जल जीवन का आधार, इसका जीवन में बड़ा अत्याज्य योगदान

जल जीवन का आधार, इसका जीवन में बड़ा अत्याज्य योगदान

लखनऊ। सम्पन्न लोग सबमरसिबल पंप घर-घर में लगाकर पानी को बेदर्दी से नालियों में बहा रहे हैं। इस सबसे भूजल का स्तर बुरी तरह गिर रहा है यह आने वाले समय में गंभीर जल संकट की त्रासदी की सूचना है लेकिन कोई इस से सबक लेने के लिए तैयार नहीं है। पेयजल की गंभीर समस्या से जूझने के लिए वर्षा के जल को अधिक से अधिक संरक्षित करने की आवश्यकता है। सम्पन्न लोग सबमरसिबल पंप घर-घर में लगाकर पानी को बेदर्दी से नालियों में बहा रहे हैं। इस सबसे भूजल का स्तर बुरी तरह गिर रहा है यह आने वाले समय में गंभीर जल संकट की त्रासदी की सूचना है लेकिन कोई इस से सबक लेने के लिए तैयार नहीं है। पेयजल की गंभीर समस्या से जूझने के लिए वर्षा के जल को अधिक से अधिक संरक्षित करने की आवश्यकता है।

जल पृथ्वी पर मौजूद एक प्रकृति प्रदत्त अनमोल संसाधन है जो जीवन का आधार है। जल के बिना चराचर जगतजीव मात्र का अस्तित्व संभव नहीं है। पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है, लेकिन इसमें से कुल 97 प्रतिशत पानी खारा है जो पीने योग्य नहीं है, मात्र 3 प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है। इसमें भी 2 प्रतिशत पानी बर्फ एवं ग्लेशियर के रूप में है। इस प्रकार देखा जाए तो केवल 1 प्रतिशत पानी ही मानव या जीव के उपयोग हेतु उपलब्ध है। यह समस्या तब और विकराल हो जाती है जब हम बारिश के पानी के संरक्षण नहीं कर पाते। इसका नतीजा है कि भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यह बहुत बड़े संकट का संकेत है। हमारे देश में भी तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद आज भी बड़ी आबादी के लिए स्वच्छ व स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित पेयजल आपूर्ति नहीं हो पा रही है। वह लोग जो गंगा जमुना के बीच के अथवा अन्य जल समृद्ध क्षेत्रों में रह रहे हैं वह जल की कमी को उस शिद्दत से नहीं समझ पाते हैं वनिस्बत उन लोगों के जो रोजाना की पेयजल की आपूर्ति के लिए भी भारी परेशानी से दो चार होने के लिए मजबूर हैं।

हाल ही में संसद के मॉनसून सत्र में राज्यसभा में केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार देश में ग्राउंड वाटर में जहरीली धातुओं की मात्रा तय मानक से ज्यादा पाई गई है। केंद्र सरकार ने अपने बयान में कहा है कि सिर्फ ग्रामीण ही नहीं बल्कि रिहायशी इलाकों में भी पानी प्रदूषित हो चुका है। इसमें फ्लोराइड,, आयरन, खारा पानी और भारी धातु मौजूद हैं। केंद्र सरकार की इस रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि देश के 209 जिआर्सेनिकलों के वासिंदों को पीने के लिए स्वच्छ पानी अभी तक उपलब्ध नहीं है। देश की एक बड़ी आबादी द्वारा जो पानी इस्तेमाल किया जा रहा है उसमे भारी मात्रा में धातु व अन्य तत्व मौजूद हैं उन्हें फिल्टर किए बिना उपयोग करने से तरह तरह की बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

