किसानों के समर्थन में उतरे बिजलीकर्मियों ने प्रदर्शन कर दिया धरना
मुजफ्फरनगर। कृषि कानूनों और इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल को वापिस लिए जाने की मांग को लेकर पिछले 13 दिनों से सडकों पर आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में आगे आते हुए आज देश भर में लगभग 15 लाख बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और इंजीनियरों ने विरोध प्रदर्शन कर धरना दिया। उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों ने राजधानी लखनऊ सहित सभी जनपदों और परियोजनाओं पर प्रदर्शन कर किसानों का समर्थन किया।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के मुज़फ्फरनगर के जनपदीय संयोजक प्रणव चौधरी ने बताया कि जिला मुख्यालय पर बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों व इंजीनियरों द्वारा किसानो की मांगों के समर्थन में किए गए धरना प्रदर्शन के अलावा आज प्रदेश भर में सभी बिजली कर्मचारियों ने भोजनावकाश के दौरान प्रदर्शन कर किसानों के साथ अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया। राजधानी लखनऊ में शक्ति भवन स्थित मुख्यालय पर हुई विरोध सभा में प्रमुख पदाधिकारियों शैलेंद्र दुबे, प्रभात सिंह, जी.वी. पटेल, जयप्रकाश, गिरीश पाण्डेय, सदरुद्दीन राना, सुहेल आबिद, राजेन्द्र घिल्डियाल, विनय शुक्ला, डी.के. मिश्र, महेंद्र राय, शशिकांत श्रीवास्तव, परशुराम, सी.के. पाल, वी.के. सिंह कलहंस, ए.के. श्रीवास्तव, पूसे लाल, प्रेमनाथ राय, आर.के सिंह, भगवान मिश्र समेत सैकड़ों बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियन्ता सम्मिलित हुए।
उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 का ड्राफ्ट जारी होते ही बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों ने इसका पुरजोर विरोध किया था। इस बिल में इस बात का प्रावधान है कि किसानों को बिजली टैरिफ में मिल रही सब्सिडी समाप्त कर दी जाए और बिजली की लागत से कम मूल्य पर किसानों सहित किसी भी उपभोक्ता को बिजली न दी जाए।
हालांकि बिल में इस बात का प्रावधान किया गया है कि सरकार चाहे तो डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए किसानों को सब्सिडी दे सकती है, किंतु इसके पहले किसानों को बिजली बिल का पूरा भुगतान करना पड़ेगा, जो सभी किसानों के लिए संभव नहीं होगा।
उन्होंने बताया कि किसान संयुक्त मोर्चा के आवाहन पर चल रहे आंदोलन में कृषि कानूनों की वापसी के साथ किसानों की यह एक प्रमुख मांग है कि इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 को वापस लिया जाए। उधर किसानों का मानना है कि इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 के जरिए सरकार की बिजली का निजीकरण करने की योजना है जिससे बिजली निजी घरानों के पास चली जाएगी और यह जगजाहिर हैं कि निजी क्षेत्र मुनाफे के लिए काम करते हैं तो इससे बिजली की दरें किसानों की पहुंच से दूर हो जाएंगी।
उन्होंने इस मामले पर किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा है कि किसानों की आशंका निराधार नहीं है। इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 और बिजली वितरण के निजीकरण के लिए जारी स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट बिजली के निजीकरण के उद्देश्य से लाए गए हैं। ऐसे में सब्सिडी समाप्त हो जाने पर बिजली की दरें 10 से 12 रु प्रति यूनिट हो जाएगी और किसानों को 8 से 10 हजार रु प्रति माह का न्यूनतम भुगतान करना पड़ेगा।