शादी-ब्याह को लेकर कोरोना की सीख
शादी में सिर्फ 50 लोगों के शमिल होने की ही अनुमति है जिसका मतलब नो बैंड, बाजा और बारात। इससे एक अच्छी परंपरा बनी तो अच्छा रहेगा
लखनऊ। देश में कोरोना लॉकडाउन लगने के कारण कई शादियां बीच में ही रुक गई थीं। यहां तक कि शादी के कार्ड भी रद्दी में बिकने लगे लेकिन अनलॉक खुलने से अब शादी के जोड़ों को थोड़ी राहत मिली है। इस दौरान कोरोना के नियमों का पालन करते हुए कई जगह रुकी हुई शादियां भी सम्पन्न हो रही हैं तो कई जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए शादियों में ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर रोक है। बता दें कि शादी में सिर्फ 50 लोगों के शमिल होने की ही अनुमति है जिसका मतलब नो बैंड, बाजा और बारात। इससे एक अच्छी परंपरा बनी तो अच्छा रहेगा।
हरियाणा के फरीदाबाद में सेक्टर-30 गांव एतमादपुर में राजवीर उर्फ राजू बैसला ने अपनी बेटी भावना की शादी के तमाम तरह के नेग मात्र 101 रुपये में करके इसे यादगार बना लिया। राजवीर सिंह की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। उन्होंने गांव बुआपुर निवासी भंवर सिंह के बेटे सुनील से रिश्ता तय कर दिया और 29 जून को शादी तय हुई। सुनील दिल्ली के एक होटल में नौकरी करते हैं। बिना बैंड-बाजे के बारात एतमादपुर पहुंची। घोड़ी-बग्घी जैसे दिखावे भी नहीं हुए और घुड़चढ़ी के नाम पर बारात सीधे विवाह स्थल पर पहुंच गई और सुनील का टीका भी किया गया। जो लोग इस शादी में आए, उन्होंने शादी के तौर-तरीके को अच्छा बताया। शुरू से लेकर आखिर तक यानि चिट्टी पर, लगन, कन्यादान समेत तमाम तरह की अदायगी मात्र 101-101 रुपये में की गई। जहां कम खर्चे में शादियां करने वालों की सराहना हो रही है लेकिन इसी बीच कई केस ऐसे हैं जिन्होंने शादी जैसे समारोहों पर सवाल खड़े किए हैं।
बिहार की राजधानी पटना के नजदीक शादी का जश्न उस वक्त मातम में बदल गया, जब कोरोना संक्रमण की वजह से दूल्हे की मौत हो गई और शादी में शामिल होने वाले 95 लोग कोरोना संक्रमित हो गए। शादी में सारे नियम-कायदों को दरकिनार कर सैकड़ों लोग शामिल हुए थे। शादी 15 जून को हुई थी और कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट सोमवार यानी 29 जून को आई। जानकारी के मुताबिक, 30 साल का दूल्हा गुरुग्राम में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम करता था और शादी करने के लिए 12 मई को अपने गांव आया हुआ था। इस दौरान, उसमें कोरोना के लक्षण पाए गए थे, लेकिन परिवार ने जांच को गंभीरता से न लेते हुए शादी को प्राथमिकता दी। शादी के 2 दिन बाद उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और पटना एम्स ले जाते समय रास्ते में ही दूल्हे ने दम तोड़ दिया। प्रशासन ने केवल 50 लोगों को किसी भी शादी समारोह में शिरकत करने की अनुमति दी थी, लेकिन इस शादी में गांव के सैकड़ों लोग शामिल हुए थे।
इससे पहले राजस्थान के भीलवाड़ा में एक शादी समारोह में 250 लोगों को बुलाना दूल्हे के घरवालों पर भारी पड़ गया। बारात में कोरोना का संक्रमण ऐसा फैला कि शादी समारोह में हिस्सा लेने वाले 15 लोग संक्रमित हो गए। जबकि कोरोना की वजह से दूल्हे के दादा की मौत भी हो गई। दूल्हा और उसके पिता समेत सभी 15 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। राजस्थान सरकार ने बारात में गए 127 लोगों को क्वारनटीन किया है और इनके क्वारनटीन फैसिलिटी और इलाज पर होने वाले खर्च का जुर्माना दूल्हे के पिता पर लगाया है। अभी 6 लाख 26 हजार 600 रुपये का खर्च क्वारनटीन फैसिलिटी और कोरोना इलाज पर हुआ है। कोरोनाकाल की ये दो शादियां कोविड-19 के दौरान की गई लापरवाही को बताने के लिए काफी हैं। कुछ लोग इस समय फरीदाबाद में सिर्फ 101 रुपए नेग में शादी को आपदा में अवसर के रूप में देख रहे हैं। देश में कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए 22 मार्च से 31 मई 2020 तक लॉकडाउन रहा था।
