मायावती ने 2022 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किए सांगठनिक फेरबदल

मायावती ने 2022 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किए सांगठनिक फेरबदल

लखनऊ। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में बसपा नेत्री मायावती ने हर बार की तरह एक बार फिर चुनाव की तैयारियां तेज कर दी है। 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मायावती ने बड़ा सांगठनिक फेरबदल करते हुए कई मंडलों पर तैनात सेक्टर प्रभारियों के पदों को खत्म कर दिया है। अब उन्होंने मंडल स्तर पर मुख्य सेक्टर प्रभारियों की तैनाती की है। इसके अलावा जिले स्तर पर भी सेक्टर प्रभारी बनाए गए हैं। पिछले दो दिनों से दिल्लीमें चल रही बैठक के दौरान बसपा सुप्रीमों मायावती ने कई बदलाव किए। जिसमें नई व्यवस्था के तहत अब दूसरे प्रदेशों में प्रभारी के रूप में काम देख रहे कई वरिष्ठ नेताओं को फिर से प्रदेश के मंडलों की सांगठनिक जिम्मेदारी दी गयी है।

पार्टी सूत्रों ने बताया कि बसपा विधानमंडल दल के नेता लाल जी वर्मा को लखनऊ मंडल व बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर को प्रयागराज मंडल के मुख्य सेक्टर प्रभारी की जिम्मेदारी मिली है। इसी तरह राजधानी में चार मुख्य सेक्टर प्रभारी, दो टीम बनायी गयीं। लखनऊ मंडल के लिए बसपा विधानमंडल के नेता लालजी वर्मा, एमएलसी भीमराव अंबेडकर, शमशुद्दीन राइन व राजकुमार गौतम को मुख्य सेक्टर प्रभारी बनाया गया है। ये सभी मुख्य सेक्टर प्रभारी मंडल के सभी जिलों की सांगठनिक गतिविधियों की प्रगति के लिए जिम्मेदार होंगे। इनकी सहायता के लिए लखनऊ मंडल में तीन-तीन जिलों पर अलग-अलग दो टीमें होगी।

इसी तरह लखनऊ, उन्नाव व रायबरेली मंडल शामिल हैं। इन तीन जिलों में महेंद्र सिंह जाटव, विनय कश्यप और सलाहुद्दीन सिद्दीकी सेक्टर प्रभारी के रूप में कार्य देखेंगे। इसी तरह सीतापुर, हरदोई व खीरी के लिए दूसरी टीम होगी। इस टीम में डॉ. विनोद भारती, रणधीर बहादुर व अखिलेश अंबेडकर बतौर सेक्टर प्रभारी शामिल हैं। इनके अलावा लखनऊ जिले के लिए चार अलग सेक्टर प्रभारी होंगे। गंगा राम गौतम, इंतिजार आब्दी उर्फ बाबी, रामनाथ रावत व मनीष कुमार यादव जिले की सांगठनिक गतिविधियों को आगे बढ़वाएंगे।

अलग मंडलों में इन नेताओं को सेक्टर प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी है। इनमें कानपुर- आरएस कुशवाहा, हेमंत प्रताप सिंह, बौद्ध प्रिय गौतम। प्रयागराज- राम अचल राजभर, डॉ. राम कुमार कुरील, डॉ. अशोक गौतम व टिकेस गौतम। मिर्जापुर-राम कुमार कुरील व अशोक गौतम। वाराणसी-नौशाद अली, मदन राम व रामचंद्र गौतम। आजमगढ़- नौशाद अली, मदन राम, हरिश्चंद्र गौतम। गोरखपुर- घनश्याम चंद्र खरवार पूर्व सांसद व सुधीर कुमार। बस्ती- घनश्याम चंद्र खरवार। फैजाबाद- घनश्याम चंद्र खरवार व दिनेश चंद्रा शामिल हैं। जबकि देवीपाटन-बलिराम पूर्व सांसद, इंदलराम। मेरठ- शमशुद्दीन राईनी। सहाररनपुर- शमशुद्दीन राइनी। अलीगढ़- मुनकाद अली, प्रदेश अध्यक्ष, रणवीर सिंह कश्यप। आगरा- मुनकाद अली व सुमित जैन। बरेली- गिरीश चंद्र जाटव, सांसद व शमशुद्दीन राईनी। मुरादाबाद-गिरीश चंद्र जाटव व शमशुद्दीन राईनी। झांसी- लालराम अहिरवार, बृजेश जाटव, भूपेंद्र आर्या व रविकांत मौर्य। चित्रकूट- लालराम अहिरवार, मधुसूदन कुशवाहा व जितेंद्र शंखवार को शामिल किया गया है।

