सरकार ने पेश किया धर्मांतरण विरोधी विधेयक- जबरन धर्म परिवर्तन पर अंकुश

सरकार ने पेश किया धर्मांतरण विरोधी विधेयक- जबरन धर्म परिवर्तन पर अंकुश

नई दिल्ली। भारत के सनातन धर्म को जिस तरह से तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया, उससे संकीर्ण अर्थ निकाले जा रहे हैं। समाज के हित में कर्तव्य निर्वहन को ही हिन्दू धर्म कहा जा सकता है। इसके विपरीत इस्लाम और ईसाई एक मजहब हैं जो इसके विस्तार के लिये प्रलोभन और भय का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही जबरन धर्म परिवर्तन कहा जाता है और इसके कई उदाहरण पिछले दिनों देखने को मिले हैं। हिन्दू लड़कियों से छद्म नाम से शादी की गयी और बाद में उनको धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया। इसीलिए कई राज्यों में धर्मान्तरण विरोधी कानून बनाना पड़ा है। उत्तराखण्ड में पुष्कर सिंह धामी सरकार ने भी गत 29 नवम्बर को कड़े प्रावधानों वाला धर्मान्तरण विरोधी विधेयक विधानसभा में पेश किया है। इसके लिए तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र बुलाया गया। विधेयक में प्रावधान किया गया है कि जबरन धर्म परिवर्तन के दोषियों को 3 साल से लेकर 10 साल तक की सजा मिलेगी। पांच लाख मुआवजा भी देना पड़ सकता है। इससे पूर्व कर्नाटक में इस विधेयक को पारित किया जा चुका है। कर्नाटक में जबरिया धर्म परिवर्तन पर दोषी को तीन से पांच साल तक की जेल और 25 हजार जुर्माना का ही प्रावधान है। इस प्रकार उत्तराखण्ड में धामी सरकार ने जबरिया धर्मान्तरण कराने वाले को ज्यादा सख्त सजा देने का प्रावधान किया है। इसकी शुरुआत सबसे पहले उत्तर प्रदेश में हुई। यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2020 में गैर कानूनी धर्मान्तरण निषेध अध्यादेश पारित किया था। इसके बाद मघ्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में भी जबरिया धर्मान्तरण कानून बनाये गये हैं। सबसे कड़ा कानून धामी सरकार बनाने जा रही है।

उत्तराखंड सरकार ने 29 नवम्बर को राज्य विधानसभा में ज्यादा कड़े प्रावधानों वाला धर्मांतरण विरोधी विधेयक पेश किया जिसमें जबरन धर्म परिवर्तन के दोषियों के लिए तीन साल से लेकर 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र के पहले दिन सदन में उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2022 पेश करते हुए प्रदेश के धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 और 28 के अनुसार, प्रत्येक धर्म को समान रूप से प्रबल करने के उद्देश्य में आ रही कठिनाइयों के निराकरण के लिये यह संशोधन विधेयक लाया गया है। विधेयक में विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन को संज्ञेय और गैरजमानती अपराध बनाते हुए इसके दोषी के लिए न्यूनतम तीन साल से लेकर अधिकतम 10 साल तक के कारावास का प्रावधान किया गया है । इसके अलावा, इसके दोषी पर कम से कम पचास हजार रुपये के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।

संशोधित मसौदे के अनुसार, अपराध करने वाले को कम से कम पांच लाख रुपए की मुआवजा राशि का भुगतान भी करना पड़ सकता है जो पीड़ित को दिया जायेगा। विधेयक के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बल, प्रलोभन या कपटपूर्ण साधन द्ववारा एक धर्म से दूसरे में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा। कोई व्यक्ति ऐसे धर्म परिवर्तन के लिए उत्प्रेरित या षडयंत्र नहीं करेगा।

इससे पूर्व कर्नाटक में विपक्ष के भारी विरोध के बीच विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित हो गया। इस विधेयक का सदन में कांग्रेस और एचडी कुमारस्वामी की जनता दल सेक्युलर ने विरोध किया। विपक्ष ने तर्क दिया कि ऐसा कानून संविधान में दी गई धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा। वहीं सरकार ने यह कहते हुये कि ये कानून लोगों को जबरन धर्मांतरण से बचाएगा विपक्ष के दावे को खारिज कर दिया। धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण विधेयक, 2021, जिसे धर्मांतरण विरोधी बिल के रूप में जाना जाता है, दिसंबर 2021 में कर्नाटक विधानसभा द्वारा पारित किया गया था लेकिन तब इसे विधान परिषद के सामने नहीं लाया गया था, क्योंकि तब सत्तारूढ़ भाजपा के पास ऊपरी सदन में बहुमत की कमी थी।एमएलसी चुनावों के बाद भाजपा के बहुमत हासिल करने के बाद विधेयक को परिषद में पेश किया था।

इस बिल को पेश करते हुये गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने कहा कि यह बिल गैरकानूनी धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है। नए कानून के तहत, गैरकानूनी धर्मांतरण गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से होने वाले धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए इस बिल को लाया जा रहा है।

इस कानून का उल्लंघन करने वालों को तीन से पांच साल की जेल और 25,000 का जुर्माना लगाया जाएगा। नाबालिग का धर्म परिवर्तन करने पर दस साल तक की सजा हो सकती है और जुर्माना 50,000 होगा। सामूहिक धर्मांतरण के मामले में 1 लाख का जुर्माना लगाया जा सकता है। अपराध दोहराने वाले अपराधी को 2 लाख तक का जुर्माना और न्यूनतम पांच साल की जेल की सजा हो सकती है। उत्तराखंड में धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2018, विवाह के प्रयोजनों के लिए जबरन धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाता है। इसे संशोधित करने की जरूरत थी। उदाहरण के लिए एक घटना पर गौर करें।

उधमसिंह नगर जिले के गदरपुर में लव जेहाद का हैरतअंगेज मामला सामने आया। एक मुस्लिम युवक ने धर्म छिपाकर हिंदू युवती से दोस्ती की। जब युवक की असलियत सामने आई तो युवती के रिश्ता खत्म कर लेने के बावजूद आरोपी ने उसका उत्पीड़न भी किया। यही नहीं पीड़िता ने पुलिस से शिकायत की तो उसे

धमकी भरी इंटरनेशनल कॉल्स भी मिलीं। पुलिस ने आरोपी शाहरुख के खिलाफ केस दर्ज कर उसे जेल भेजा है। इस मामले में यह आरोप भी संगीन है कि आरोपी ने झारखंड के अंकिता केस की तरह युवती को जिंदा जला देने की धमकी भी दी थी। यूएसनगर पुलिस ने युवती की तहरीर पर गदरपुर की वार्ड नंबर 5 ब्लॉक कालोनी के निवासी आरोपी शाहरुख को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। एसएसपी मंजूनाथ टीसी ने बताया कि युवती को केस नहीं करने के लिए विदेशी नबरों से धमकी भरे कॉल भी आए, जिसके बाद उसकी काउंसलिंग की गई। युवती ने रुद्रपुर कोतवाली में दी तहरीर में कहा कि उसके घर पर एक साल पहले राजकुमार नाम का शख्स सीसीटीवी कैमरे लगाने आया था। युवक ने राजकुमार नाम से बना आधार कार्ड दिखाया था। (हिफी)

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