किसानों ! इस समय सिर्फ कोरोना से लड़ाई
काला दिवस कार्यक्रम में खापों के साथ-साथ सामाजिक व कर्मचारी संगठन भी शामिल होकर सरकार के खिलाफ रोष जताएंगे।
चंडीगढ़। हरियाणा में खाप पंचायतों के सहयोग से किसान 27 मई को आंदोलन के 6 माह पूरे होने पर काला दिवस मनाएंगे और बाद में रणनीति अनुसार एकजुटता के साथ आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी।
काला दिवस कार्यक्रम में खापों के साथ-साथ सामाजिक व कर्मचारी संगठन भी शामिल होकर सरकार के खिलाफ रोष जताएंगे। इसके लिए गांव स्तर पर कमेटियों का गठन किया जाएगा। यह निर्णय फौगाट खाप की कार्यकारिणी की दादरी के स्वामी दयाल धाम पर हुई मीटिंग में लिया गया। खाप प्रधान बलवंत नंबरदार की अध्यक्षता में हुई मीटिंग में कई फैसले लिये गए। करीब दो घंटे चली मीटिंग में कृषि कानूनों को लेकर सरकार के खिलाफ लंबी व आर-पार की लड़ाई लड़ने की रणनीति बनाई गई। खाप प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि अब खापों की अगुआई में किसानों द्वारा आंदोलन को तेज किया जाएगा। वहीं 27 मई को किसान आंदोलन के 6 माह पूरे होने पर कितलाना टोल पर भिवानी व दादरी के किसानों द्वारा काला दिवस मनाया जाएगा। काला दिवस को लेकर खाप के प्रत्येक गांव में कमेटियों का भी गठन करते हुए ड्यूटियां लगाई गई हैं। प्रत्येक गांव से महिलाओं की भी भागीदारी सुनिश्चित की गई है। किसानों के आंदोलन पर कुछ कहने की जगह इस समय सबसे बड़ी जरूरत कोरोना महामारी से लडने की है। कोरोना वायरस का संक्रमण अब गांवों में तेजी से फैल रहा है। खाप पंचायतों को भी सबसे पहले यह देखना होगा कि गांव के किसान इस घातक बीमारी से बचे रहें।
देशभर से और खासतौर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आये हजारों किसान पिछले साल अर्थात नवंबर 2020 के आखिर से तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) पंजाब के महासचिव परमजीत सिंह के अनुसार अगर किसान उस बीमारी से डरते भी हैं जो देश में पहले ही 1.6 लाख से अधिक लोगों की जान ले चुकी है तो उनके पास विकल्प भी क्या है। उन्होंने कहा, हमारी जान पहले ही खतरे में है। हम ठिठुरती सर्दी से डरे, गर्मी से डर रहे हैं और हां, हम इस बीमारी से भी डरे हुए हैं लेकिन और कोई विकल्प नहीं है। खाप प्रधान बलवंत नंबरदार ने बताया कि फौगाट खाप की कार्यकारिणी मीटिंग में काला दिवस मनाने को लेकर रणनीति बनाई गयी और खाप के प्रत्येक गांव में कमेटियां बनाकर ड्यूटियां लगाई गई हैं। उन्होंने कहा कि सरकार अब किसान आंदोलन को खराब करके खत्म करवाना चाहती है। ऐसे में सरकार की मंशा को पूरा नहीं होने देंगे और आंदोलन की सफलता तक आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे।
दिल्ली में कोविड-19 के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी के बावजूद किसान नेताओं ने कहा कि कोरोना वायरस का डर भी उन्हें केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने से नहीं रोक सकता। किसान संगठन पिछले चार महीने से अधिक समय से बारिश, भीषण सर्दी और अब गर्मी में भी अपना आंदोलन चला रहे हैं। सर्दी के मौसम में प्रदर्शनकारी किसानों को गर्म कपड़ों की आपूर्ति की गयी, बारिश में जमीन से ऊंचाई पर उनके रहने का बंदोबस्त किया गया और अब गर्मी के लिए उन्होंने प्रदर्शन स्थलों पर छायादार ढांचे बनाना तथा एसी, कूलर और पंखों का बंदोबस्त शुरू कर दिया है। किसानों ने कहा कि कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटना भी उनके लिए मुश्किल नहीं होगा। वे प्रदर्शन स्थलों पर बुनियादी सावधानियों के साथ इसके लिए भी तैयार हैं। ऑल इंडिया किसान सभा के उपाध्यक्ष (पंजाब) लखबीर सिंह ने कहा, हम सिंघु बॉर्डर पर मंच से मास्क पहनने और हाथ बार-बार धोने की आवश्यकता के बारे में लगातार घोषणा कर रहे हैं। हम प्रदर्शनकारियों को टीका लगवाने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं। प्रदर्शन स्थलों पर अनेक स्वास्थ्य शिविर भी चल रहे हैं, ऐसे में बुखार या सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षण सामने आने पर प्रदर्शनकारियों को तत्काल चिकित्सा सहायता मिल सकती है। भारतीय किसान यूनियन (दाकौंडा) के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा, अगर किसी को बुखार या खांसी है या कोविड का अन्य कोई लक्षण है तो यहां डॉक्टर देखते हैं और फैसला करते हैं। रोगी को या तो अस्पताल में भर्ती कराया जाता है या 8-10 दिन के लिए गांव वापस भेज दिया जाता है।
