बिहार की जनता ने किसके सिर बांधा जीत का सेहरा

बिहार की जनता ने किसके सिर बांधा जीत का सेहरा

पटना। बिहार के विधानसभा चुनाव के नतीजे काफी वक्त और विवाद के बीच सामने आए हैं। महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव जिला स्तरीय प्रशासन पर दबाव का आरोप लगा रहे थे और कह रहे थे कि डीएम जीते हुए प्रत्याशी को सर्टिफिकेट नहीं दे रहे हैं। शिकायत चुनाव आयोग तक पहुंची थी और वहां से कहा गया कि बहुत कम मार्जिन से जीत-हार वाली सीट पर पुनर्मतगणना करायी जाय।नतीजे घोषित होने के दौरान जद यू के नेता नीतीश कुमार की बेचैनी इस बात से भी बढ रही थी कि उनकी साथी पार्टी भाजपा दोगुने के करीब विधायक जुटाने में कामयाब हो गयी। अब किस नैतिकता से वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपना हक जताएंगे। विधानसभा चुनाव के नतीजे यह भी कह रहे थे कि लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को बिहार की जनता ने सबसे ज्यादा विधायक इस बार भी दिये हैं और 2015 के चुनाव में भी दिये थे। आखिर इसका भी तो कोई संदेश होगा। सरकार जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए अथवा तिकड़म की गणित से बनायी जानी चाहिए, इस प्रकार के कई सवाल हवा में उस समय भी तैर रहे होंगे जब नीतीश कुमार बिहार के सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे होंगे।

बिहार विधानसभा के चुनाव में जीत के साथ नीतीश कुमार एक और इतिहास रचने वाले हैं। वो बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर सातवीं बार शपथ लेंगे। इससे पहले2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने पहली बार विधानसभा चुनाव में ऐसी कांटे की टक्कर देखी है। वर्ष 2010 का चुनाव रहा हो या फिर 2015 का , नीतीश प्रचंड बहुमत के साथ चुनाव जीते थे। हालांकि दोनों बार गठबंधन के पार्टनर अलग थे। इस बार के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जो चुनावी माहौल बनाया था, उसका नतीजा काउंटिंग के दिन भी दिखाई दिया। बिहार में आरजेडी को हटाकर सीएम की कुर्सी पर बैठने वाले नीतीश कुमार ने सत्ता की बागडोर कभी अपने हाथ से फिसलने नहीं दी। नीतीश बहुमत के साथ भले ही 2005 में सीएम बने लेकिन इससे पहले साल 2000 में भी वो सीएम पद की शपथ ले चुके थे। हालांकि कुछ ही समय बाद बहुमत साबित न हो पाने का कारण उनकी सरकार गिर गई थी।

यह कहना तो आधा सच होगा कि बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार ने साबित कर दिया कि उनका सुशासन बिहार की जनता की पहली पसंद है और वहां के लोग अभी भी उनपर भरोसा करते हैं। इस चुनाव को पूरी तरह से नीतीश कुमार के पक्ष में करने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। मतदान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से वहां की जनता के नाम चिट्ठी लिखी और बिहार में चुनावी रैलियां की, उसके बाद से एनडीए पर बिहार कीं जनता का भरोसा बढ़ गया। प्रधानमंत्री ने लोगों को आगाह किया कि उनका वोट एक बार फिर बिहार में जंगलराज ला सकता है। प्रधानमंत्री की यही बात शायद बिहार की जनता के दिल में घर कर गई। इसके बाद चुनाव के दिन जो हुआ वह आज सबके सामने है। महागठबंधन के खाते में 110 सीटें गई हैं। महागठबंधन में आरजेडी के खाते में 75 सीटें जबकि कांग्रेस को 19 सीटें मिली हैं। इस गठबंधन की अन्य पार्टियों में सीपीआईएमएल को 12 सीटें जबकि सीपीएम को 2 सीटें मिली हैं। बिहार चुनाव में सीपीआई के खाते में मात्र 2 सीटें गई हैं। इस चुनाव में सबसे खराब स्थिति एलजेपी की रही। चिराग पासवान के नेतृत्व में इस बार का चुनाव लड़ रही एलजेपी को केवल 1 सीट मिली है।

