किसान सम्मेलन पर सीनियर जर्नलिस्ट राजीव की राय
मुज़फ्फरनगर। कल मुज़फ्फरनगर में आयोजित किसान महापंचायत से एक दिन पहले वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक चिंतक राजीव प्रताप सैनी ने अपनी फ़ेसबुक टाइमलाइन पर एक पोस्ट की है।
उन्होंने लिखा कि सितंबर का महीना और इस महीने ने साल 2013 में मुज़फ्फरनगर की धरती से देश की राजनीति की दिशा बदली है। सात सितंबर 2013 को भी एक बड़ी पंचायत हुई थी जिसके बाद मुज़फ्फरनगर में दंगा हुआ। जिसने देश की राजनीति की दिशा बदल दी। उस दंगे ने बीजेपी के लिए आक्सीजन का काम किया। मुज़फ्फरनगर के दंगे को भाजपा जब तब भुनाती रहती है। उस दंगे की ओढ़नी ओढ़ बहुत से लोग सड़क से शिखर तक पहुंच गए और बहुत से लोग उसके दर्द को लेकर आज भी जी रहे है। 7 सितंबर 2014 की पंचायत के दिन एक उन्माद था, माहौल में गर्मी थी और जबरदस्त धुर्वीकरण था।
एक पंचायत कल 5 सितंबर 2021 को हो रही है। जिसमे ना उन्माद है, ना धुर्वीकरण। कुछ मुद्दे गांव किसान के है, जिनको लेकर किसान 9 महीने से लड़ रहे है। कुछ लोग कल की पंचायत को लेकर खुद ब खुद डरे हुए है । भीड़ जबरदस्त होगी इसमें कोई संदेह नही है। मगर यह पंचायत सरकार के खिलाफ है। अगर सरकार ही टकराव पर आ जाये तो कुछ नही हो सकता वरना किसान क्यो अराजकता फैलाएगा। निपट ठेठ गांव वाले के व्यवहार से शहर के लोगो को हो सकता हो कुछ दिक्कत हो, पर यह है तो वही लोग जो रोज बाजार आता है। आपसे बीज, कपड़ा, दवा,सब्जी और रोजमर्रा की चीजें खरीदता है, फिर इससे डर कैसा। मुज़फ्फरनगर की दुकानें भीड़ की वजह से प्रशासन ने बन्द कराई तो फिर डर कैसा ? कुछ लोग नाहक ही डर का माहौल बना रहे है।
बीकेयू को नसीहत करते हुए राजीव ने लिखा कि एक चूक भारतीय किसान यूनियन ने जरूर की । शहर के लोगो को दिल से अपने साथ जोड़ने के लिए शहर के हर घर से एक व्यक्ति का भोजन इकट्ठा कराते ।यूनियन के कार्यकर्ता घर घर जाकर आग्रह पूर्वक कुछ दिन पहले सभी नगर वासियों को न्यौता देते ताकि नगर वासियों को बाहर से आने वाले किसानो को खाना खिलाने का सुअवसर मिलता।
कुछ संगठन, राजनीतिक दल शहर में लंगर चला रहे है लेकिन तब कुछ और ही बात होती यदि देश भर से आये किसान इस शहर की हर रसोई का खाना खाते।