संगठन को मजबूत करने के साथ बसपा प्रमुख केन्द्र सरकार के साथ भी संबंध अच्छे रखनान चाहती हैं। इसीलिए जब लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच हालात तनावपूर्ण हुए इस घटना में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए हैं। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने एक केंद्र सरकार का पक्ष लिया। उन्होंने कहा कि देशहित के मसले पर बसपा केंद्र के साथ है, चाहे केंद्र में किसी की भी सरकार हो। ऐसा कई मौकों पर देखा गया है कि मायावती सीधे कंेद्र से प्रदेश में मोर्चा नहीं ले रही है बल्कि कांग्रेस व सपा पर निशाना साध रही हैं। कोरोना संकट काल में उत्तर प्रदेश की सियासत में नए तरह के सियासी समीकरण देखने को मिल रहे हैं। मायावती लगातार कांग्रेस पर हमलावर हैं। प्रदेश में बसपा सुप्रीमो सीधे तौर पर बीजेपी पर हमला करने से बच रही हैं। जिसकी वजह से मायावती बीजेपी पर नरम तो कांग्रेस पर गरम हैं। प्रियंका गांधी और योगी सरकार के बीच बस विवाद में जब मायावती ने प्रतिक्रिया दी थी तो ऐसा लगा मानो वह यूपी सरकार का बचाव कर रही हो। अपने ट्वीट के एक पूरी श्रृंखला में मायावती का तीखा हमला कांग्रेस पार्टी पर दिखाई देता है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने तो बकायदा बीजेपी के सहयोगी के तौर पर बसपा को कहना शुरू कर दिया है और मायावती को बीजेपी का प्रवक्ता तक कह डाला है। प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर कांग्रेस को मजबूत करने के लिए सीधे-सीधे मायावती के वोट बैंक पर चोट कर रही हैं। प्रियंका गांधी के निशाने पर उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण, दलित और मुसलमान वोट बैंक हैं। यही वजह है कि मायावती कांग्रेस को किसी भी सूरत में बख्शने के मूड में नहीं दिख रही। इसीलिए फ्रंटफुट पर कांग्रेस पर निशाना साध रही हैं। दरअसल मायावती इन्हीं तीनों वोटबैंक के जरिए यूपी में अपनी खोई हुई सियासत को पाना चाहती हैं, जिस पर अब प्रियंका गांधी ने नजर गड़ा दी है। इसीलिए मायावती कांग्रेस को फिलहाल बीजेपी से बड़ा शत्रु अपने लिए मान रही हैं और बसपा प्रमुख बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस पर आक्रमक रुख अख्तियार किए हुए हैं।

बसपा की इस समय विधानसभा में महज 19 सीटें हैं, जबकि पार्टी ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें सपा को 47 और कांग्रेस को महज 7 सीटें ही मिली थीं। बसपा के नेताओं का कहना है कि उनके पास 2022 के चुनाव में रणनीति बनाने के लिए ठीक-ठाक वक्त है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा के लिए खोने को कुछ है नहीं लेकिन पाने को सारा मैदान और लड़ने का भरपूर माद्दा भी है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर और सपा-कांग्रेस गठबंधन से अकेले लोहा लेकर भी मायावती अपना 'बेस वोट' बचाने में सफल रही थी। वर्ष 2022 का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। जो योगी को चुनौती देगा, वह 2024 में देश में बड़ा चैलेंजर बनकर उभरेगा। इसीलिए अभी समय रहते सभी राजनीतिक दल समीक्षा की ओर आगे बढ़ रहे हैं। पार्टी ने बाकायदा सभी सांसदों को उनके क्षेत्र में आने वाली सभी विधानसभा सीटों पर मेहनत करने और समीकरणों को तलाशने के लिए कह दिया है। नेता की मानें तो अगर उनकी पार्टी सपा के इस खास वोटबैंक पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है तो उसका रास्ता बहुत हद तक आसान हो जाएगा। बसपा का प्रयास है कि इस बार विधानसभा चुनाव में अपने बलबूते एक मजबूत सरकार बनाएं।


(के.के. कटारा-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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