राहुल गांधी को कब तक बचाएंगे शरद पवार
राहुल गांधी क्या वरिष्ठ नेता शरद पवार की नसीहत को समझेंगे और उस पर अमल भी करेंगे।
नई दिल्ली । चीन के साथ तनातनी को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी संवेदनशील मामलों को लेकर भी सरकार पर हमला करने लगते हैं। भाजपा के लोग चारों तरफ से उन पर टूट पडते हैं। चीन ने हमारी हजारों किमी जमीन हडप रखी है। इस बार भी चीनी सैनिक हमारी सीमा में घुसे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को स्पष्ट रूप से नहीं कहा। राहुल गांधी इसी बात के पीछे पड़ गए। इस पर भाजपा ने राजीव गांधी फाउंडेशन का मामला उठा दिया। चीन की तरफ से इस फाउण्डेशन को करोड़ों रुपए अतीत में दिये गये हैं। राहुल को बचाने के लिए शिवसेना के संजय राउत सामने आए। इसके बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार उनका बचाव कर रहे हैं। राकांपा प्रमुख शरद पवार ने गत 27 जून को कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह कोई नहीं भूल सकता कि चीन ने 1962 के युद्ध के बाद भारत की 45,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीन ने कब्जा कर लिया था। शरद पवार की टिप्पणी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के उस आरोप पर थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की आक्रामकता के चलते भारतीय क्षेत्र को सौंप दिया। उन्होंने यह भी कहा कि लद्दाख में गलवान घाटी की घटना को रक्षा मंत्री की नाकामी बताने में जल्दबाजी नहीं की जा सकती क्योंकि गश्त के दौरान भारतीय सैनिक चौकन्ने थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह पूरा प्रकरण संवेदनशील प्रकृति का है। गलवान घाटी में चीन ने उकसावे वाला रुख अपनाया। गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख में 15 जून को चीन के साथ हिंसक झड़प में भारत के 20 सैन्यकर्मी शहीद हो गए। पूर्व रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत संचार उद्देश्यों के लिए अपने क्षेत्र के भीतर गलवान घाटी में एक सड़क बना रहा था। शरद पवार ने कहा, चीनी सैनिकों ने हमारी सड़क पर अतिक्रमण करने की कोशिश की और धक्कामुक्की की। यह किसी की नाकामी नहीं है। हम यह नहीं कह सकते कि यह दिल्ली में बैठे रक्षा मंत्री की नाकामी है।
उन्होंने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा, वहां गश्त चल रही थी, झड़प हुई इसका मतलब है कि आप चौकन्ने थे। अगर आप वहां नहीं होते तो आपको पता भी नहीं चलता कि कब वे (चीनी सैनिक) आए और गए। इसलिए मुझे नहीं लगता कि इस समय ऐसा आरोप लगाना सही है। राहुल गांधी द्वारा लगाए गये आरोप पर शरद पवार का जवाब डैमेज कंट्रोल करने का प्रयास है।
एनसीपी नेता शरद पवार ने कहा कि मुझे नहीं मालूम कि क्या उन्होंने (चीन) अब फिर से कुछ क्षेत्र पर अतिक्रमण कर लिया लेकिन जब मैं आरोप लगाता हूं तो मुझे यह भी देखना चाहिए कि जब मैं सत्ता में था तो क्या हुआ था। अगर इतनी बड़ी जमीन अधिग्रहीत की जाती है तो इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और मुझे लगता है कि इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए।
