें। इससे जहां बेरोजगारी की समस्या दूर होगी, वहीं आर्थिक रूप से भी देश समृद्ध होगा। यह विचार हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवर पाल के हैं। उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना काल की स्थिति से निपटने के लिए भारतवासियों को स्वदेशी तथा आत्मनिर्भरता का जो मूल मंत्र दिया है, इससे देश का विकास होगा और भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान मिलेगी। उन्होंने कहा कि वर्तमान हालात के मद्देनज़र प्रदेश के सभी विश्वविद्यालय छात्रों के लिए रोजगारपरक पाठ्यक्रम शुरू करने में अपना योगदान करें। इस तरह के पाठ्यक्रमों से प्रदेश के युवाओं के लिए रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे में विश्वविद्यालय रोजगारपरक सिलेबस को लागू कर कोरोना की इस लड़ाई में आत्मनिर्भरता की कड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
आज की युवा पीढ़ी रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही है। भारी भरकम फीस देने के बाद प्राप्त की गई शैक्षणिक योग्यता का रोजगार प्राप्त करने में कोई लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे में शुरू से ही रोजगार परक शिक्षा का विस्तार करना समय की मांग है। आज की युवा पीढ़ी का प्रमुख मुद्दा रोजगार परक शिक्षा को बढ़ावा नहीं दिए जाने से बढ़ रही बेरोजगारी है। यह समस्या नासूर बनती जा रही है। पढ़े-लिखे बेरोजगारों की विशाल फौज को देखकर लगता है कि शिक्षा को 'रोजगार परक' बनाया जाना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि जिन क्षेत्रों में रोजगार की अधिक संभावनाएं हैं, उनसे संबंधित शिक्षा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वर्तमान में रोजगार के लिए ही बच्चे स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ते हैं लेकिन उस पढ़ाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा बाद में उनके जीवन में शायद ही कभी काम आता है। देश के अधिकांश महाविद्यालयों में शिक्षा के नाम पर भाषा, साहित्य, इतिहास, राजनीति, समाजशास्त्र, विज्ञान आदि विषय ही पढ़ाए जाते हैं और इन विषयों की डिग्री लेने से किसी को कोई नौकरी मिलेगी, इसका कोई भरोसा नहीं। ऐसे में विषयों की पढ़ाई एवं उन पर होने वाले सरकारी खर्च के औचित्य पर प्रश्न उठना लाजिमी है।
रोजगार को शिक्षा से जोड़ना देश की आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यक है। इस लिहाज से अगर हरियाणा के शिक्षा मंत्री ने शिक्षा के स्तर में सुधार की बात कही है तो यह समय की मांग है। इसलिए वर्तमान दौर में प्रायोगिक और रोजगारमूलक शिक्षा पर विकसित देश भी ध्यान दे रहे हैं। हमें इस बात को अत्यधिक गंभीरता के साथ समझना चाहिए कि देश की आबादी जिस अनुपात में बढ़ रही है, उस अनुपात में रोजगार सृजन नहीं हो पा रहे हैं। आज से पचास साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। उस दौर में सामान्य स्नातक की शिक्षा पाने वाला किसी भी सरकारी अथवा अर्धसरकारी कार्यालय में नौकरी पा लेता था। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर रेलवे, किसी भी सरकारी आँफिस, टीचर, एजी आँफिस जैसे कार्यालयों में भी निरंतर रोजगार के अवसर पैदा हो रहे थे। वर्तमान में यह सब कुछ खत्म हो चुका है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शिक्षा को रोजगारपरक कैसे बनाया जाए? ऐसा क्या किया जाए, जिससे शिक्षा का रोजगार से सीधा नाता जुड़ जाए? इसलिए सिर्फ सरकारी नौकरी के लिए पढ़ाई करने की प्रवृत्ति को भी पढ़ाई के माध्यम से ही समाप्त किया जाना चाहिए। अब दुनिया और रोजगार के तौर तरीके भी बदल चुके हैं। अब सिर्फ पढ़ाई अथवा किताबी ज्ञान से ज्यादा अवसर नहीं मिल सकते। लिहाजा जिन तकनीकों का इस्तेमाल आम आदमी तक पहुंच बनाने में किया जा रहा है, वहां रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं। यह जरूरत आगे भी बनी रहेगी क्योंकि लोगों में आधुनिक तकनीक अत्यधिक लोकप्रिय हुई है और यह धीरे-धीरे आम दैनंदिन जीवन का हिस्सा बनता जा रहा है। कवंर पाल ने सही कहा है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए विजन जरूरी है। शिक्षा ऐसी हो जो रोजगार दे सके केवल डिग्री से काम नहीं चलेगा। शिक्षा स्तर में गिरावट के कारण समाज में चोरी, घूस, पक्षपात, अनैतिकता बढ़ी है।
