किसान अदालत कुछ कहती है,जनाब!

किसान अदालत कुछ कहती है,जनाब!

मुजफ्फरनगर। अधिकांश राजनीतिक विश्लेषक कल यहां हुई किसानों की विशाल सभा को पंचायत का दर्जा दे रहे हैं जबकि यह कोई पंचायत नहीं बल्कि किसान अदालत थी। जिसमें किसान नस्लों ने अपनी फसलों को लेकर फैसला सुना दिया है।

इसे कोई विश्लेषक सुने या अनसुना करें उसकी मर्जी। यह सनातन सत्य है कि किसान अपने नेता को बनवास तो दे सकता है परंतु उस को आजीवन कारावास की सजा कदापि नहीं दे सकता। किसान जिस सभा में अपने नेता का हुक्का पानी बंद करता है उसे अवश्य ही पंचायत कहा जाता है। मगर जिस सभा में किसान अपने नेता की आंखों से निकले आंसू का हिसाब करता है उसे किसान अदालत ही कहा जाता है।

मुजफ्फरनगर में कल यही हुआ राजकीय कालेज के जिस मैदान में किसान पंचायत लगी थी उसे अदालत में बदलते हुए विभिन्न जाति-गुटों में बटे किसान नेताओं को बनवास से निकाला गया। मंच प्रदान करते हुए उनकी कारावास मुक्ति का फैसला भी सुनाया गया। साथ ही कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि जाति धर्म और राजनीतिक गुटों में फंसे किसान नेताओं तुमने अगर अपनी दुकानें बंद नहीं की तो भविष्य में तुम्हें आजीवन कारावास का दंड भी सुनाया जा सकता है।

गाजीपुर बॉर्डर पर जब किसान नेता राकेश टिकैत की आंखों से टप-टप आंसू टपक रहे थे उसी वक्त उनके मुंह से निकले शब्द किसान आंदोलन के लिए रामबाण औषधि का काम भी कर रहे थे। क्योंकि ये आंसू दिमाग से नहीं दिल से निकल रहे थे। आंसू और शब्दों के इस संगम से किसानों के सब्र का बांध टूट गया यही वजह रही कि उन्होंने अपनी इस पंचायत को किसान अदालत ने बदल दिया।

किसानों की इस अदालत में बैठी किसान नस्लों ने फैसला सुना दिया है कि अब वे अपनी जमीन और फसलों को यूं ही नही लूटने दे सकते। किसानों ने जिन लोगों को राम का नाम लेकर राज सिंहासन सौंपा था उन लोगों को 140 बरस के बनवास पर भेजने का परोक्ष निर्णय भी इस किसान अदालत ने सुना दिया है।


किसान अदालत ने अपने परोक्ष फैसले में यह भी कहा है कि किसानों के मुकद्दर का फैसला मंदिर और मस्जिद नहीं बल्कि इनके नाम पर बनी सरकारें करती हैं। इसलिए अब अराजनीतिक के साथ 'अ'नाम का लगा हुआ दुमछल्ला भी सदा के लिए हटाकर किसान अपने खुद के राजतिलक की तैयारी करें।

किसान अदालत ने अपने परोक्ष फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि जाति-धर्म के नाम पर चलने वाली दुकानों पर ताले डाल कर चाबी किसान के आंसुओं से बने महासागर में फेंक दी जाए। किसान अदालत ने अपने फैसले में यह भी निर्देश दिया है कि किसान की आंख से निकले तीन आंसू, तीन कृषि कानूनों को तीन लोक में पहुंचा कर ही दम ले।


किसान अदालत ने अपने फैसले में किसानों को यह भी इशारा किया है कि वह अपना तीसरा नेत्र खोल कर खुद भी देखें और अपने साथी मजदूरों को भी दिखाएं की जमीन और फसल लुटेरों के महल, किसानों के खून पसीने तथा मजदूरों की हड्डियों से बने हैं।

किसान अदालत ने अपने फैसले के अंत में महत्वपूर्ण निर्देश देते हुए यह भी कहा है कि जमीन और फसल के लुटेरों का पुतला दहन होली के शुभ अवसर पर बरसों बरस, तब तक किया जाए जब तक उसमें से किसी प्रह्लाद भक्त का जन्म ना हो जाए।

किसान नस्लों ने फसलों का फैसला इस किसान अदालत के माध्यम से कर लिया है आपकी आंखों से एक भी आंसू निकले या ना निकले यह आपकी मर्जी।

. ......... 'बक्कड़खाना' से भारत भूषण

Next Story
epmty
epmty
Top