अमेरिकी ड्रोन से पहले स्वदेशी ड्रोन

राफेल के बाद भारतीय सेना को एक नई ताकत मिली है। भारत ने अभ्यास लड़ाकू ड्रोन का ओडिशा के बालासोर में सफल परीक्षण किया है।

Update: 2020-09-23 14:03 GMT

नई दिल्ली। भारत ने आज स्वदेशी अभ्यास ड्रोन का सफल परीक्षण करके ड्रोन मुकाबले में भी अपना पक्ष मजबूत कर लिया है। इसके साथ ही अमेरिका से एमक्यू 9-ए रीपर ड्रोन खरीदने की भी तैयारी है। इस समय भारत को पाकिस्तान की तरफ से उतनी चिंता नहीं है जितनी चीन की सीमा पर है। चीन धोखेबाजी का सहारा ले रहा है। इसीलिए लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जारी तनाव के बीच रक्षा मंत्रालय अमेरिका से 30 जनरल एटामिक्स एम क्यू-9ए रीपर ड्रोन खरीदने की तैयारी कर रहा है। माना जाता है कि अमेरिका के साथ यह सौदा लगभग 3 बिलियन डालर यानी 22 हजार करोड़ रुपये का होगा। रक्षा मंत्रालय ने आंतरिक बैठकों के बाद छह रीपर मीडियम एल्टीट्यूड लांग एंड्योरेंस ड्रोनों प्रारंभिक लाट की खरीद का रास्ता साफ कर दिया है। माना जाता है कि सेना, नौसेना और वायुसेना के लिए 6 ड्रोन तो अमेरिका से तुरन्त खरीदे जाएंगे। यह भी कहा जा रहा है कि सेना के तीनों अंगों को दो-दो ड्रोन मिलेंगे।

राफेल के बाद भारतीय सेना को एक नई ताकत मिली है। भारत ने अभ्यास लड़ाकू ड्रोन का ओडिशा के बालासोर में सफल परीक्षण किया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अभ्यास-हाईस्पीड एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट का फ्लाइट टेस्ट 22 सितम्बर को किया। भारतीय सशस्त्र बलों को अभ्यास लड़ाकू ड्रोन का काफी लाभ मिलेगा।

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अभ्यास के सफल उड़ान परीक्षण को बड़ी सफलता करार दिया है। राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, डीआरडीेओ ने आईटीआर बालासोर से अभ्यास-हाई-स्पीड एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट के सफल उड़ान परीक्षण के साथ एक मील का पत्थर पार किया है। इसका इस्तेमाल विभिन्न मिसाइल प्रणालियों के मूल्यांकन के लिए एक लक्ष्य के रूप में किया जा सकता है। इस उपलब्धि के लिए डीआरडीओ और इससे जुड़े लोगों को बधाई।

अभ्यास ड्रोन को डीआरडीओ के एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (एडीई) द्वारा डिजाइन और विकसित किया गया है। इसे ट्विन अंडरस्लैंग बूस्टर का उपयोग करके लॉन्च किया गया है। डीआरडीओ ने अभय को एक इन-लाइन छोटे गैस टर्बाइन इंजन पर डिजाइन किया है। यह डिवाइस स्वदेशी रूप से विकसित माइक्रो-इलेक्ट्रो-मैकेनिकल सिस्टम-आधारित प्रणाली है। इसका प्रयोग नेविगेशन के लिए किया जाता है। डीआरडीओ ने इसे खास तरह से डिजाइन किया है। पूरे ढांचे में पांच मुख्य हिस्से हैं, जिसमें नोज कोन, इक्विपमेंट बे, ईंधन टैंक, हवा पास होने के लिए एयर इंटेक बे और टेल कोन हैं।

