गन्ने की फसल को रोग से बचाने के लिए कमिश्नर ने जारी की एडवाइजरी
लखनऊ । उत्तर प्रदेश के आयुक्त ,गन्ना एवं चीनी संजय आर भूसरेड्डी द्वारा गन्ने के कैंसर के रूप में विख्यात रेड - रॉट ( लाल सड़न ) रोग के प्रकोप की रोकथाम / प्रभावी नियंत्रण हेतु समस्त गन्ना परिक्षेत्रों को एडवाइजरी जारी करते हुए इस रोग से प्रभावित क्षेत्रों में बीज प्रतिस्थापन हेतु माइक्रोप्लान तैयार कर उसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किये गये हैं ।
इस संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हुए आयुक्त गन्ना एवं चीनी संजय आर भूसरेड्डी द्वारा बताया गया कि गन्ने में वर्षा काल के समय रेड - रॉट रोग का प्रकोप अत्यधिक होने की सम्भावना होती है । यह रोग गन्ने में बीज के माध्यम से फैलता है तथा ऐसी गन्ना प्रजातियां जो लम्बे समय से कृषकों द्वारा बोई जा रही है उनमें अनुवांशिक ह्रास होने के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है और उन प्रजातियों में रेड - रॉट बीमारी लगने की सम्भावना बढ़ जाती है । इस बीमारी से गन्ने की फसल में बहुत अधिक नुकसान होता है इस नुकसान से बचने के वैज्ञानिक संस्तुतियां है कि कम से कम 40 प्रतिशत गन्ना क्षेत्रफल में को .0238 के स्थान पर नई अगेती गन्ना प्रजातियां यथाः- को .0118 को.शा .08272 को . 98014 आदि की बुवाई की जाये तथा किसी खेत में गन्ने के रोग ग्रस्त होने पर उसमे गन्ना न बोकर अन्य फसलों के साथ फसलचक्र पद्धति अपनाई जाये ।
आयुक्त गन्ना एवं चीनी संजय आर भूसरेड्डी ने रेड - रॉट के संक्रमण को नियंत्रित करने के उपायों पर प्रकाश डालते हुए यह भी बताया कि आगामी वर्ष में रेड - रॉट से प्रभावित पौधे गन्ने की पेड़ी न रखें एवं इस पौध की पेराई के बाद फसल चक्र अपनायें , फसल चक्र क्रम में पहले गर्मी के मौसम में प्रभावित गन्ने के खेत की गहरी जुताई की जाए , उसके बाद बरसात के समय में धान की -1 रोपाई की जाए । सर्द काल में गन्ने के साथ प्याज की सहफसली खेती की जाए , ऐसा करने से गन्ने की औसत उपज भी बढ़ेगी । प्याज में उपस्थित एलिक प्रोपाइल डाई सल्फाइड की गंध कीटनाशक का कार्य करती है , जिससे अंकुर बेधक व जड़ बेधक का नियंत्रण होता है । सर्द काल में गन्ने के साथ लहसुन की खेती भी लाभप्रद है । रेड - रॉट से प्रभावित क्षेत्रों में केवल शरदकालीन गन्ने की बुवाई ही की जाये तथा शीत एवं वर्षा ऋतु के मध्य गन्ने के स्थान पर अन्य फसलों की खेती की जाये । जिन क्षेत्रों में रेड - रॉट रोग का प्रभाव 20 प्रतिशत से अधिक है वहां गन्ने की तत्काल कटाई कर दी जाये और प्रभावित खेतों की गहरी जुताई कर गने के ठूठों को जलाकर नष्ट किया जाये ।
गन्ने की बुवाई हेतु पौधशालाओं में स्वस्थ सिंगल बड से गत्रा वीज पैदा करने तथा सिंगल बड सैटस कारबेन्डाजिम के 2 ग्राम प्रति लीटर घोल में बुवाई से पूर्व आधे घण्टे तक डुबाने के उपरान्त ही गन्ना बुवाई की सलाह दी गयी हैं साथ ही ट्राईकोडर्मा कल्चर फोरटीफाईड ऑर्गेनिक का प्रयोग भी इस रोग से बचाव हेतु आवश्यक है । जिन क्षेत्रों में नम , गर्म वायु बीज उपचार संयंत्र उपलब्ध है वहां शत - प्रतिशत वीज उपयंत्रों से शोधन कर बुवाई के निर्देश दिये गये हैं । शोधन की प्रक्रिया में नम - गर्म वायु उपचार ( MHAT ) संयंत्र में पूरे गन्ने अथवा दो या तीन आँख के टुकड़े जालीदार ट्रे में रख उपचारित करते हैं । संयंत्र में भाप व हीटर द्वारा तापक्रम 54 डिग्री से.ग्रे . तथा आर्द्रता 99 प्रतिशत रखकर ढाई घण्टे तक बीच गन्ने का उपचार किया जाता है । ऊष्मा उपचार के पश्चात् बीच गन्ने का रासायनिक उपचार भी आवश्यक है । प्रभावित क्षेत्रों के आस - पास जहां गन्ने की फसल है उन क्षेत्रों में सितम्बर माह तक कड़ी निगरानी करने तथा कल्ले निकलने की अवस्था में रेड - रॉट रोग का प्रभाव बढ़ने पर प्रभावित पौधे को निकाल कर नष्ट करने और शेष फसल पर सिस्टमेटीक फंजीसाइड जैसे : कारबेन्डाजिम , थियोफैनेटेमेथाईल आदि का प्रयोग प्रत्येक माह के अंतराल पर किया जाना आवश्यक है ।
आयुक्त द्वारा एडवाइजरी के माध्यम से समस्त फील्ड अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि गन्ना कृषकों को पम्पलेट , दैनिक समाचार पत्रों , मेलों , वॉल पेटिंग एवं गोष्ठियों के माध्यम से व्यापक प्रचार - प्रसार करते हुए रेड - रॉट की रोकथाम हेतु जागरूक किया जाए साथ ही गन्ना किसानों को अवगत करा दिया जाए कि यदि रेड रॉट प्रभावित खेतों में अगले वर्ष भी गन्ना बोया जाता है तो उसको सट्टों में शामिल नहीं किया जायेगा । गन्ना बुबाई हेतु प्रमाणित बीज का प्रयोग करने के लिए कृषकों में स्वस्थ गन्ना बीज का उत्पादन एवं वितरण भी सुनिश्चित किया जाये ।