पब्लिक में डेंगू का खौफ- काबीना मंत्री की नाराजगी भी नहीं आई काम
मुजफ्फरनगर। नगर पालिका परिषद बोर्ड का कार्यकाल तेजी के साथ गुजरता हुआ जा रहा है। शहर के विकास के वादे के साथ चेयरमैन की कुर्सी पर काबिज हुई चेयरपर्सन तमाम दावों के विपरित नगर की सफाई व्यवस्था समेत सड़कों की पहले से हुई दुर्दशा में सुधार नहीं कर पाई है, जिसके चलते आज भी लोगों को टूटी-फूटी सड़कों के सहारे अपनी आने-जाने की जरूरतें पूरी करते हुए गंदगी के बीच मजबूरन रहना पड़ रहा है। पिछले दिनों शहर में आये नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन की नाराजगी भी जनता की समस्या का समाधान कराने में काम नहीं आई है। शहर में लग रहे गंदगी के अंबार से लोगों में खौफ नजर आ रहा है कहीं इस गंदगी की वजह से डेंगू फिरोजाबाद जनपद की तरह ना बढ़ जाये।
नगर पालिका परिषद का चुनाव स्थानीय स्तर पर होता है। इसमें राजनीतिक भागीदारी काफी कम मानी जाती है। सभी यही सोचते हैं कि पालिकाध्यक्ष वह होना चाहिए, जो उनके बीच का व्यक्ति हो। पालिका चेयरमैन बनने के लिये बहुत सारे नेता चुनावी रण में उतरते हैं और जनता से विकास कराने के खूब वादे करते हैं। चुनाव जीतने से पहले नेताओं द्वारा कहा जाता है कि एक बार सेवा का मौका दीजिये, आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।
नगर पालिका परिषद के गठन के बाद से कई लोग नगरपालिका अध्यक्ष के पद पर आसीन हो चुके हैं। मगर विकास तब भी शाही वार्डों का होता था और आज भी उन्हीं का हो रहा है। कोई भी विकास के लिए गरीब वार्डों तक पहुंचने की जहमत नहीं उठा पाया हे। नगर पालिका परिषद के अंतर्गत शाही लोगों के वार्डों को छोडक़र उक्त क्षेत्रों में हैंडपंपों का अभाव तो है ही, पानी की निकासी की भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है। सडक़ें टूटी हुई हैं, नाली टूटी हुई हैं, नाले साफ न होने की वजह से अट जाते हैं, बारिश होते ही सडक़ तालाब में तब्दील हो जाती है। वोट सभी देते हैं, लेकिन आम वार्डों की समस्याओं से किसी का कोई लेना देना नहीं है। ध्यान सिर्फ खास वार्डों के विकास पर दिया जाता है।
संविधान में हर व्यक्ति को वोट देने का अधिकार दिया गया है, प्रत्येक व्यक्ति ऐसा नेता चुनना चाहता है, जो उनके क्षेत्र में विकास कार्य व उनकी समस्याओं का समाधान करा सके। जब चुनाव नजदीक आते हैं, विकास के वादे के साथ नेता चुनावी रण में उतर जाते हैं और समस्याओं से जूझ रहे इलाकों में भी वोट की खातिर चले जाते हैं। जनसम्पर्क के दौरान वादे किये जाते हैं कि आपकी नाली बनवा दी जायेगी, आपकी सडक़ बनवा दी जायेगी, सभी समस्याओं का समाधान करा दिया जायेगा। बेचारी भोली-भाली पब्लिक चतुर नेताओं के वायदों के मंत्रों में फंस जाती है और अपने समस्याओं का समाधान कराने के लिये वह अपनी मजूदरी छोडकर वादा करके गये नेता को जिताने के लिये उनके पक्ष में न सिर्फ वोट डालती है, बल्कि फ्री में चुनाव प्रचार का कार्य भी करती है।
आमतौर पर देखने में आया है कि ज्यादातर नेताओं का सम्बंध पब्लिक से तब तक ही रहता है, जब तक चुनाव समाप्त नहीं होते हैं। चुनाव जीते या नहीं जीते, इससे इतर चुनाव में उतरे सभी नेताओं के हालत कुछ इस तरह से हो जाते हैं कि उनकी शाही बैठक में सिर्फ उनके करीबी लोग ही उनके पास बैठते हैं और चाय की चुस्की लेते हैं। चुनाव जीतने वाले नेताओं के शाही लोगों के वार्ड ही ध्यान में रहते हैं। मुजफ्फरनगर पालिका परिषद में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है, शाही लोगों के निवास करने वाले वार्डों में ही विकास कार्य कराये जाते है। क्या उन लोगों ने अपना वोट नहीं दिया, जिन गरीब लोगों के वार्डों में विकास कार्य नहीं किया जाता है और उनकी समस्याओं को इग्नोर किया जाता है?
