आम की 10 किस्मों को मिली भौगोलिक पहचान

देश में आम की तो सैकड़ो किस्में हैं, लेकिन अद्भुत गुणों के कारण 10 किस्में विशेष भौगोलिक पहचान पाने में सफल रही है।

Update: 2021-07-04 07:59 GMT

नई दिल्ली । देश में आम की तो सैकड़ो किस्में हैं, लेकिन लजीज स्वाद , बेहतरीन सुगंध और अद्भुत गुणों के कारण इनमें से 10 किस्में विशेष भौगोलिक पहचान (जीआई) पाने में सफल रही है,जबकि रटौल और सलेम यह पहचान प्रमाणपत्र हासिल करने में जुटा है।

आम की जिन 10 किस्मों को भौगोलिक पहचान मिली है उनमें लक्षमणभोग

(मालदह) , खिरसापति (हिमसागर) फजली , दशहरी , एप्पीमिडी , गिर केसर ,मराठवाड़ा केसर , बेगनपल्ली , अल्फांसो और जर्दालू शामिल है। पश्चिम बंगाल सबसे अधिक भौगोलिक पहचान पाने में सफल रहा है । उसके लक्ष्मणभोग , हिमसागर और फजली को भौगोलिक पहचान मिला हुआ है । उत्तर प्रदेश का मशहूर दशहरी , कर्नाटक के एप्पीमिडी , आन्ध्र प्रदेश के बेगनपल्ली ,महाराष्ट्र के अल्फांसो और बिहार के जर्दालू को भी यह गौरव हासिल है । बिहार के भागलपुर क्षेत्र में बहुतायत से पाया जाने वाला जर्दालू आम जल्दी पक कर तैयार हो जाता है । हालांकि मध्यम आकार के बेगनपल्ली किस्म मार्च के बाद बाजार में आने लगता है ।

उत्तर प्रदेश के बागपत क्षेत्र में बहुतायत से पाया जाने वाला रटौल पिछले 10 साल से भौगोलिक पहचान पाने के प्रयास में जुटा है । तमिलनाडु का सलेम किस्म भी यह गरिमा को प्राप्त करने में जुटा है । रटौल आम उत्पादक संघ पिछले 10 वर्षो से भौगोलिक पहचान प्राप्त करने के प्रयास में जुटा है ।

इसके लिए उसने चेन्नई स्थित बौद्धिक सम्पदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) में आवेदन कर रखा है । इस आवेदन को लेकर कई तरह के सवाल पूछे गये हैं । केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ ने पिछले साल ही जरुरी दस्तावेज उपलब्ध करा दिये थे ।

रटौल आम का मूलरुप से भारत से संग्रह किया गया और पाकिस्तान भी इसका निर्यात करता है। जिस तरह से अल्फांसो का अपने देश में महत्व है, उसी तरह का महत्व पाकिस्तान में रटौल को है । रटौल का फल बड़ा तो नहीं होता है लेकिन इसका बेहतरीन सुगंध ,रेशा रहित गुदा और मिठास इसे विशेष पहचान दिलाता है । भोगोलिक पहचान मिलने से अंतराष्ट्रीय बाजार में इस आम को विशेष महत्व मिल सकता है ।

उत्तर प्रदेश सरकार अब लंगड़ा , चौसा और गुरजीत किस्मों को भौगोलिक पहचान दिलाने के प्रयास में जुट गई है । केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान मंडी परिषद के सहयोग से जीआई निबंधन के लिए तकनीकी जानकारी हासिल करने में जुट गया है । संस्थान ने दशहरी को जीआई पहचान दिलाने में सहायता दी थी ।

कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने हाल ही में उत्तर प्रदेश में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और निर्यातकों में जीआई निबंधन को लेकर जागरुकता लाने हेतु एक कार्यक्रम किया था । इसमें जीआई के महत्व और निर्यात के लिए आम के ब्रांडिंग पर जाेर दिया गया ।

केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक शैलेन्द्र राजन ने कहा कि जीआई प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए बहुत सारे प्रमाणों की जरुरत होती है और यह एक जटिल पक्रिया है। अपने दावों को प्रमाणित कराने के लिए दस्तावेजों की जरुरत होती है जिसे जुटाने के प्रयास तेज कर दिये गये हैं।

वार्ता

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