माननीयों के भय से, पुलिस कार्रवाई नहीं करती : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि देश में सांसदों/विधायकों के खिलाफ ज्यादातर लंबित आपराधिक मामलों में पुलिस भय के कारण कार्रवाई नहीं करती जो चिंता का विषय है।
न्यायालय ने कहा कि यह बहुत ही चिंताजनक मामला है और केंद्र को इस बारे में विचार करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने ऐसे माननीयों के खिलाफ आपराधिक मामलों का विस्तृत ब्योरा उपलब्ध कराने तथा इस बारे में अंतिम निर्णय लेने का केंद्र सरकार को निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति एन वी रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि माननीयों के खिलाफ जो आपराधिक मामले लंबित हैं उसके बारे में केंद्र को अंतिम निर्णय लेना चाहिए।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉसिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि शीर्ष अदालत को सभी पुलिस महानिदेशकों को दिशानिर्देश जारी करना चाहिए ताकि यह ऐसे मामलों में आरोपी माननीयों को समय पर समन किया जा सके।
न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता हंसारिया ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि न्यायालय के आदेशानुसार ज्यादातर उच्च न्यायालयों ने कार्य योजना सौंप दी है, लेकिन न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि कुछ मामलों में स्पष्टता नहीं नजर आ रही है।
न्यायालय ने मामले की सुनवाई 10 दिनों के लिए स्थगित कर दी।
गौरतलब है कि हंसारिया ने शीर्ष अदालत के पिछले माह के आदेश के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न उच्च न्यायालयों की कार्ययोजना का विस्तृत ब्योरा दिया है। श्री हंसारिया ने हालांकि कहा है कि त्रिपुरा और मेघालय उच्च न्यायालयों ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाये हैं।
न्याय मित्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ उच्च न्यायालयों ने प्रत्येक जिले में सुबह शाम के सत्र में अदालत चलाने का सुझाव दिया है तो कुछ ने मजिस्ट्रेट स्तर पर विशेष अदालतों के गठन की वकालत की है।
अधिकांश उच्च न्यायालयों द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के नियम बनाए गए हैं और शेष इन्हें अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में हैं। न्याय मित्र ने कुछ उच्च न्यायालयों के रवैये पर असंतोष भी जताया है।