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है बिहार की जनता की नब्ज पकड़ना किसी भी एग्जिट पोल के बस की बात नहीं है। बिहार चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल ने भले ही महागठबंधन के सिर पर जीत का सेहरा बांध दिया हो लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट निकली है। बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार बन चुकी है और नीतीश कुमार अगले पांच सालों के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने को तैयार हैं। बता दें बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को 125 सीटें, महागठबंधन को 110 सीटें, एलजेपी को 1 जबकि अन्य के खाते में 7 सीटें गई है। बिहार के चुनाव नतीजों पर गौर करें तो एनडीए में बीजेपी के खाते में सबसे ज्यादा सीटें गई हैं। बिहार के चुनाव में बीजेपी को 74 सीटें हासिल हुई हैं, वहीं जनता दल यूनाइटेड के खाते में 43 सीटें गई हैं। इस बार के चुनाव में वीआईपी को 4 सीटें और जीतनराम मांझी की हम को 4 सीटें मिली है। इस बार के बिहार विधान सभा चुनाव में महागठबंधन से बीजेपी को कड़ी टक्कर मिली है। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी के खत ने चुनाव की दिशा और फिजा बदली थी। इस जीत को अलग-अलग तरीके से देखा जा रहा है लेकिन दो फैक्टर महत्वपूर्ण हैं। पहला तो सीएम नीतीश कुमार द्वारा इस चुनाव को आखिरी चुनाव बताना और दूसरा प्रधानमंत्री का वो खत जो उन्होंने मिथिलांचल, सीमांचल जैसे चुनावों के पहले लिखा था। इस खत में पीएम मोदी ने राज्य में नीतीश सरकार की जरूरत बताई थी, साथ ही इसे कई आर्थिक और सामाजिक विकास के बिंदुओं से भी जोड़ा था। उन्होंने खत में लिखा था-बिहार के विकास में कोई कमी न आए, विकास की योजनाएं अटकें नहीं, भटकें नहीं, इसलिए मुझे बिहार में नीतीश सरकार की जरूरत है। मुझे विश्वास है, डबल इंजन की ताकत, इस दशक में बिहार को विकास की नई ऊंचाई पर पहुंचाएगी। उन्होंने लिखा था- पिछले दिनों मुझे बिहार के अपने भाइयों-बहनों से मिलकर उनका आशीर्वाद लेने का अवसर मिला। सासाराम में पहली रैली से लेकर सहरसा में आखिरी रैली तक जनता ने हमेशा की तरह ढेर सारा प्यार दिया। एक जनसेवक के रूप में बिहार की भूमि का चरण स्पर्श मुझे जनसेवा के लिए और प्रतिबद्ध करता है। इसीलिए चुनाव नतीजों की रुझान को देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभकामनाएं दीं। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा कि बिहार के वोटरों ने ये बता दिया है कि वह सिर्फ विकास चाहते हैं। पीएम मोदी ने यह भी कहा कि नया दशक बिहार का होगा और युवाओं ने एनडीए के संकल्प पर भरोसा किया है जिससे हमें और काम करने की प्रेरणा मिलती है।पीएम मोदी ने कई ट्वीट्स की श्रंखला में कहा कि- बिहार ने दुनिया को लोकतंत्र का पहला पाठ पढ़ाया है। आज बिहार ने दुनिया को फिर बताया है कि लोकतंत्र को मजबूत कैसे किया जाता है। रिकॉर्ड संख्या में बिहार के गरीब, वंचित और महिलाओं ने वोट भी किया और आज विकास के लिए अपना निर्णायक फैसला भी सुनाया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर बिहार के संकल्प को दोहराते हुए कहा कि- बिहार के युवा साथियों ने स्पष्ट कर दिया है कि यह नया दशक बिहार का होगा और आत्मनिर्भर बिहार उसका रोडमैप है। बिहार के युवाओं ने अपने सामर्थ्य और एनडीए के संकल्प पर भरोसा किया है। बीते वर्षों में बिहार की मातृशक्ति को नया आत्मविश्वास देने का एनडीए को अवसर मिला। यह आत्मविश्वास बिहार को आगे बढ़ाने में हमें शक्ति देगा। इसमें नीतीश कुमार के लिए भी संदेश है। (हिफी)

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