उन्होंने कहा, अगर आप देखेंगे तो इनमें से हर जगह डॉक्टर, क्लीनिक हैं। वे कोविड जांच नहीं कर रहे लेकिन अगर अधिक लोग बुखार या ऐसे लक्षणों की शिकायत करते हैं तो उन्हें पता चल जाएगा क्योंकि हर मोर्चा में योग्य डॉक्टर हैं।
इन खाप नेताओं के अलावा स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव जो बात कह रहे हैं, उस पर भी ध्यान देना होगा। श्री यादव के अनुसार किसान महामारी को 'कुछ उदासीनता' के साथ देखते हैं लेकिन अभी तक कोई प्रदर्शन स्थल कोविड-19 का हॉटस्पॉट नहीं है। गत अप्रैल माह में यादव ने कहा था कि उनमें से कुछ के तो अस्पताल हैं। अगर बुखार और सांस लेने में परेशानी बढ़ती है तो तत्काल ध्यान जाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों में मास्क पहनने और हाथ धोने की आदत कम हो रही है और दूरी भी नहीं रह पा रही और देश में अधिकतर स्थानों पर ऐसी ही स्थिति है। उन्होंने कहा, किसान अन्य किसी भारतीय नागरिक की तरह ही हैं। वे भी अन्य नागरिकों की तरह ही सतर्क हैं या अधिकतर नागरिकों की तरह असावधान हैं। यादव ने कहा था कि अगर सरकार प्रदर्शनकारी किसानों को हटाने के लिए कोरोना वायरस की आड़ लेती है तो इससे पश्चिम बंगाल में चल रहे चुनाव प्रचार को देखते हुए उनका 'पाखंड' ही सामने आएगा। उन्होंने कहा, ऐसी स्थिति में उन्हें बंगाल में चुनाव प्रचार बंद कर देना चाहिए। चुनाव प्रचार बंद नहीं हुआ और उसका खामियाजा देश की जनता भुगत रही है। क्या उसी गलती को फिर दोहराना उचित होगा? कोरोना की महामारी गांवों तक फैल गयी है। चुनाव आयोग की इस गलती पर मद्रास हाई कोर्ट ने आयोग को हत्यारा तक कह दिया। किसान आंदोलन चल तो रहा ही है लेकिन काला दिवस जैसे कार्यक्रम बनाकर इसमें उबाल लाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे कोरोना संक्रमण बढने की आशंका बढ़ सकती है।
सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध डेटा हाउ इंडिया लिव्स के आधार पर 700 जिलों में दर्ज किए गए कोरोना संक्रमण के मामलों पर किए बीबीसी मॉनिटरिंग के शोध में पाया गया है कि कोरोना वायरस अब ग्रामीण इलाकों में तेजी से अपने पैर पसार रहा है। भारत के 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एक छोटी प्रशासनिक ईकाई जिला होती है। जनगणना 2011 के आधार पर जिलों में ग्रामीण आबादी के प्रतिशत के हिसाब से बीबीसी मॉनिटरिंग ने अपने शोध में जिलों को पाँच हिस्सों यानी जिला समूहों में बांटा है। साल के नौंवे सप्ताह में जब कोरोना संक्रमण के मामले आना शुरू ही हुए थे, 38 फीसद नए मामले ऐसे जिलों में दर्ज किए जा रहे थे जहां 60 फीसद से अधिक आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। गत 29 अप्रैल को खत्म हुए 17वें सप्ताह तक ये आंकड़ा बढ़ कर 48 फीसद तक हो चुका था। संक्रमण की गति में उन जिलों में तेजी देखी गई जहां 80 फीसद आबादी ग्रामीण इलाकों में है। यहां संक्रमितों का आंकड़ा जहां नौवें सप्ताह में 9.5 फीसद था, वहीं 17वें सप्ताह के खत्म होने तक 21 फीसद हो गया था। वहीं, दूसरी तरफ ऐसे जिलों में जहां आबादी का 60 फीसद हिस्सा शहरों में रहता है, कोरोना संक्रमण के मामलों में गिरावट आती गई। वहां साल के 13वें सप्ताह में संक्रमण के मामले 49 फीसद थे, वहीं 17वें सप्ताह तक आते-आते ये आंकड़ा 38 फीसद तक आ गया। इसलिए राजेन्द्र यादव जैसे प्रबुद्ध किसान नेताओं से यही निवेदन है कि अभी सिर्फ कोरोना से लड़ाई लड़ी जाए। अन्य मामले बाद में भी सुलझा लिये जाएंगे। भइया, इतना समझ लो कि जान है, तभी जहान है। (हिफी)