प्रदर्शनकारी किसानों ने खोली सिंचाई विभाग में भ्रष्टाचार की पोल
झांसी। उत्तर प्रदेश के झांसी में पिछले 15 दिनों से किसान रक्षा पार्टी के बैनर तले लगातार प्रदर्शन कर रहे किसानों ने सिंचाई विभाग में बड़े भ्रष्टाचार के चलते उनके हक की हो रही बंदरबांट और सरकारी की अन्य किसान हितकर योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाने में विभागीय भ्रष्टाचार और विशेष रूप से सिंचाई विभाग की कलई बुधवार को खोली।
यहां गाधी पार्क में पंद्रह दिनों से धरने पर बैठक किसानों और उनके नेता किसान रक्षा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौरीशंकर बिदुआ ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि दुर्भाग्य है कि किसानों के हितों की रक्षा के लिए जो विभाग सरकार ने बनाये हैं जैसे सिंचाई विभाग, कृषि विभाग, उद्यान विभाग आदि आज यही विभाग हमारी समस्या बन गये हैं। पंद्रह दिनों से हम जिन समस्याओं से त्रस्त होकर प्रदर्शन कर रहे हैं उनमें मुख्य भूमिका "सिंचाई विभाग" की है। सिंचाई विभाग के तहत बुंदेलखंड मे जो बांध बने हैं उनके डूब क्षेत्र में आये गांवों के हमारे कई किसान भाई आज भी अनुकंपा राशि के लिए भटक रहे हैं। यहां राजघाट बांध को बने आज 49 साल हो गये हैं। ललितपुर में जो पांच बांध बने उनकी शुरूआती लागत 60 करोड़ से बढ़कर 500 से 600 करोड़ पहंच गयी। हर बजट में किसानों की देनदारियां शामिल होती हैं। सरकार की ओर से पैसा आता है अन्य मदों में खर्च कर दिया जाता है लेकिन किसान को नहीं दिया जाता। झांसी जिले में लखेरी, पहुंज और पथरई बांध बन गया है ठेकेदारों का हिसाब हो गया, अधिकारियों का हिसाब हो गया लेकिन किसानों की देनदारियां अब तक बचीं हुई हैं।
लखेरी बांध बनने से डूब क्षेत्र में आये बुढ़ाई गांव को अभी तक विस्थापित नहीं कराया गया है ।यह बांध 65 करोड़ की लागत से शुरू हुआ था जो आज 500 करोड़ को पार कर चुका है लेकिन अभी तक बुढाई व बचेरा गांव के किसानों की देनदारियां बाकी हैं। बचेरा गांव में विस्थापित किसानों में से 20 किसानों की अनुकंपा राशि अभी तक नहीं मिली है । सिंचाई विभाग की कारगुजारियों का परिणाम है कि उन किसानों को अनुकंपा राशि बांट दी गयी है जो गांव के हैं ही नहीं। उनके पास कोई कागज नहीं हैं और जो वैध पात्र किसान हैं वह अपने कागजात लेकर वर्षों से सिंचाई विभाग तथा अन्य सरकारी विभागों में मुआवजे के लिए टक्करें खा रहें हैं। अन्य अधिकारी भटक रहे किसानों को पात्र मान रहे हैं लेकिन सिंचाई विभाग मानने को तैयार नहीं है।
किसान नेता ने सबूत पेश करते हुए पूछा कि सरकार हमें बताएं कि जिन अपात्रों को पात्र मानकर अनुकंपा राशि दी गयी वह किस आधार पर पात्र हैं और हमारे लोग जो वैध कागजातों के धारक हैं वह किस आधार पर पात्र नहीं हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सिंचाई विभाग के तहत बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले गांवों के किसानों के साथ इस तरह की कारगुजारियां हर जिले में होती हैं। किसानेां को दी जाने वाली अनुकंपा राशि का खेल यह होता है कि आधे आधे पैसा का सौदा करके अधिकारियों की मिली भगत से अपात्रों को पैसा दिला दिया जाता है और पात्र किसान भटकता रहता है।
दूसरी ओर पथरई बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले इमलिया और चढरऊ धवारी गांव में भी सिंचाई विभाग ने अजब खेल किया है। इमलियां गांव को विस्थापित किया जा चुका हौ लेकिन इसी गांव में आने वाले पाल मोहल्ले को विस्थापित नहीं किया गया और यहां के लोग बाढ़ के पानी के बीच रहने को मजबूर हैं। इन लोगों का आरोप है कि सिंचाई विभाग के अधिकारियों को सुविधा शुल्क नहीं देने के कारण उन्हें बाढ़ में रहने का दंश झेलना पड़ रहा है। पूरे गांव को डूब क्षेत्र में मानकर विस्थापित करने और एक मोहल्ले को डूब क्षेत्र का हिस्सा न मानने का सिंचाई विभाग का विचित्र गणित किसी की भी समझ से परे है।