अक्सर देखा जाता है कि शाही लोगों से ज्यादा गरीब लोग ही अधिकतर वोट डालकर प्रत्याशी को जिताकर चेयरमैन बनाने का काम करते हैं। पहली बार नगर पालिका परिषद प्रत्याशी के रूप में एक महिला भी मैदान में उतरती हैं, वह भी हर वार्ड, हर गली में विकास कार्य कराने व उनकी समस्या का निदान कराने का वादा करती है। पब्लिक महिला द्वारा किये गये वायदों के सपने देखकर उन्हें अपनी वोट दे देती हैं लेकिन महिला चेयरमैन का भी गरीब वार्डों में समस्या देखने का आंखों से लैंस उतर जाता है, जिसके चलते आज भी लोग विकास कार्यों व अपनी समस्याओं से जूझ रहे।
हाल फिलहाल में नगर पालिका परिषद के चेयरमैन के पद पर कमान संभाल रही अंजू अग्रवाल ने कांग्रेस के सिम्बल पर चुनाव जीता था। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव होने के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा की प्रचंड बहुमत सरकार आती है। इसके बाद वह कहती हैं कि भाजपा उन्हें काम नहीं करने दे रही हैं, कुछ दिनों के बाद वह खुद भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लेती हैं। चेयरमैन सत्ता पक्ष में होते हुए गरीब लोगों के वार्डों को विकास से रोशन नहीं कर पा रही है। पब्लिक ने वार्डों को विकास से रोशन होने के सपने को देखकर चेयरमैन बनाया लेकिन उनका सपना यहां भी टूट गया। विकास होने की बजाय लोगों को गंदगी का सामना और करना पड़ रहा है, जो उनके सामने काफी बड़ा सकंट खड़ा कर सकती है। पिछले दिनों डेंगू की वजह से ही काफी संख्या में मौतें हुई थी। बहुत स्थानों पर लगे कूडे के अंबार से लोग इसलिये भी घबरा रहे हैं कि जो मच्छर गंदगी से पैदा हो रहे हैं, कहीं डेंगू का प्रकोप बढ़कर शहर की हालत भी फिरोजाबाद जैसी ही ना हो जाये।
मुजफ्फरनगर में किसी भी दिशा से घुसते ही रास्ते पर लगे कूडे और गंदगी के ढेर आंगतुक का स्वागत करते हुए दिखाई देते हैं, जिनसे उठ रही बदबू के चलते इंसान का शहर में घुसना दुस्वार हो जाता है। शहर में बहुत स्थानों पर बड़े पैमाने पर स्वच्छ भारत मिशन योजना की पेंटिग कराई गई लेकिन स्वच्छ भारत मिशन के नियमों का जरा-सा भी पालन नहीं किया गया है। शहर में घुसते ही ईदगाह चौराहा, शिव चौक के निकट डाकखाने के पास, सिटी सेंटर के सामने आपको कूड़े के ढेर लगे मिलेंगे, जिनस उठ रही बदबू से वहां से निकलना दुस्वार हो जाता है।
शहर में आसपास के गांव व कस्बों से आये लोगों को जब इस गंदगी से उठती बदबू दम घोटती हुई नजर आती है, तो वह अपने गांव को ही शहर से बेहतर बताते हुए वहां से निकल जाते हैं। इन स्थानों से निकलना इतना मुश्किल हो जाता है कि उसे मजबूरी में अपनी नाक ही बंद करनी पड़ती है। गजब की बात तो यह है कि जहंा पर यह गंदगी के ढेर लगे हुए हैं। उसी के पास आपको स्वच्छ भारत मिशन योजना हुई पुताई दीवारों पर मिलेगी। अगर आप स्वच्छ भारत मिशन के पुताई की बात करोगे तो मुजफ्फरनगर शायद इसमें अव्वल आ सकता है। इस अभियान को 7 वर्ष के लगभग हो चुके हैं। अगर साफ-सफाई को लेकर मुजफ्फरनगर में गंभीर प्रयास किया जाते तो शायद कोई भी व्यक्ति मुजफ्फरनगर की साफ-सफाई को लेकर इसके कर्ता-धर्ताओं की बुराई करता नहीं मिलता।
