राजनीति के पालने में पलता अपराध?

राजनीति के पालने में पलता अपराध?
  • whatsapp
  • Telegram

लखनऊ। कानपुर की घटना ने यह साबित कर दिया है कि अपराध और अपराधियों के हाथ बेहद लम्बे हैं। समाज में अपराध का संरक्षण किसी भी तरह से उचित नहीं है। अपराधी का कोई जाति और धर्म नहीं होता है। अपराधी का कार्य सिर्फ अपराध करना है। पुलिस और राजनीति के संरक्षण में विकास दुबे जैसे अपराधी फलते-फूलते रहे लेकिन सरकारों ने उधर देखने की हिम्मत तक नहीं जुटाई। 20 साल पूर्व राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की थाने में हत्या के बाद भी पुलिस उसको जेल में नहीं रख पाई। पुलिस की मौजूदगी में खुलेआम हत्या के बाद भी अदालत में पुलिस गवाह तक उपलब्ध नहीं करा पाई, जिसका नतीजा रहा कि वह साक्ष्य के अभाव में अदालत से बरी हो गया।

हमारे कानून- व्यवस्था की यह कितनी विडम्बना है कि पुलिस थाने में सरकार के एक ओहदा प्राप्त मंत्री की 2001 में हत्या हो जाती है और सरकारें अपने मंत्री तक के हत्यारे को दबोच नहीं पाती। निश्चित रूप से यह बगैर राजनीतिक संरक्षण के सम्भव नहीं हो सकता है। जब पुलिस के आठ लोग शहीद हो गए तो तत्काल सरकार और पुलिस महकमा सक्रिय हो गया, लेकिन 20 साल पूर्व पुलिस ने यह तत्परता क्यों नहीँ दिखाई? राजनीतिक संरक्षण देने का नतीजा हमने देख लिया है। इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि अपराधियों के हाथ बेहद लम्बे हैं इतने लम्बे की सत्ता भी उसके सामने बौनी साबित हुई।

विकास दुबे जैसे अनगिनत आस्तीन के साँप हमारे समाज में बिखरे पड़े हैं जिसकी पीड़ा समाज को आए दिन भुगतनी पड़ती है लेकिन पुलिस की तरफ से कोई खास एक्शन नहीं उठाए जाते। विकास दुबे कितना दुर्दांत अपराधी है, इसका अंदाजा इसी से लग जाता है कि हत्या के कई दिन बाद भी उसकी गिरफ्तारी को गठित यूपी पुलिस की 100 टीमें अभी तक उसे जिंदा या मुर्दा नहीं पकड़ पाई हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में जिस तरह अपराधियों को गमले में सजा कर खाद-पानी दिया गया, वह किसी से छुपा नहीँ है।

हालांकि योगी सरकार ने राज्य में अपराधियों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया लेकिन विकास दुबे जैसे लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। विकास दुबे के ऊपर हत्या और हत्या के प्रयास समेत कुल 60 मामले दर्ज हैं। हिस्ट्रीशीटर घोषित होने के बाद भी वह खुले आम घूमता रहा। अपराध की दुनिया में बिंदास और बेखौफ खेलता रहा। जिला पंचायत से लेकर गाँव पंचायत तक पर उसका कब्जा हो गया। ऐसा कोई सियासी दल नहीं था जिसमें विकास का दबदबा न रहा हो। समाजवादी पार्टी के साथ बसपा और भाजपा में भी उसकी अच्छी पैठ रही है। राजनीति में मिले भरपूर संरक्षण की वजह से उसने अच्छी-खासी आपराधिक जमीन तैयार कर ली। पुलिस में उसकी इतनी पैठ बन गई कि वह जो चाहता, वही करता।

राजनीति और अपराध की दोस्ती काफी पुरानी है। एक दौर वह भी था जब राजनेता अपना चुनाव जीतने के लिए अपराधियों का सहारा लेते थे, लेकिन समय बदला तो अपराधियों की पहली पसंद राजनीति बन गई। राजनीतिक दल भी सीटें निकालने के लिए अपराधियों को चुनाव मैदान में उतारने लगे। राजनीति को अपराध से बचाने के लिए कानून बने लेकिन वह इतने लचर रहे कि उसका कोई मतलब नहीं निकला, जिसका फायदा विकास दुबे जैसे लोग उठाते रहे। बीबीसी के एक आंकड़े पर गौर करें तो यह स्थिति और अधिक साफ हो जाती है।