बिदुआ ने बताया कि चढ़रऊ ध्वारी गांव की व्यथा यह है कि बांध के गेटों से 100 मीटर की दूरी पर स्थित होने पर भी सिंचाई विभाग के अधिकारी इस गांव को 200 मीटर दूर बता रहे हैं और मानने को ही तैयार नहीं कि बांध से अतिरिक्त पानी छोड़े जाने पर यह गांव किसी तरह डूब क्षेत्र में आयेगा।
किसान नेता ने पहूंज बांध में हाल ही में हुए पुर्नरूद्धार की कलई खोलते हुए बड़ा खुलासा किया कि बांध के बीच दस मीटर के हिस्से में काली मिट्टी का भराव किया जाता है और रोलर चलाकर उसे अच्छी तरह सेट किया जाता है यह भाग बांध का आधार होता है। पहूंज बांध के पुर्नरूद्धार में जहां काली मिट्टी भरी जानी थी वहां पत्थर भरे हुए हैं। मैं पूरे दावे के साथ कहता हूं कि यदि किसी ईमानदार एजेंसी से वहां जांच करा ली जाएं और उस क्षेत्र में काली मिट्टी मिल जाएं तो सरकार मुझे जो सजा देगी वह मैं भुगतने को तैयार हूं।
बिदुआ ने कहा कि सिंचाई विभाग की इन कारगुजारियों की जानकारी वह जिला प्रशासन से लेकर मंडल प्रशासन तक सभी को दे चुके हैं लेकिन 15 दिनों से आंदोलन पर बैठे किसानों के पास आज तक कोई अधिकारी नहीं आया । सभी अधिकारियों के कार्यालयों में देकर जानकारी दी जा चुकी है ,सारे जनप्रतिनिधियों को किसानों के साथ हो रहे अन्याय के बारे में अवगत कराया जा चुका है लेकिन कोई कुछ सुनने या करने को तैयार नहीं है। सब ओर से हताश होकर आज हम मीडिया के सामने पूरी सच्चाई रख रहे हैं।
बांध के अलावा नहरों के निर्माण और सिल्ट सफाई के नाम पर सिंचाई विभाग बड़ा खेल कर रहा है। गुरूसरांय माइनर नहर को पक्की करने के लिए पारीछा थर्मल पावर प्लांट से सिंचाई विभाग ने पैसा लिया । किसानों को अधिकारियों ने बताया कि कच्ची नहर होने से 25 क्यूसेक पानी की बरबादी होती है। पारीछा पावर प्लांट इस नहर को पक्की कर देगा और बदले में 25 क्यूसेक पानी लेगा और किसानों को यह फायदा होगा कि सिंचाई के लिए आने वाले पानी में से जिस पानी की बरबादी होती थी, वह भी बंद हो जायेगी । सिंचाई विभाग ने बाद में जिस ठेकेदार से नहर का निर्माण कराया उसने इतना अधेामानक सामान लगाया कि नहर आज पूरी तरह से उखड़ चुकी है। नहर पक्कीकरण के नाम पर अधिकारियों की कारगुजारियों से किसानों को सिंचाई के लिए मिलने वाले पानी में से 25 क्यूसेक पानी का नुकसान भी हुआ और नहर भी उखड़ गयी। इसकी जांच की मांग कई बार सिंचाई विभाग से कराने को कहा गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
आरटीआई से मांगी गयी जानकारी के अनुसार झांसी जिले में 1300 किलोमीटर में नहरों का जाल बिछा है लेकिन पानी केवल 600 से 650 किलोमीटर तक ही पहुंचता है। विभाग हर साल 150 से 200 किलोमीटर तक ही सिल्ट की सफाई कराता है और नहर का पानी रखाने के लिए 20 लाख की लेबर लगायी जाती है। वर्ष 2017-18 में सिल्ट सफाई पर दो करोड 79 लाख 19 हजार खर्च किये गये और भुगतान भी कर दिया गया। शासनादेशानुसार सफाई के भुगतान से पहले ड्रोन से सर्वे और वीडियोग्राफी कराना अनिवार्य होता है लेकिन विभाग के पास ऐसा कुछ नहीं है और बिना तस्वीरों के ही भुगतान कर दिया गया।
इसी तरह सिंचाई विभाग ने बबीना माइनर नहर का निर्माण कराया जिसमें 25 क्यूसेक पानी बेतवा नदी से आना है । यह नहर 264़ 84 करोड़ की लागत से तैयार करायी गयी। बेतवा नदी के जल को लेकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच जल बंटवारा है। इस बंटवारे के अनुसार जितना पानी सिंचाई के लिए उत्तर प्रदेश को बेतवा से मिलना है वह पहले ही मिल रहा है तो अब सिंचाई के लिए एक बूंद भी अतिरिक्त पानी बेतवा से नहीं मिल सकता। बेतवा से मात्र पीने के लिए ही पानी मिल सकता है। ऐसी स्थिति में इतनी बड़ी लागत से इस नहर को बनाने का क्या औचित्य है। जब पानी ही नहीं मिल सकता तो नहर किस काम की। इसमें भी शासन से आये पैसे की बंदरबांट हो चुकी है।
बिदुआ ने कहा कि किसानों की मांग है कि इन मामलों की जांच करायी जाएं जिसमें जिला प्रशासन, सिंचाई विभाग, मीडिया और किसानों को शामिल किया जाए । अगर जांच के बाद मीडिया यह कह दे कि किसानों के मुद्दे बेबुनायी हैं तो वह सभी मामले वापस ले लेंगे लेकिन अगर उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो अब वह बड़ा आंदोलन करेंगे।
वार्ता