मंत्री की नाराजगी भी नहीं आई काम, साफ-सफाई के हालत पहले जैसे ही है लचर
पिछले दिनों शहर में आये योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल के नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन ने नगर की साफ-सफाई को लेकर नाराजगी जताई थी और सार्वजनिक मंच से इस बाबत उन्होंने अपने दो टूक विचार व्यक्त करते हुए पालिका को इसके लिये नसीहत भी दी थी। नगर विकास मंत्री के निर्देशों के बाद साफ-सफाई में कोई बदलाव नजर नहीं आया हैं। शहर में साफ-सफाई के हालत पहले जैसे ही खराब हैं, जिसके चलते बाजारों व मौहल्लों में साफ-सफाई के हालत खराब दिखाई देते हैं। अब देखने वाली बात यह है कि काफी वर्षों से गंदगी का सामना कर रही पब्लिक को अभी आखिर और कितने वर्षों तक इस गंदगी का सामना करना पडेगा?
नहीं करना समस्या का समाधान- वोट क्यों मांगने आते हैं मकान-मकान?
लोगों का कहना है कि अगर नेताओं को उनकी समस्याओं को समाधान नहीं करना है तो वह घर-घर उनसे वोट मांगने क्यों आते हैं? अब सोचने वाली बात यह है कि नेताओं को जब सत्ता में आने के बाद भी गरीब वार्डों में विकास कार्य और उनकी समस्याओं का निस्तारण नहीं कराना है तो वह उनकी चौखट पर उनसे वोट क्यों मांगने जाते हैं? जबकि नेताओं को चाहिए कि हर वार्डों में विकास कार्य करायें ना कि उन्हें समस्याओं के जाल में फंसाकर छोड़ा जाये।
चेयरमैन अंजू अग्रवाल से जब नगर के विभिन्न मौहल्लों के कूड़ा नहीं उठने और सड़कों की दुर्दशा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि नगर के मौहल्लों से रोजाना कूड़ा उठाने के आदेश दिये गये हैं। समय पर कूडा ना उठाने वालों की के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। उन्होंने कहा कि शहर के नालों व नालियों की निरंतर साफ-सफाई चल रही है। कूड़ा समय से क्यों नहीं उठ रहा है और सड़कों की क्या हालत है यह देखने का काम ईओ का है। ईओ नियमित रूप से अपने कार्यालय में नहीं पहुंच पाते हैं, जिसके चलते विकास के कामों के साथ अन्य सरकारी काम भी लटके रहते हैं क्योंकि विकास कार्यों के कामों पर ईओ के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं लेकिन जब वह नियमित रूप से और समयानुसार कार्यालय को समय नहीं दे पाते हैं तो नगर विकास के कार्य रूके पड़े रहते हैं।
ईओ हेमराज से जब इस बारे में पूछा गया तो पहले तो वह कोई जवाब देने को तैयार नहीं हुए। काफी कुरेदने पर उन्होंने कहा कि समय से कूडा उठवाया जायेगा। बाद में उन्होंने इसकी जिम्मेदारी नगर स्वास्थ्य अधिकारी के ऊपर डालते हुए कहा कि अभी मेरी उनके साथ मुलाकात नहीं हो पाई है।