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में 402 विधायकों में से 143 ने अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मामलों का विवरण दिया था। सत्ताधारी भाजपा में 37 फीसद विधायकों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। भाजपा के 312 विधायकों में से 83 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। समाजवादी पार्टी के 47 विधायकों में से 14 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं जबकि बीएसपी के 19 में से पांच विधायकों पर इस तरह के अपराध दर्ज हैं। कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं है। उसके सात विधायकों में से एक का आपराधिक रिकार्ड है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि राज्य विधानसभा में तीन निर्दलीय विधायक भी चुनाव जीत कर पहुँचे हैं, जिनके दामन पर भी गुनाह के दाग हैं। यह जानकारी विधायकों ने अपने चुनावी हलफनामों में दी है। फिर सोचिए, राजनीति कितनी गंदी और बदबूदार है। राजनीति क्या अपराधी कारण से मुक्त होगी, यह बड़ा सवाल है।

कानपुर में घटना की रात पुलिस एक मामले में विकास दुबे की बकरू गाँव में गिरफ्तारी करने पहुँची थी लेकिन यूपी पुलिस वर्दी में छुपे विभीषणों की वजह से खुद अपनी ही लंका जला बैठी। पुलिस की एक-एक हरकत का डान विकास दुबे को पता था। उसने 20 से अधिक दुर्दांत गुण्डों को घर की छत पर बुलाकर रखा था। आम रास्ते पर जेसीबी खड़ी करवा दिया। जैसे ही पुलिस जेसीबी से आगे बढ़ी, घात लगा कर विकास के गुर्गों ने उस पर हमला बोल दिया। छतों से विकास और उसके गुर्गों ने गोलियां बरसाई। कानुपुर आईजी ने मीडिया को जो बयान दिया है उसमें कहा है कि घटना स्थल से तकरीबन 400 कारतूस बरामद किए गए हैं। यह भी खबरें आई हैं कि पुलिस टीम के गाँव में पहुँचने से पहले वहाँ की बिजली कटवाई गई जिसकी वजह से अँधेरा होने से पुलिस आसानी से गुंडो की गिरफ्त में आ गई।

इस पूरे घटना क्रम में चैबेपुर पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध रहीं है। मीडिया रिपोर्ट में जो बात आई है उसमें कहा गया है कि थानाध्यक्ष विनय तिवारी की तरफ से रेड की जानकारी लीक की गई। विनय को निलम्बित कर दिया गया है। फिलहाल यह जाँच का विषय है, इस मामले में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना तो तय हैं कि घटना की साजिश के पीछे पुलिस का बड़ा हाथ हो सकता है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद यह साबित हो गया है कि पुलिस वालों के अत्याधुनिक हथियार छीन कर उसी से उनपर हमला किया गया। शहीद होने वाले पुलिसकर्मियों के जिस्म से गोलियां आरपार हो गई थीं।

कानपुर की घटना के बाद योगी सरकार पूरी तरह घिर गई है। विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं लेकिन इसके लिए जितनी जिम्मेदार योगी सरकार है उससे कहीं अधिक पूर्व की सपा-बसपा की सरकारें रहीं हैं। अपराध जगत में तीन दशक से अधिक अपना जलवा कायम रखने वाले विकास दुबे का सरकारें और पुलिस बाल भी बाल बाँका नहीं कर पाई। कहा यह भी गया है कि अपने किलेनुमा मकान में हथियारों का बंकर बना रखा था, जिसे पुलिस ने जमींदोज कर दिया। उसके साथी पुलिस के हथियार भी लूट के गए। फिलहाल पुलिस ने विकास दुबे के दो गुर्गों को ढेर कर दिया है, लेकिन सवाल उठता है कि 30 साल के आपराधिक इतिहास में विकास अब तक बचता क्यों रहा ? पुलिस ने यह शक्ति पहले क्यों नही दिखाई।

पुलिस ने राज्यमंत्री संतोष शुक्ला के मामले में उसको हत्यारा साबित कर जेल मंे क्यों नहीं बंद कराया। दुर्दांत अपराधी होने के बाद भी उसका नाम कानपुर जिले की टॉप टेन अपराधियों की सूची में क्यों नहीं शुमार हुआ। इन सब बातों से साफ होता है कि विकास को सभी सरकारों में राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा जिसकी वजह से उसका अपराध फलता-फूलता रहा। अब वक्त आ गया है जब राजनीति को अपराध से मुक्त किया जाय। इस तरह के अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाए जाएं। समय रहते इस तरह के अपराधों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो हालात बेहद बुरे होंगे।

(प्रभुनाथ शुक्ल-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

Next Story
epmty
epmty
Top