अभ्यास ड्रोन एक छोटे गैस टर्बाइन इंजन पर काम करता है। यह एमईएमएस नेविगेशन सिस्टम और फ्लाइट कंट्रोल कंप्यूटर के सहारे चलता है। अभ्यास को पूरी तरह से स्वायत्त उड़ान के लिए तैयार किया गया है। अभ्यास ड्रोन में ईपीई से बना परिवहन और भंडारण के लिए बॉक्स है। इसके अंदर एक क्रॉस-लिंक पॉलीएथलीन फोम सामग्री है। इस पर मौसम, तरल बूंदे और कंपन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

अभ्यास के रडार क्रॉस-सेक्शन और विजुअल-इंफ्रारेड सिग्नेचर का प्रयोग विभिन्न प्रकार के विमानों और हवाई सुरक्षा उपकर्णों में किया जा सकता है। यह जैमर प्लेटफॉर्म और डिकॉय के रूप में भी कार्य कर सकता है।

इसके साथ ही अमेरिका से आधुनिक तकनीक का ड्रोन लिया जा रहा है। सेना से जुड़े सूत्रों ने बताया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की आगामी बैठक से पहले 30 ड्रोनों के लिए स्वीकृति की आवश्यकता (एओएन) को प्रमुखता से रखा जाएगा। अनुबंध को दो भागों में विभाजित किया जा रहा है। लगभग 600 मिलियन डॉलर (4,400 करोड़ रुपये) के छह एफ-9 अगले कुछ महीनों में एकमुश्त पैसे देकर खरीदे जाएंगे और तीनों सेनाओं को दे दिए जाएंगे। वहीं बाकी 24 ड्रोन अनुबंध में विकल्प के तहत अगले तीन वर्षों में हासिल कर लिये जाएंगे। इनमें से तीनों सेनाओं को 8-8 ड्रोन फिर दिए जाएंगे। यह सौदा पिछले तीन वर्षों से पाइपलाइन में है। साल 2017 में यह अत्याधुनिक ड्रोन सिर्फ भारतीय नौसेना के लिए खरीदा जाना था लेकिन बाद में इसे तीनों सेनाओं के लिए खरीदने का फैसला लिया गया। सरकार ने 2018 में अमेरिका द्वारा भारत को बिक्री के लिए एमक्यू-9 के सशस्त्र संस्करण को मंजूरी दे दी थी।

रक्षा मंत्रालय द्वारा हार्डवेयर खरीद में एओएन औपचारिक रूप से पहला कदम है। एओएन मामलों को अनुबंध में बदलने के लिए आमतौर पर कई साल लगते हैं। हालांकि ड्रोन खरीद को लेकर माना जा रहा है कि इसे बेहद छोटे समय सीमा में पूरा कर लिया जाएगा. इसे अमेरिकी सरकार के साथ भारत सरकार समझौते के तहत फास्ट-ट्रैक के जरिए खरीदेगी। छह ड्रोन अमेरिका से तुरंत लिये जाने की तैयारी रक्षा मंत्रालय कर रहा है। संभवतः अमेरिकी सशस्त्र बलों या उसके सहयोगियों ने पहले से ही ऐसे ड्रोनों का उत्पादन कर रखा हो। यह स्पष्ट नहीं है कि ड्रोन के शुरुआती बैच को हेलफायर मिसाइलों और अन्य एयर-टू-ग्राउंड मिसाइल से लैस किया जाएगा या नहीं। सौदे को तय करने के लिए रक्षा मंत्रालय की बैठकों को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है, जो स्थायी समिति के चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के रूप में अंतर-सेवा रक्षा अधिग्रहण पर फैसला करता है। रक्षा मंत्रालय भी इस सौदे को मंजूरी देने के लिए डीएसी की एक विशेष बैठक बुला सकता है। यह प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकारों के बीच हस्ताक्षरित अंतिम प्रमुख समझौता है. अमेरिका में इस साल नवंबर महीने में चुनाव होने हैं। संभवतः उससे पूर्व ही पहली खेप मिल जाएगी। इस प्रकार ड्रोन की ताकत से हमारी तीनों सेवाओं की क्षमता में बढ़ोत्तरी होगी।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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