रेप के आरोपी नेता के जमानत का 'जश्न' मनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने की रद्द

रेप के आरोपी नेता के जमानत का जश्न मनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने की रद्द

नयी दिल्ली। महिला मित्र को शादी का झांसा देकर बलात्कार करने के आरोपी एक छात्र नेता की जमानत गुरुवार को रद्द कर दी।

मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने आरोपी शुभांग गोटिया को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय से मिली जमानत रद्द दी।

शीर्ष अदालत ने आरोपी को जमानत मिलने के बाद पोस्टर, होल्डिंग और उसके सोशल मीडिया पोस्ट में कुछ प्रमुख हस्तियों की तस्वीरों के साथ 'भैया इज बैक', 'बैक टू भैया' और 'वेलकम टू रोल जानेमन' जैसे कैप्शन के साथ स्वागत की शैली में छुपी पीड़िता के लिए संभावित 'खतरे' को गंभीरता से लिया।

पीठ ने कहा कि सोशल मीडिया पर प्रभावशाली लोगों की तस्वीरों के साथ आरोपी की तस्वीर के लिखे कैप्शन आरोपी और उसके परिवार के समाज में 'प्रभावशाली' और 'ताकतवर' होने तथा शिकायतकर्ता पर इसके हानिकारक प्रभाव को उजागर करते हैं।

शीर्ष अदालत के समक्ष आरोपी की ओर से दावा किया कि वह छात्र नेता है और उन पोस्टरों का बलात्कार के आरोप से कोई लेना-देना नहीं है।

पीठ ने आरोपी की दलीलों को खारिज करते हुए 'प्रतिकूल परिस्थितियों की निगरानी' को देखते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही अदालत ने आरोपी को एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।

शिकायतकर्ता ने 21 जून 2021 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया कि आरोपी ने उसे शादी के बहाने शारीरिक संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि जुलाई, 2019 में सिंदूर लगाने के बाद आरोपी ने उसे आश्वस्त किया कि वे शादीशुदा हैं। जुलाई 2020 में जब शिकायतकर्ता गर्भवती हो गई तो आरोपी ने अपनी बहन के साथ मिलकर उसे गर्भपात कराने के लिए कुछ गोलियां खिलाईं। इसके बाद उसने उससे कन्नी काटनी शुरू कर दी और विरोध करने पर शादी करने से इनकार कर दिया।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी दर्ज करने में देरी को आधार मानते हुए शुभांग गोटिया को राहत दी थी। फिर अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने जबलपुर में आरोपी के चार मामलों में कथित संलिप्तता के उसके पिछले आपराधिक इतिहास की अनदेखी की गई थी।

अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी के बेशर्म आचरण ने शिकायतकर्ता के मन में एक वास्तविक भय पैदा कर दिया है। शिकायतकर्ता को लगता है कि आरोपी को अगर जमानत पर रिहा किया जाता है तो इस मामले में स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई नहीं होगी। गवाहों को प्रभावित करने की भी पूरी संभावना है।

पीड़िता ने उच्च न्यायालय द्वारा आरोपी को जमानत दिए जाने के आदेश का विरोध किया था।

वार्ता

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