अखिलेश को नहीं मिल रहा चाचा का साथ

अखिलेश को नहीं मिल रहा चाचा का साथ

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी (सपा) को सत्ता तक पहुंचाने के लिए नई रणनीति बनानी होगी। अभी हाल में प्रदेश की 11 विधान परिषद सीटों के चुनाव में हालांकि भाजपा ने ही वर्चस्व कायम रखा लेकिन वाराणसी स्नातक शिक्षक खंड से सपा समर्थित प्रत्याशी लाल बिहारी यादव ने विजयश्री प्राप्त की है। वाराणसी की स्नातक सीट से सपा के आशुतोष सिन्हा एमएलसी चुने गये हैं। उन्हांने भाजपा के मौजूदा एमएलसी केदारनाथ सिंह को पराजित किया है। इसके साथ ही कई जगह सपा प्रत्याशी ने करारी टक्कर दी है। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चुनाव क्षेत्र है। इससे पार्टी में उत्साह बढ़ा है। इसी उत्साह के चलते सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव से साथ आने का निवेदन किया लेकिन चाचा शिवपाल ने भतीजे के आवेदन को ठुकरा दिया है। लोग इसके पीछे राजनीतिक कारण देख रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी सवा साल का समय बाकी है, लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव बड़े सियासी दलों के बजाय छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को अपने साथ एडजस्ट करने और उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया था। सपा की इस पेशकश को शिवपाल यादव ने ठुकरा दिया है और साथ ही अपना अलग गठबंधन बनाने और चुनावी बिगुल फूंकने का ऐलान किया है। ऐसे में साफ है कि चाचा-भतीजे के बीच सियासी खाईं अभी पटी नहीं है अथवा इसके पीछे कोई राजनीति है।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पिछले दिनों कहा था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में छोटे दलों के साथ हाथ मिलाया जाएगा, लेकिन किसी भी बड़े दल से कोई गठबंधन नहीं होगा। इस दौरान उन्होंने अपने चाचा शिवपाल यादव की पार्टी से गठबंधन को लेकर कहा था कि उस पार्टी को भी एडजस्ट करेंगे। जसवंतनगर उनकी (शिवपाल) सीट है। समाजवादी पार्टी ने वह सीट उनके लिए छोड़ दी है और आने वाले समय में उनके लोग मिलें, सरकार बनाएं, हम उनके नेता को कैबिनेट मंत्री भी बना देंगे। इससे ज्यादा और क्या एडजस्टमेंट चाहिए?

कभी खुद ही विलय का प्रस्ताव रखने वाले शिवपाल यादव ने ऐसा क्यों किया? अखिलेश यादव के इस प्रस्ताव पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए उनकी पार्टी का सपा में विलय नहीं होगा बल्कि हम तमाम छोटी-छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव द्वारा मुझे एक सीट या फिर हमें कैबिनेट मंत्री पद का प्रस्ताव देना एक मजाक है। ऐसे में साफ है कि शिवपाल अब अखिलेश के दिए प्रस्ताव के साथ सपा के साथ हाथ नहीं मिलाएंगे बल्कि अपनी अलग सियासी जमीन तैयार करेंगे।

शिवपाल अपने चुनावी अभियान की शुरूआत पश्चिम यूपी के मेरठ जिले के सिवालखास विधानसभा सीट पर 21 दिसंबर को एक बड़ी रैली के साथ करने जा रहे हैं और 23 दिसंबर को इटावा में पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर एक कार्यक्रम करेंगे। इसके साथ ही 24 दिसंबर से यूपी के गांव-गांव की पदयात्रा पर निकलेंगे, जो 6 महीने तक चलेगी। शिवपाल ने बताया कि इसके लिए बाकायदा एक प्रचार रथ भी तैयार करा रहे हैं, जिससे वो यूपी भर में यात्रा करेंगे। हालांकि, शिवपाल पिछले दिनों अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने को कह रहे थे, लेकिन अब खुद ही सत्ता के किंगमेकर बनने के लिए छोटे दलों के साथ गठबंधन करने की बात कहने लगे हैं।

ध्यान रहे उत्तर प्रदेश के पांच छोटे दलों ने बड़े दलों के साथ जाने के बजाय आपस में ही हाथ मिलाकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। शिवपाल यादव ने भी छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन करने की बात कही है। ऐसे में माना जा रहा है कि शिवपाल हाल ही में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व में बने भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ हाथ मिला सकते हैं। इस तरह से यूपी की तमाम पिछड़ी जातियों के नेताओं का एक मजबूत गठबंधन सूबे में तैयार करने की रणनीति है।

ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई में बाबू सिंह कुशवाहा की जनाधिकार पार्टी, अनिल सिंह चौहान की जनता क्रांति पार्टी, बाबू राम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी और प्रेमचंद्र प्रजापति की राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी ने भागीदारी संकल्प मोर्चा के नाम से नया गठबंधन तैयार किया है। ऐसे में शिवपाल यादव की राजनीति भी ओबीसी के इर्द-गिर्द है और वह इस मोर्चे के साथ मिलकर सूबे में एक नया राजनीतिक समीकरण बना सकते हैं। भागेदारी संकल्प मोर्चा में अभी तक ओबीसी के यादव और कुर्मी समाज नेताओं की कोई पार्टी शामिल नहीं है। वहीं, शिवपाल की अपना दल की कृष्णा पटेल और पीस पार्टी के डॉ. अय्यूब अंसारी से भी रिश्ते ठीक हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि शिवपाल इन दोनों को साथ लेकर इस मोर्चा को नया रूप दे सकते हैं। हालांकि, यह देखना होगा कि शिवपाल की इस कुनबे में एंट्री होती है या फिर कोई दूसरे गुट के साथ अपना समीकरण बनाने की कवायद करेंगे।

उल्लेखनीय है कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम कुनबे में वर्चस्व की जंग छिड़ गई थी। इसके बाद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी पर अपना एकछत्र राज कायम कर लिया था। अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच गहरी खाई हो गई थी। हालांकि मुलायम सिंह यादव सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दोनों नेताओं के बीच सुलह की कई कोशिशें कीं, लेकिन सफलता नहीं मिली। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले शिवपाल यादव ने अपने समर्थकों के साथ समाजवादी मोर्चे का गठन किया और फिर कुछ दिनों के बाद उन्होंने अपने मोर्चे को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) में तब्दील कर दिया। लोकसभा चुनावों 2019 में शिवपाल यादव ने भाई रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ फिरोजाबाद सीट से ताल ठोकी थी और दोनों चुनाव हार गए थे। लोकसभा चुनाव के बाद शिवपाल और अखिलेश के सामने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने की चुनौती है। इस चुनौती में सपा का सबसे मजबूत वोट बैंक पिछड़ा वर्ग बंट जाएगा और इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिल सकता है। (हिफी)

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