मानसून सत्र में जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के मुताबिक, भारत में आज भी 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को ग्राउंड वाटर से ही पानी मिलता है। लिहाजा ग्राउंड वाटर में खतरनाक धातुओं का मिलना इस बात का संकेत है कि पानी अब तकरीबन जहर बन चुका है और पीने लायक नहीं बचा है। इसमें ये भी कहा गया है कि भारत की आधी आबादी आज भी गांव में रहती है। ग्रामीण भारत के लोग आज भी पानी पीने के लिए हैंडपंप, कुआं और नदी का इस्तेमाल करते हैं। यहां पानी को साफ करने के लिए कोई उपकरण भी मौजूद नहीं है। लिहाजा, ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं।

भारत समेत कई देशों में कमजोर मानसून के कारण जल संकट से जूझना पड़ता है। एक विशाल व भिन्न भौगोलिक स्थिति के कारण देश के सभी राज्यों में हर साल कुछ में अल्पवृष्टि तो कुछ राज्यों में अतिवृष्टि से दो चार होना पड़ता है। देश में लगभग एक-चौथाई जनसंख्या सूखे से प्रभावित रहती है जिससे हर साल कई इलाकों में लोगों को सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ता है जबकि कुछ क्षेत्रों में भारी अतिवृष्टि हो जाती है। वर्षा का असंतुलन लगातार बढ़ रहा है ऐसे में प्राकृतिक रूप से मिलने वाले जल संसाधन भी भरोसेमंद नहीं रह गए हैं। इस साल की हालात पर गौर करें तो पता चलता है कि अठारह राज्यों में तो जलाजल हो रहा है जबकि कुछ राज्यों में औसत से कम बारिश हो रही है। यहां तक कि इस साल उत्तर प्रदेश में औसत से काफी कम बारिश हुई है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 20 से अधिक शहरों में कमजोर मानसून के कारण जल संकट की गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले दो दशक में आबादी में कुल 40 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है जिसके कारण कई शहरों में जल संकट बढ़ गया है। सरकार ने बढ़ती आबादी को देखते हुए कई इलाकों में नलकूप की व्यवस्था की है जिसके परिणाम स्वरूप शहरों के कई नलकूपों में पानी की कमी आ गयी है। एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शहरी जल आपूर्ति का लगभग 48 फीसद पेयजल भूजल से आता है जिसमें पिछले कुछ वर्षों से भारी गिरावट आयी है। तमाम शहर कस्बों का ही नहीं जंगल खेती खलिहान के इलाकों में भी भूजल स्तर में बहुत तेजी से गिरावट आ रही है।

कलकारखानों में लगातार मनमाने जलदोहन किया जा रहा है वहीं शहरी इलाकों में सम्पन्न लोग सबमरसिबल पंप घर-घर में लगाकर पानी को बेदर्दी से नालियों में बहा रहे हैं। इस सबसे भूजल का स्तर बुरी तरह गिर रहा है यह आने वाले समय में गंभीर जल संकट की त्रासदी की सूचना है लेकिन कोई इस से सबक लेने के लिए तैयार नहीं है। पेयजल की गंभीर समस्या से जूझने के लिए वर्षा के जल को अधिक से अधिक संरक्षित करने की आवश्यकता है। वर्षा के जल की एक-एक बूँद को सहेजा जाना चाहिए जिससे भविष्य में जल संकट की भयावह समस्या से निपटा जा सके।

जल की सुरक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी का कल सुरक्षित हो सके। भूजल स्तर में आ रही लगातार कमी के कारण भविष्य में जल संकट एक विकराल रूप ले सकता है। ऐसे में जल के दुरूपयोग को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाना अत्यंत आवश्यक है। एक बार दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा।

जल संकट दूर करने के लिए हम सबको जल के उपयोग का सलीका अपनाना होगा और वर्षा के जल को जमीन में संचित कर भू स्तर जल को बढ़ाना होगा। इससे नदियों के जलस्तर में वृद्धि होगी जिससे तालाब, बांध एवं कुँए का जलस्तर सामान्य रहेगा और जल संकट की समस्या से मुक्ति मिलेगी। इसके लिए हमें आज से ही कमर कसनी होगी वरना बहुत देर हो चुकी होगी। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)

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