खतौली सीट पर कभी रहा जाट बिरादरी का तिलिस्म - अब टिकट से भी परहेज
खतौली विधानसभा सीट पर 1967 से 2012 तक हमेशा जाट विधायक का ही कब्जा रहा 12 बार लगातार जाट बिरादरी के विधायक चुनाव जीते
मुजफ्फरनगर। जनपद की खतौली विधानसभा सीट पर 1967 से 2012 तक हमेशा जाट विधायक का ही कब्जा रहा। पार्टी भले ही बदलती रही हो लेकिन हर बार जाट प्रत्याशी के खाते में ही जीत लिखी जाती रही थी। इस सीट पर 12 बार लगातार जाट बिरादरी के विधायक चुनाव जीतते रहे है। खतौली विधानसभा सीट पर जाट विधायकों का तिलिस्म राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर गुर्जर बिरादरी के करतार सिंह भड़ाना ने ही तोड़ा था। उसके बाद खतौली विधानसभा सीट पर जाट बिरादरी के विधायक बनने का नंबर नहीं आया। विधायक बनने की तो बात तो दूर रही, 2012, 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में किसी भी मुख्य राजनीतिक दल ने जाट बिरादरी के नेता को प्रत्याशी बनाने से परहेज रखा। अब विक्रम सैनी को सजा के बाद खतौली विधानसभा सीट पर उप चुनाव होने जा रहा है।
गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर जनपद की खतौली विधानसभा सीट 1967 में वजूद में आई थी तब इस विधानसभा सीट का हिस्सा जाट बाहुल्य इलाका शाहपुर और सिसौली भी होता था। 1967 में हुए विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के टिकट पर सरदार सिंह चुनाव जीते जो जाट बिरादरी से ताल्लुक रखते थे। 1969 में वीरेंद्र वर्मा भारतीय क्रांति दल के टिकट पर जीते तो 1974 में भारतीय क्रांति दल ने लक्ष्मण सिंह पर दांव लगाया तब लक्ष्मण सिंह चुनाव जीते। 1977 में भी जनता पार्टी के टिकट पर लक्ष्मण सिंह ने दूसरी बार जीत दर्ज की थी। 1980 में पहली बार खतौली विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने अपना खाता खोला और धर्मवीर सिंह बालियान इस सीट पर चुनाव जीते।
1985 में लोकदल के टिकट पर हरेंद्र मलिक ने खतौली विधानसभा सीट पर ताल ठोकी और चुनाव जीत गए। 1989 में धर्मवीर सिंह बालियान जनता दल के टिकट पर चुनावी मैदान में आए और जीत भी गए। 1989 तक 7 बार हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जाटों का ही कब्जा बरकरार रहा। अगली बार 1991 में राम मंदिर लहर के चलते भारतीय जनता पार्टी ने भी जाट बिरादरी के प्रत्याशी को टिकट दिया। सुधीर कुमार बालियान ने 1991 और 1993 में भाजपा का खाता खोला। 1996 में चौधरी अजीत सिंह और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत एक साथ आए और भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन हुआ, तब राजपाल बालियान ने को टिकट दिया गया और वो जीत गए। 2002 में भी राजपाल बालियान ने दूसरी बार जीत दर्ज की कर ली थी।
2007 में बसपा के टिकट पर एक युवा नेता योगराज सिंह ने ताल ठोकी तो उनके हिस्से में भी जीत आई। इसके बाद परिसीमन में शाहपुर और सिसौली का हिस्सा कटकर नई गठित हुई बुढ़ाना विधानसभा में चला गया और 2012 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर करतार सिंह भडाना ने जीत दर्ज कर खतौली विधानसभा सीट पर जाटों का तिलिस्म तोड़ दिया था हालांकि इस चुनाव में किसी भी पार्टी ने जाट बिरादरी के व्यक्ति को टिकट भी नहीं दिया था। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अति पिछड़े चेहरे के रूप में विक्रम सैनी पर दांव लगाया और विक्रम सैनी ने जीत दर्ज की और 2022 में भी दूसरी बार विक्रम सैनी ने जीत दर्ज कर ली थी।
2012 से किसी भी पार्टी ने जाटों पर नहीं लगाया दांव
2012 में जहां राष्ट्रीय लोकदल ने करतार सिंह भड़ाना को टिकट दिया था तो बसपा ने ताराचंद सैनी शास्त्री तो सपा ने श्यामलाल बच्ची सैनी को मैदान में उतारा था। इसी के साथ ही 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विक्रम सैनी तो समाजवादी पार्टी ने वर्तमान में मीरापुर से विधायक चंदन चौहान, बसपा ने राजपाल सैनी की बेटे शिवम सिंह सैनी और आरएलडी ने शाहनवाज राणा को टिकट दिया था। 2022 के इलेक्शन में भी भाजपा ने अपने पुराने चेहरे विक्रम सिंह सैनी को तो राष्ट्रीय लोकदल सपा गठबंधन ने राजपाल सिंह सैनी, बीएसपी ने करतार सिंह भड़ाना और कांग्रेस ने गौरव भाटी गुर्जर को टिकट दिया था। इन तीनों चुनाव में किसी भी मुख्य राजनीतिक दल ने जाट बिरादरी के प्रत्याशी को टिकट देने से परहेज बरकरार रखा। आप खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव में भाजपा, सपा रालोद गठबंधन, बसपा और कांग्रेस अपने-अपने प्रत्याशी उतारेगी।