Labours का हित रहे सुरक्षित
इसमें कोई संदेह नहीं कि जीडीपी में गिरावट को देखते हुए नरेन्द्र मोदी की सरकार औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास कर रही है
नई दिल्ली। हमारे देश में श्रम का महत्व हमेशा रहा है। इसीलिए डा. राममनोहर लोहिया कहा करते थे कि मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए। इसी के चलते श्रमिकों के लिए कानून बनाए गये और उनके काम करने के घंटे, वेतन व अन्य सुविधाएं तय की गयीं। कामगारों का भविष्य सुरक्षित रहे इसका भी ध्यान रखा गया और 1952 में कर्मचारी प्राइवेट फंड अधिनियम जैसे कई कानून भी बने हैं। श्रम कानूनों का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक प्रसार को बढ़ावा देने के साथ श्रमिकों का हित साधन भी है। अफसोस की बात यह कि श्रमिक संगठन और उद्योगपति दोनों ही श्रमिकों का उस तरह हित साधन नहीं कर सके, जितनी अपेक्षा थी।
इसमें कोई संदेह नहीं कि जीडीपी में गिरावट को देखते हुए नरेन्द्र मोदी की सरकार औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास कर रही है और उद्यमियों को कई प्रकार की सहायता भी दी जा रही है। इसी के चलते गत 23 सितम्बर को लेबर कोड बिल पारित किये गये हैं। इनमें मुख्य रूप से 300 तक कर्मचारियों वाले संस्थानों को यहां तक छूट दी गयी है कि वे सरकार की अनुमति के बगैर छंटनी कर सकते हैं। इससे श्रमिकों के भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा होता है। कोई भी कारखाना मजदूरों की मेहनत के बगैर नहीं चल सकता। बेशक पूंजी का महत्व है लेकिन सिर्फ पूंजी कोई उत्पादन नहीं कर सकती। इसलिए सरकार ने राज्यसभा में जो तीन लेबर कोड बिल पारित कराए हैं और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये कानून का रूप भी ले लेंगे। इसलिए सरकार को यह भी निगरानी रखनी पड़ेगी कि श्रमिकों का भविष्य सुरक्षित रहे। सरकार का दावा है कि ये बिल श्रम क्षेत्र में बड़े सुधार लाएंगे लेकिन विपक्षी राजनीतिक दल और श्रमिक संगठन इसीलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि श्रमिकों का हित संकट में पड़ सकता है।
हमारे देश में श्रम का महत्व हमेशा रहा है। इसीलिए डॉक्टर राममनोहर लोहिया कहा करते थे कि मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए। इसी के चलते श्रमिकों के लिए कानून बनाए गये और उनके काम करने के घंटे, वेतन व अन्य सुविधाएं तय की गयीं। कामगारों का भविष्य सुरक्षित रहे इसका भी ध्यान रखा गया और 1952 मंे कर्मचारी प्राइवेट फंड अधिनियम जैसे कई कानून भी बने हैं। श्रम कानूनों का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक प्रसार को बढ़ावा देने के साथ श्रमिकों का हित साधन भी है। अफसोस की बात यह कि श्रमिक संगठन और उद्योगपति दोनों ही श्रमिकों का उस तरह हित साधन नहीं कर सके, जितनी अपेक्षा थी।
संसद के मानसून सत्र में कृषि व अन्य विधेयकों को लेकर विपक्षी दल केंद्र सरकार पर हमलावर हैं और सभी दल सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर रहे हैं। विपक्षी दलों के सदन की कार्यवाही के बॉयकॉट के बावजूद राज्यसभा में तीन लेबर कोड बिलों को पारित कर दिया गया है। इन तीनों बिलों को पहले लोकसभा में पारित किया गया था। सरकार का दावा है कि यह बिल श्रम क्षेत्र में बड़े सुधार लाएंगे। हालांकि कई श्रमिक संगठन और कांग्रेस पार्टी इनका विरोध भी कर रही है।
संसद ने तीन प्रमुख श्रम सुधार विधेयकों को मंजूरी दी है, जिनके तहत कंपनियों को बंद करने की बाधाएं खत्म होंगी और अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की इजाजत के बिना कर्मचारियों को निकालने की अनुमति होगी। राज्यसभा ने ध्वनि मत से औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा पर शेष तीन श्रम संहिताओं को पारित किया। इस दौरान आठ सांसदों के निष्कासन के विरोध में कांग्रेस, वामपंथी और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने राज्यसभा की कार्रवाई का बहिष्कार किया।
श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने तीनों श्रम सुधार विधेयकों पर हुई बहस का जवाब देते हुए कहा, ''श्रम सुधारों का मकसद बदले हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल पारदर्शी प्रणाली तैयार करना है। उन्होंने यह भी बताया कि 16 राज्यों ने पहले ही अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना फर्म को बंद करने और छंटनी करने की इजाजत दे दी है। गंगवार ने कहा कि रोजगार सृजन के लिए यह उचित नहीं है कि इस सीमा को 100 कर्मचारियों तक बनाए रखा जाए, क्योंकि इससे नियोक्ता अधिक कर्मचारियों की भर्ती से कतराने लगते हैं और वे जानबूझकर अपने कर्मचारियों की संख्या को कम स्तर पर बनाए रखते हैं।
उन्होंने सदन को बताया कि इस सीमा को बढ़ाने से रोजगार बढ़ेगा और नियोक्ताओं को नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि ये विधेयक कर्मचारियों के हितों की रक्षा करेंगे और भविष्य निधि संगठन तथा कर्मचारी राज्य निगम के दायरे में विस्तार करके श्रमिकों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेंगे। सरकार ने 29 से अधिक श्रम कानूनों को चार संहिताओं में मिला दिया था और उनमें से एक संहिता (मजदूरी संहिता विधेयक, 2019) पहले ही पारित हो चुकी है। राज्यसभा में पारित हुए विधेयक संहिताएं- 'उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्यदशा संहिता 2020, औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 हैं। इनमें किसी प्रतिष्ठान में आजीविका सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा को विनियमित करने, औद्योगिक विवादों की जांच एवं निर्धारण तथा कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा संबंधी प्रावधान किए गए हैं।
नए श्रम कानून संशोधन 2020 में यूपी समेत 7 बीजेपी शासित राज्यों में यह कानून लागू किया गया है। इस कानून में काम करने के घंटों को 8 की जगह 12 घंटे कर दिया गया है लेकिन यहां सरकार ने कहा है कि 12 घंटे का काम वर्कर अपनी इच्छा से कर सकता है। इसके अलावा इस कानून में अनुबंध के साथ नौकरी पर रखने वाले लोगों को हटाने, काम के दौरान हादसे का शिकार होने और समय पर पगार देने जैसे नियमों को छोड़ कर बाकी सभी नियमों को तीन साल के लिए टाल दिया गया है। नए कानून के सभी नियम यूपी में मौजूद सभी राज्य और केंद्रीय इकाइयों पर लागू होंगे साथ ही इसके अंतर्गत 15 हजार कारखाने और 8 हजार प्रोडक्शन यूनिट्स आएंगी। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)