यूएनएससी में सुधार की जरूरत
लखनऊ। इंडोनेशिया की राजधानी बाली में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को लेकर जो सवाल उठाया था, उसको जी-4 समूह के देशों ने और ज्यादा मुखरित किया है। जी-4 समूह के सदस्य भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार किया जाना अब जरूरी हो गया है। यूएनएसी ही संयुक्त राष्ट्र संघ की ऐक्शन बॉडी है। इसी में मित्र राष्ट्र वीटो पावर रखते हैं। जी-4 सूमह के नेता चाहते हैं कि यूएनएससी की सदस्यता का विस्तार किया जाए तो मौजूदा संघर्षों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है। भारत को यूएनएससी की स्थायी सदस्यता देने की वकालत अमेरिका ने की है। जी-4 समूह के देश भी स्थायी सदस्य बनना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वीटो पावर को अधिकार भारत समेत जी-4 के देशों को भी मिलना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि राजदूत रुचिरा कंबोज ने याद दिलाया कि यूएनएससी में समान प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव 1979 में महासभा के एजेंडे में शामिल किया गया था लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाया है। इसी का नतीजा है कि पहली अक्टूबर को रूस के खिलाफ यूएनएससी में प्रस्ताव रखा गया। भारत ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया क्योंकि उसे पता था कि रूस वीटो लगा देगा। इस प्रस्ताव को अमेरिका और अल्वानिया ने पेश किया था। भारत का अनुमान सच साबित हुआ और रूस द्वारा वीटो किये जाने से प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया था।
भारत समेत चार देशों के समूह जी-4 ने गत 17 नवम्बर को चेताया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार को जितना टाला जाएगा, उतना ही उसके प्रतिनिधित्व में कमी आएगी। जी-4 ने कहा कि अगर यूएनएससी की सदस्यता में विस्तार किया जाता है तो इससे मौजूदा संघर्षों से प्रभावी तरीके से निपटा जा सकेगा। जी-4 समूह में भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान हैं। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि राजदूत रूचिरा कंबोज ने यह भी कहा कि यूएनएससी में समान प्रतिनिधित्व पर प्रस्ताव करीब 40 साल पहले, 1979 में महासभा के एजेंडा में शामिल किया गया था। उन्होंने कहा, ''यह दुर्भाग्य की बात है कि चार दशक बाद भी इस मुद्दे पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। समान प्रतिनिधित्व और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता में विस्तार तथा सुरक्षा परिषद से जुड़े अन्य मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में कंबोज जी-4 की ओर से बोल रही थीं। उन्होंने इस पर जोर दिया कि अब वक्त आ गया है समूचे सदस्यों की ओर से संयुक्त राष्ट्र अपनी चार्टर जिम्मेदारियों का निर्वहन करे। उन्होंने कहा कि ऐसा सदस्यता में विस्तार किए बगैर नहीं हो सकता है।
इससे पूर्व बाली में जी-20 के शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी यही संकेत दिया था। जी 20 शिखर सम्मेलन में साझा घोषणा पत्र जारी नहीं हो सका क्योंकि रूस के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव पर आम सहमति नहीं थी। इसके बाबजूद भारत के प्रस्तावों को व्यापक समर्थन मिला। इसे शिखर सम्मेलन के बाद जारी बयान में देखा जा सकता है। वस्तुतः जी 20 रूस के विरोध का उचित मंच नहीं था। इस मसले पर आपसी सहयोग के अन्य क्षेत्रों को उपेक्षित रखना भी ठीक नहीं था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस विषय पर महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। उन्होने युद्ध की जगह वार्ता से सभी समस्याओं के समाधान का प्रस्ताव किया था। इस पर अमेरिका और यूरोप के देशों ने भी सहमति व्यक्त की। मेजबान इंडोनेशिया ने भी इसी आधार पर बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया। भारत की दृढ़ता सराहनीय रही। नरेन्द्र मोदी ने युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध के अहिंसा सिद्धांत को प्रभावी रूप में उठाया। इसी के साथ रूस से तेल आयात करने को भी उचित बताया। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के साथ ही राष्ट्र हित को भी प्रमुखता दी गई। सभी ने यह माना कि रूस यूक्रेन युद्ध का समाधान भारत के प्रयासों से सम्भव है। भारत के अलावा जी 20 के किसी भी अन्य देश पर ऐसा विश्वास नहीं दिखाया गया। यह भारत के लिए गर्व का विषय है। इसके अलावा भारत के अन्य प्रस्तावों पर भी सदस्य देशों ने गंभीरता से विचार किया।उन्हें साझा बयान में स्थान दिया गया। कहा कि जी 20 शिखर सम्मेलन सुरक्षा मुद्दे हल करने का मंच नहीं है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए रास्ता ढूंढना होगा। इसके साथ अन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और समस्या समाधान के साझा प्रयास करने होंगे। जलवायु परिवर्तन, कोविड महामारी और यूक्रेन युद्ध व उससे जुड़ी घटनाओं ने वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था को प्रभावित किया है। इन मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र जैसी बहुपक्षीय संस्थाएं विफल रही हैं। इन संस्थाओं में उचित सुधार की आवश्यकता है। तभी दुनिया में शांति, सौहार्द और सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा विश्व के विकास के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। इसलिए ऊर्जा की निर्बाध आपूर्ति पर किसी तरह की पाबंदी नहीं लगानी चाहिए। ऊर्जा बाजार में स्थिरता भी होनी चाहिए। मोदी ने कहा कि जी 20 की अगली शिखर बैठक बुद्ध और गांधी के देश में होगी। खाद संकट का समाधान भी करना चाहिए। कोविड में भारत ने नागरिकों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की थी। यह दुनिया की सबसे बड़ी योजना थी। भारत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहा है। टिकाऊ खाद्य सुरक्षा के लिए बाजरे जैसे पौष्टिक व पारंपरिक मोटे अनाज को फिर से लोकप्रिय बनाने की कोशिश है।
मोटे अनाज वैश्विक कुपोषण व भुखमरी की समस्या का समाधान कर सकते हैं। अगले वर्ष अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मनाना है। मोदी के विचारों के अनुरूप शिखर सम्मेलन में ऊर्जा और खाद्य संकट पर चिंता जताई गई। यूरोपीय संघ के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने भारत से अपील की कि वे रूस पर युद्ध खत्म करने के लिए दबाव बनाएं। भारत चाहता है कि इस प्रकार का दबाव यूएनएससी जैसी वैश्विक संस्था ज्यादा कारगर ढंग से बना सकती है।