वर्तमान में अगर हम राष्ट्रीय बेरोजगारी के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि कोरोना वायरस महामारी की वजह से देश में लगे लॉकडाउन के बाद से बेरोजगारी अपने चरम पर है। कोरोना की वजह से दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शुमार देशों में करोड़ों नागरिक रोजगार गंवा रहे हैं। लॉकडाउन और आर्थिक गतिविधियां सीमित होने के बाद इसका असर अब नजर आने लगा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमईआई) ने दावा किया है कि अप्रैल के तीसरे हफ्ते में देश में बेरोजगारी दर 26.2 फीसद पहुंच गई थी। यह मार्च में 8.4 फीसद थी। खास बात ये है कि ग्रामीण भारत में कभी भी बेरोजगारी दर दहाई अंक तक नहीं पहुंची थी, लेकिन यह भी 26.7 फीसद हो चुकी है। यह शहरों में 25.1 फीसद है। आकलन है कि अब तक देश में 14 करोड़ लोग अपना काम गंवा चुके हैं। कोरोना वायरस की वजह से कृषि गतिविधियों का थम जाना इस का कारण माना जा रहा है।
रोजगार को शिक्षा से जोड़ना देश की आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यक है। बच्चों और युवाओं के लिए सबसे खास होता है उनकी एजुकेशन और जॉब। बेरोजगारी देशभर में इस वक्त की बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। हमें रोजगार उपलब्ध कराने लायक वह ज्ञान चाहिए जो सिर्फ किताबी नहीं हो और हमारे जीवन में बाद में भी काम आये क्योंकि अब समय की मांग ही कुछ और है। ऐसें में भारत इजराइल के शैक्षणिक माॅडल को अपना सकता है। इजरायल में हर उम्र के लोग यानी प्राइमरी स्कूल के छात्रों से लेकर वरिष्ठ नागरिक तक, सरकार के विविध शैक्षणिक कार्यक्रमों का फायदा उठाते हैं। इजरायल में 5 से 16 साल की उम्र तक स्कूल में उपस्थिति अनिवार्य है और यहां 18 की उम्र तक पढ़ाई मुफ्त है। 3 से 4 साल तक के बच्चे प्री-स्कूल कार्यक्रम में शामिल होते हैं, जो कि न तो अनिवार्य है और न ही मुफ्त। इजरायल की शिक्षा प्रणाली अनूठी है। चूंकि 18 साल का होने के बाद सभी को इजरायल सैन्य सेवा में शामिल होना अनिवार्य है इसलिए सारे पाठ्यक्रम इस तरह बनाए गए हैं कि पढ़ाई पूरी करते ही स्टूडेंट्स मिलिटरी में शामिल हो सकें। यहां 18 साल की उम्र तक पढ़ाई मुफ्त है। इजरायल की 8 यूनिवर्सिटियों में मेडिकल और विज्ञान की पढ़ाई पर खासा जोर है। प्राथमिक विद्यालय में किताबी पढ़ाई के साथ-साथ संगीत, कला, फैशन डिजाइनिंग और फिजिकल एजुकेशन की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है। इजरायल में इस बात पर ज्यादा जोर रहता है कि छात्रों के रुझान को विकसित कर उसे लोकतंत्र, पर्यावरण संरक्षण और शांति के मूल्यों में दक्ष बनाया जाए। शिक्षा व्यवस्था और टेक्नोलॉजी को इजरायल के विकसित होने में मूल स्थान प्राप्त है। नई कंपनी की स्थापना और उसे बढ़ावा देने के क्षेत्र में भी इजराइल देश सबसे आगे है दुनिया की कई बड़ी कंपनियों का उद्गम भी इजरायल देश से हुआ है।
शिक्षा देश के आर्थिक विकास के साथ समाज और राजनीति दोनों को प्रभावित करती है और इसलिए आर्थिक विकास के लिए शिक्षित और कौशलयुक्त कामगारों का होना बहुत आवश्यक है, लेकिन भारत में शिक्षा पर खर्च किए जाने वाले धन में लगातार कटौती की जा रही है। आज भारत का एक भी विश्वविद्यालय ऐसा नहीं जिसकी गिनती दुनिया के 200 सबसे अच्छे विश्वविद्यालयों में होती हो। देश के 57 प्रतिशत छात्रों के पास रोजगार प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करने वाला कौशल नहीं है, तो इसमें बहुत अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भारत को बेरोजगारी की समस्या से निपटना है तो इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा और रोजगार को आपस में जोड़ा जाए और छात्रों के भीतर नए-नए कौशल और क्षमताएं पैदा की जाएं। यह तभी संभव हो सकता है जब शिक्षा नीति में आवश्यक बदलाव किया जाए और उस पर अपेक्षित मात्रा में खर्च किया जाए। वरना भारत के शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती ही जाएगी।
(नाज़नीन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)