न्यायाधीश ने किया पूर्व नेता की जमानत पर सुनवाई से इनकार
नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के तीन मामलों में आरोपी आम आदमी पार्टी (आप)के पूर्व नेता ताहिर हुसैन को गुरुवार को जमानत देने से इनकार कर दिया।
न्यायाधीश विनोद यादव ने मामले पर सुनवाई के बाद एक सामान्य आदेश जारी करते हुए हुसैन की जमानत याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया।न्यायाधीश ने दंगे में सक्रिय भूमिका निभाने के सबूत के आधार पर जमानत देने से साफ इनकार किया।
हुसैन के वकील के के मनान और उदिती बाली ने कहा,"तीनों में से किसी भी अपराध में ताहिर हुसैन को जोड़ने का कोई सबूत नहीं है जिसमें 'दूसरे समुदाय' के सदस्यों के खिलाफ भीड़ की हिंसा शामिल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसा भी कोई सबूत नहीं है या फिर वीडियो फुटेज या सीसीटीवी फुटेज भी नहीं है कि जिससे यह साबित हो सके कि याचिकाकर्ता ने दंगों में भाग लिया था या किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था। "
के के मनान ने तर्क दिया कि हुसैन परिस्थितियों का शिकार है और राजनीतिक क्रासफायर में पकड़े गये हैं। उन्होंने कहा कि कानून की मशीनरी का दुरुपयोग करके हुसैन को परेशान करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ जांच एजेंसी और उसके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने उसे फंसाने की साजिश रची क्योंकि हुसैन तब 'आप' जुड़े थे। उन्होंने यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता की मौके पर उपस्थिति केवल यह बताने के लिए पर्याप्त नहीं है कि उसने कथित अपराध करने के आम इरादे को साझा किया है और इसलिए उसके खिलाफ लगाए गए आरोप कुछ भी नहीं हैं।
विशेष सरकारी वकील मनोज चौधरी ने भीड़ की हिंसा के पीछे की साजिश की भयावहता की ओर इशारा किया। उन्होंने तर्क दिया कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगे बहुत अधिक व्यापक थे।
गौरतलब है कि इस दंगे में 53 निर्दोष लोगों की जान चली गई थी और बहुत सारी सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया था। इस दौरान ना केवल बर्बरतापूर्वक घटनाओं को अंजाम दिया गया बल्कि लूटपाट भी की गई थी कई वाहनों, घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया या फिर आग लगा दी गयी थी।
उन्होंने कहा कि यह दंगा नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के मसले की आड़ में रचा गया और इसे पूरे दिल्ली में विभिन्न स्तरों पर बड़े पैमाने पर करने की साजिश थी। ये दंगे सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों की ओर से एक सुनियोजित कार्रवाई का परिणाम थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंप की 24 फरवरी से हुई दो दिवसीय भारत यात्रा से पहले वास्तव में इसकी योजना बनाई गई थी। विशेष समुदाय के एक समूह को इस तथ्य के बारे में पता था कि गुजरात के अहमदाबाद में श्री ट्रंंप की यात्रा की व्यवस्था संभालने में पुलिस प्रणाली व्यस्त होगी। इसलिए श्री ट्रंप की भारत यात्रा से ठीक पहले हुए दंगों का समय बहुत गहरी जड़ वाली साजिश की ओर इशारा करता है।
चौधरी ने कहा कि याचिकाकर्ता से संबंधित मोबाइल नंबर की सीडीआर के विश्लेषण के दौरान यह पता चला कि वह दंगे के दौरान घटनास्थल के आस-पास ही मौजूद था। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता का मोबाइल नंबर (9810363XXX) का सीडीआर विवरण इस बात के सबूत हैं।
न्यायाधीश ने उच्च न्यायालयों के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में दर्ज कईं गवाहों के साक्ष्य के आधार पर निष्कर्ष निकालता है और जो प्रथम दृष्टया स्पष्ट है कि दंगाई हथियारों से लैस होकर सार्वजनिक और निजी संपत्तियों की बर्बरतापूर्ण तरीके से लूटपाट और तोड़-फोड़ में लगे हुए थे। दंगााई भीड़ का मुख्य उद्देश्य दूसरे समुदाय के व्यक्तियों के जीवन और संपत्तियों को अधिकतम नुकसान पहुंचाना था।