राहुल गांधी क्या वरिष्ठ नेता शरद पवार की नसीहत को समझेंगे और उस पर अमल भी करेंगे। इससे पहले राहुल गांधी ने वीर सावरकर के बारे में इस तरह की टिप्पणी कर दी थी जिससे भाजपा को शिवसेना को चिढ़ाने का मौका मिल गया। मजबूर होकर शिवसेना ने कांग्रेस को खरीखोटी सुनाईं। राहुल गांधी की समझ में तब भी नहीं आया और कांग्रेस सेवादल ने एक पुस्तिका छपवाई जिसमें वीर सावरकर के बारे में फिर आपत्ति जनक बातें लिखी गयीं। इस बार शिवसेना ने ज्यादा तल्खी दिखाई और संजय राउत ने अपनी पत्रकारिता के पन्ने पलटते हुए रहस्योद्घाटन किया कि श्रीमती इंदिरा गांधी मुम्बई के माफिया डॉन करीम लाला से मिलने आती थीं। शिवसेना और कांग्रेस के इस विवाद की आंच जब महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार तक पहुंचने लगी, तब शरद पवार ही आगे आये थे। मामला किसी तरह ठण्डा पड़ गया था।
यह सच है कि साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान चीन ने लद्दाख के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया था। इसे अक्साई चिन कहते हैं, जो चीन के ही कंट्रोल में है। इसके बाद साल 2013 में चीन ने एक और पैंतरा चला। उसकी सेना आगे निकलकर देपसांग घाटी पर अपने कैंप बनाने लगी। ये अस्थायी कैंप थे। इन्हें बनाने के पीछे चीन का इरादा था कि आगे चलकर वो यहां भी अपना वर्चस्व बना सके। हालांकि भारत की कूटनीति के कारण चीन की सेना ने अपने कैंप हटा लिये थे। इसके बाद भारत की सेना ने अपने इस ऊंचे ठिकाने को मजबूत करने की तैयारी शुरू की और कहने की जरूरत नहीं कि आज हम हर तरह से जवाब देने की स्थिति में हैं। इसीलिए चीन सीधेे-सीधे टकराने की जगह नेपाल और पाकिस्तान को भारत से भिड़ाना चाहता है।
भारत से सीमा विवाद के बीच चीन लगातार अपने सैनिक और हथियारों का जमावड़ा भी सीमा पर कर रहा है। भारत के सैनिक भी बॉर्डर पर मुस्तैदी से डटे हुए हैं। चीन लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर लगातार उल्टे-सीधे दावे कर रहा है। दुनियाभर में भारत की कूटनीतिक स्थिति खुद से बेहतर होने के कारण वो डरा हुआ है और अब देपसांग घाटी में भी सैनिकों का जमावड़ा कर रहा है। ये वही जगह है, जिस पर हमारा दुनिया का सबसे ऊंचा हवाई अड्डा दौलत बेग ओल्डी है। ये भारतीय वायुसेना की पोस्ट है। एक वक्त पर चीन इसे भी हथियाने की फिराक में था। दौलत बेग ओल्डी हवाई अड्डे की खासियत ही ऐसी है जिससे चीन की हमेशा से इस पर नजर रही है। लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के पास ये हवाई पट्टी बनी है, जिस पर इंडियन एयरफोर्स का बेस है। इस जगह का नाम सुल्तान सैद खान के नाम पर पड़ा, जिन्हें दौलत बेग भी कहते थे। तुर्की भाषा में ओल्डी या ओल्दी का अर्थ, वो कब्र जहां अमीरों की मौत होती है। इसी वजह से इस जगह को दौलत बेग ओल्डी कहा गया। हालांकि इस नाम को लेकर कई दूसरी कहानियां भी हैं जैसे चीन का मानना है कि दौलत बेग चीन का दार्शनिक था, जिसकी मृत्यु इस जगह हुई। वैसे इतिहासकार इस कहानी में कोई दम नहीं मानते हैं। इसके अलावा भी कई लोककथाएं इस दुर्गम जगह को लेकर हैं लेकिन किसी का कोई पक्का प्रमाण नहीं। मुख्य बात यह कि भारत यहां से चीन पर निशाना साध सकता है। भारत ने जवाबी कार्रवाई के लिए चीनी सीमा पर हवाई सेना को भी अलर्ट कर रखा है। ऐसे हालात में राजनीतिक दलों को भी विरोध भाव को परे रखकर सरकार का साथ देना चाहिए ।सरकार की कमी को उजागर करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और मायावती चीन के मामले में मोदी सरकार के साथ खडी हैं लेकिन राहुल गांधी हमेशा गलत मौके पर सरकार से भिड जाते हैं। उनको बार बार बचाने कौन आएगा?
~अशोक त्रिपाठी(हिफी)