जीवन के अंतिम पड़ाव में तलाक मांगने पहुंचे व्यक्ति की याचिका....

जीवन के अंतिम पड़ाव में तलाक मांगने पहुंचे व्यक्ति की याचिका....

नई दिल्ली। जीवन के अंतिम पड़ाव में पहुंचे 89 साल के व्यक्ति ने जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर अपनी 82 साल की पत्नी से तलाक मांगा तो उच्चतम न्यायालय ने उसकी मांग को खारिज करते हुए कहा कि भारतीय समाज में विवाह को पवित्र एवं आध्यात्मिक मिलन माना जाता है। इसलिए विवाह के अपूर्णीय विघटन के आधार पर इस तलाक को मंजूरी नहीं दी जा सकती है। देश की शीर्ष अदालत में 89 साल के व्यक्ति की उसे मांग को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने अपनी 82 साल की पत्नी से तलाक की डिमांड की थी।

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस एवं न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने 89 साल के व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि वर्ष 1963 में उसके साथ शादी करने वाली ने 60 सालों से अपने पूरे जीवन भर उसके साथ इस पवित्र रिश्ते को बनाए रखा है।

पत्नी ने शादी के बाद के इन वर्षों में अपने तीन बच्चों की देखभाल की और इस तथ्य के बावजूद की पति ने उनके प्रति पूरी शत्रुता प्रदर्शित की है, इसके बावजूद पत्नी अभी तक भी अपने पति की देखभाल के लिए तैयार एवं इच्छुक है।


पत्नी जीवन के इस पड़ाव पर भी अपने पति को अकेला नहीं छोड़ना चाहती है। इसके बावजूद शत्रुता के कारण 89 साल का व्यक्ति अपनी 82 साल की पत्नी से तलाक चाहता है। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि पत्नी ने यह भावना व्यक्त की है कि वह तलाकशुदा महिला होने का कलंक लेकर मरना नहीं चाहती है।

प्रतिवादी की इस बात पर शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में यह भी साफ किया है कि समकालीन समाज में तलाकशुदा होना कलंक नहीं माना जा सकता है, लेकिन फिर भी हम प्रतिवादी यानी तलाक मांग रहे व्यक्ति की पत्नी की भावना से चिंतित है। ऐसे में पत्नी की इच्छा को ध्यान में रखते हुए इस तलाक को मंजूरी नहीं दी जा सकती है। इसके साथ ही न्यायालय ने तलाक की इस याचिका को खारिज कर दिया है।

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