शादियों में फिजूलखर्ची रोकने के लिए हमेशा से जतन होते रहे, दहेज विरोधी संगठन भी बने, पर कुछ नहीं हुआ लेकिन अब कोरोना काल में जहां कुछ लोग ही सही फिजूलखर्जी रोकने की कीमत समझने लगे हैं वहीं कुछ लोग अभी भी शादियों पर रुपए-पैसा खर्च करना अपनी शान समझते हैं। अपवाद छोड़ दें तो कोरोना काल में व्यवस्थाएं काफी बदल गई हैं। ऐसा नहीं है कि जिंदगी पूरी तरह ठहर गई है। महामारी के बीच विवाह हो तो रहे हैं मगर तरीका बदल गया है। पहले जहां शादियों में स्टेटस सिंबल के नाम पर लाखों रुपये खर्च किए जाते थे, वहीं अब कुछ हजार में समारोह निपट जाता है। इसमें न बैंड बाजे होते हैं न ही बरात और डीजे का शोर होता है। साधारण तरीके से यह कार्यक्रम संपन्न हो रहे हैं। कोरोना काल से पहले लाखों रुपये सजावट, लजीज व्यंजन, कपड़ों आदि में वर-वधू पक्ष के खर्च हो जाते थे। मकसद यही रहता था कि शादी में आने वालों की वाहवाही मिल सके। महंगा से महंगा गेस्ट हाउस पहली पसंद होता था। सैकड़ों लोग तक शादी में जुटते थे, वो भी सिर्फ इस लिए ताकि समाज में नाम हो। विश्व भर में अलग-अलग मुद्दों पर शोध करने वाली कंपनी केपीएमजी की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में शादियों का कारोबार अमेरिका के 70 बिलियन डॉलर के कारोबार के बाद, दूसरे नंबर पर करीब 50 बिलियन डॉलर (36 खरब रुपये) का है। शादी-ब्याह में खर्चों में कमी की बात हमेशा की जाती रही है, मगर समाज में यह बुराई इतने अंदर तक दाखिल हो चुकी है कि इसको रोक पाना मुश्किल दिखाई देता था लेकिन कोरोना ने इस पर लगाम लगाई है। अपनी झूठी शान को बनाये रखने के लिए लोग शादी में खूब खर्च करते हैं चाहे इसके लिए कर्ज तक ही क्यों न लेना पड़े। मगर अक्सर यह खर्च दूल्हे वालों की तरफ से मांग के तौर पर भी होते हैं। हैरत की बात तो यह है कि जब अपनी बेटी की शादी की बात होती है तब ये खर्च बहुत चुभते हैं मगर, जब लड़के की शादी करने निकलते हैं, तब मांग यह होती है कि हमारी इज्जत का ख्याल रखते हुए बारातियों का शानदार स्वागत हो और लोग बारातियों की संख्या पर भी काबू नहीं रखना चाहते हैं।
शादी का मतलब फिजूलखर्ची नहीं है। शादी का मतलब है कि जिसके साथ हमने सात फेरे लिए है, उस जीवनसाथी का हमेशा ख्याल रखें। सादगी के साथ भी शादी की जा सकती है। सोचिए, गर शादियां सादगीपूर्वक होने लगें तो लोग बेटियों को भी बोझ नहीं समझेंगे। जन्म से ही उन्हें बेटी की शादी में होने वाले खर्च की चिंता नहीं सताएगी। इससे कन्या भ्रूण हत्याओं में भी कमी आएगी। युवाओं को चाहिए कि वे अपनी शादियों के भव्य तमाशे में पैसा बहाने की अपेक्षा समझदारी से पैसा खर्च करें। इसके लिए अपने माता-पिता से भी इस बात पर विचार करें। शादी में बेवजह दिखावे पर पैसा बर्बाद करने से तो बेहतर है कि किसी जरूरतमंद की मदद कर दी जाए और अगर जो पैसा बच जाएगा वह आपके भविष्य को बेहतर बनाने में काम आएगा। कोरोना काल में कम खर्च में शादी करना सीख रहे है फिर चाहे वो खुशी-खुशी हो या फिर मजबूरी। लोगों को यह परंपरा
केवल कोरोना के डर से नहीं अपनाना चाहिए बल्कि खुशी से इस महामारी के गुजर जाने के बाद भी कायम रखनी चाहिए।
(नाज़नीन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)