लोकसभा सीट पर एक बार त्यागी कैंडिटेट रहा विनर तो दूसरी बार रहा रनर

1984 में पहली बार कांग्रेस ने मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशी के रूप में धर्मवीर सिंह त्यागी को चुनाव लड़ाया

Update: 2022-10-07 06:22 GMT

मुज़फ्फरनगर। राजनीति में जातीय समीकरण को साधते हुए ही राजनीतिक पार्टी अपने प्रत्याशी घोषित करती है। उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर हमेशा से ज्यादातर जाट बनाम मुस्लिम प्रत्याशियों के बीच ज्यादातर मुकाबला रहा है। ठाकुर, गुज्जर और जैन समुदाय के लोग भी इस लोकसभा सीट पर चुनाव में मुख्य मुकाबले में रहे है। इस लोकसभा सीट पर त्यागी समाज की वोटों की कम संख्या को देखते हुए राजनीतिक दलों ने उनको टिकट देने से हमेशा परहेज रखा लेकिन मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर दो बार ऐसा भी हुआ है, जब एक बार त्यागी समाज का प्रत्याशी कांग्रेस के टिकट पर मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर चुनाव जीता तथा दूसरी बार रनर प्रत्याशी के रूप में दूसरे नंबर पर रहा है। यह भी इत्तेफ़ाक़ ही है कि दोनों बार कांग्रेस ने त्यागी समाज के नेताओं पर भरोसा जताया था। जानिये कौन है त्यागी समाज के दो नेता, पढ़िए खोजी न्यूज़ की खबर .

1984 में पहली बार राष्ट्रीय कांग्रेस ने मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशी के रूप में धर्मवीर सिंह त्यागी को चुनाव लड़ाया। उनके सामने एलकेडी के टिकट पर नारायण सिंह चुनाव लड़ रहे थे। धर्मवीर सिंह त्यागी ने 2,42,751 वोट लेकर नारायण सिंह को 1,08,021 से चुनाव हरा दिया था। नारायण सिंह को इस चुनाव में 1,34,730 वोट मिली थी। 1984 के इस लोकसभा चुनाव में धर्मवीर सिंह त्यागी को 50% वोट मिले थे। इससे पहले धर्मवीर सिंह त्यागी मोरना और खतौली विधानसभा सीट से से दो बार विधायक चुने गये थे।

इसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने धर्मवीर सिंह त्यागी के बजाय आनंद प्रकाश त्यागी पर दांव लगाया तब जनता दल के टिकट पर कश्मीर से आकर मुजफ्फरनगर की लोकसभा सीट पर मुफ्ती मोहम्मद सईद चुनाव लड़ने आ गए थे। तब उनके सामने कांग्रेस ने आनंद प्रकाश त्यागी को उतार दिया था लेकिन आनंद प्रकाश त्यागी जनता दल के मुफ्ती मोहम्मद सईद से  1,58,987 वोट से हार गए थे। मुफ्ती मोहम्मद सईद को 3,35,324 वोट तो आनंद प्रकाश त्यागी को 1,76,337 वोट मिली थी। 1984 के चुनाव में जहां त्यागी कैंडिडेट एक लाख से ज्यादा वोटों से जीता था तो वहीं अगले लोकसभा चुनाव में आनंद प्रकाश त्यागी डेढ़ लाख से अधिक वोटों से चुनाव हार गए थे। इसके बाद किसी भी मुख्य राजनीतिक दल ने त्यागी समाज को टिकट देने से परहेज बरकरार रखा हुआ है।


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