डोनाल्ड ट्रंप के दौरे से भारतीय किसान यूनियन चिंतित

Update: 2020-02-24 14:54 GMT

नई दिल्ली। आमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा को लेकर भारतीय किसानों में एक चिंता नजर आई। भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को ध्यान में रखते हुए किसान आंदोलनों के भारतीय समन्वय समिति (आईसीसीएफएम) और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रतिनिधियों ने केन्द्रीय मंत्रियों से मुलाकात की। युद्धवीर सिंह और राकेश टिकैत ने अन्य किसान नेताओं के साथ दोनों केंद्रीय मंत्रियों को पत्र सौंपते हुए आगामी भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर किसानों की चिंताओं को रखा। साथ ही साथ इस समझौते को लेकर मंत्रियों से कहा कि भारत सरकार यह सुनिश्चित करे कि वो अमेरिका के साथ भारतीय किसानों के हितों के विरुद्ध कोई भी समझौता नहीं करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि, डेयरी, मत्स्य, और चिकन को इस सौदे से बाहर रखा जाए। यदि ऊपर लिखे गए किसी भी क्षेत्र में अमेरिका के साथ सौदा होता है तो यह भारतीय किसानों पर आघात होगा।

भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेन्द्र मलिक ने बताया कि 12 फरवरी को प्रधान मंत्री को संबोधित एक खुले पत्र में ज्ञापन द्वारा भारतीय किसान आंदोलनों ने सरकार से संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ किसी भी व्यापार समझौते जो भारतीय किसानों के हितों के लिए हानिकारक है पर हस्ताक्षर नहीं करने की मांग की थी। किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल अपने चिंताओं को जाहिर करने के लिए सोमवार को गिरिराज सिंह और डा. संजीव बलयान मंत्री पशुपालन, मत्स्य पालन और डेयरी विकास से कृषि मंत्रालय में मिला। भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत जी ने कहा कि भारतीय दुग्ध क्षेत्र मुख्य रूप से छोटे और सीमांत किसानों भूमिहीन पशुधन पालनकर्ताओं और महिला किसानों का प्रतिनिधित्व करता है। इस सौदे का प्रत्यक्ष रूप से 15 करोड़ पशुधन किसान परिवारों यजिनमें से बहुतों के पास केवल एक या दो जानवर हैं उन पर सीधा असर पड़ेगा। जो मुख्य रूप से अपनी आजीविका के लिए दुग्ध यडेयरी पर निर्भर हैं। हमारे पास दुग्ध उत्पादकों की अपनी सहकारी समितियाँ हैं जो देश के दुग्ध बाजार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखती हैं। अब हम सब चिंतित है कि अमेरिका के साथ आगामी व्यापार समझौता अमेरिकी डेयरी उत्पादों को भारतीय बाजारों तक पहुंच प्रदान करने के लिए है! अमेरिकी पशु आहार की सामग्री भी हमें अस्वीकार्य है जिसमें गैर.शाकाहारी और जीएम फसलो पर आधारित घटक शामिल हैं।


इन व्यापार सौदों में हमारे किसानों को भारी सब्सिडी वाले अमेरिकी उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए छोड़ा जा रहा है। किसी समान स्तर का निर्माण किये बिना अमेरिकी कृषि विधेयक 2019 में अमेरिकी किसानों के लिए सब्सिडी के रूप में 867 अरब डॉलर आवंटित किया गया है। दूसरी ओर एक अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2000 से 2016 में भारतीय किसानों को दिया जाने वाला कुल उत्पादक समर्थन मूल्य अनुमानतः 14 प्रतिशत कम रहा है। भारत और अमेरिका में कृषि अवसंरचना पर निवेश का अनुपात 1 डॉलर बनाम 100000 डॉलर के क्रम में है। डब्ल्यूटीओ के धांधली वाले नियमों के कारण अमेरिका जिस तरह की सब्सिडी प्रदान करता है, उससे वहां के उत्पादकों की उत्पादन लगत बहुत ही कम है, जिससे स्पष्ट होता है कि हमारे किसानों के साथ होने वाला व्यापार अति अन्यायपूर्ण और अस्वीकार्य है।

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने यह भी कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व व्यापार संगठन में हमारे किसानों की आजीविका को खतरा है। हमारी सरकार द्वारा यहां खाद्य उत्पादकों को दिए जा रहे अल्प समर्थन यसार्वजनिक खरीद के माध्यम से पर आपत्ति जताई गई है। अमेरिकी सरकार और उनकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कपास चिकन, सेब, अखरोट, बादाम आदि पर आयात शुल्क कम करवाने के अलावा गेहूं, मक्का और सोया आयात के लिए अपना बाजार में पैठ बनाने में रुचि रखते हैं। उदाहरण के लिए भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्यायें कपास के किसान कर रहे हैं। इसलिए अमेरिका से सब्सिडी वाले सस्ते कपास के आयात से भारतीय कपास किसानों को बचाना होगा। किसानों के प्रतिनिधिमंडल ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ किसी भी व्यापारिक समझौते को आगे न बढ़ाए जिसमें कृषि शामिल है और जो हमारे खेत की आजीविका के लिए खतरा हैए और किसी भी मुक्त व्यापार समझौते को शुरू करने के लिए नहीं। इसके बजाय उन्होंने मांग की कि सरकार डब्ल्यूटीओ में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कई बकाया मुद्दों को हल करती है। जिसमें कृषि सब्सिडी पर यूएसए की स्थिति भी शामिल है जो हमारे स्वयं के विशाल सब्सिडी की रक्षा करते हुए हमारे किसानों को भारत की सब्सिडी को चुनौती देती है। यदि भारत सरकार हमारे किसानों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर ध्यान न देते हुयेए व्यापार समझौते के साथ आगे बढ़ती हैं तो हमें ऐसी किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ हमारे आंदोलन को तेज करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि हम आशान्वित हैं, जिस तरीके से भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) की वार्ताओं से बाहर निकलने का बुद्धिमानी भरा निर्णय लिया।इस मामले में भी ऐसे ही प्रबल निर्णय की अपेक्षा करते हैं, हम आपसे देश के किसानों को सुनिश्चित करने का अनुरोध करते हैं कि किसान के हितों के विरुद्ध कोई भी व्यापारिक समझौता वार्ता और हस्ताक्षर अभी या बाद में भारत सरकार के द्वारा नहीं किया जायेगा। 

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