आरक्षण पर उद्धव का हठ
मुंबई। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण से संबंधित कानून को देश की सबसे बड़ी अदालत ने अमान्य करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट देश के संविधान का पालन कराता है। इसी संविधान के तहत फैसला करता है।आरक्षण का मामला दिन पर दिन उलझता जा रहा है। सुप्रीमकोर्ट ने भी मजबूर होकर पचास फीसद आरक्षण की सीमा बांधी है। स्वाधीनता के बाद संविधान बनाते समय जिन लोगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए आरक्षण दिया गया था, उसकी भी समीक्षा करने की जरूरत है। दरअसल, जाति आधारित आरक्षण का कोई औचित्य ही नहीं है। हम पिछले कई सालों से इसी गुत्थी को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन कोई सर्वमान्य रास्ता नहीं मिला। इस बीच राज्यों में मूल निवासियों के लिए कुछ विशेष करने की भावना ने जोर पकड़ा । इसके पीछे हालांकि विशुद्ध रूप से वोट की राजनीति है क्योंकि कई लोग किसी कारणवश अपने घर,गांव और राज्य से बाहर निकले तो वहीं के होकर रह गये। इसप्रकार मुंबई में यूपी, बिहार, राजस्थान और मध्यप्रदेश से जाकर जो लोग बस गये तो उन्हे भी तो मराठा मानुश ही कहा जाएगा। अब तो जम्मू कश्मीर में भी विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को अप्रभावी कर दिया गया है। इसलिए किसी भी राज्य में वहां के मूल निवासियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करना उचित नहीं है। आरक्षण देकर तो हम पूरे देश को ही पूर्व का कश्मीर बना देंगे। इसलिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को सुप्रीमकोर्ट के फैसले से निराश होने की जगह उस पर देश की अखंडता को ध्यान में रखते हुए विचार करना चाहिए।
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण से संबंधित कानून को खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 'दुर्भाग्यपूर्ण' करार देते हुए मुख्मयंत्री उद्धव ठाकरे ने 5 मई को कहा कि वह केंद्र से श्हाथ जोड़कर अनुरोध कर रहे हैं कि जिस तत्परता के साथ उसने अनुच्छेद 370 एवं अन्य विषयों पर कदम उठाया, उसी तत्परता के साथ वह इस संबंध में भी दखल दे। शीर्ष अदालत के फैसले के बाद एक बयान में ठाकरे ने कहा, हम हाथ जोड़कर प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से मराठा आरक्षण पर तत्काल निर्णय लेने का अनुरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि अतीत में केंद्र सरकार ने अपने फैसलों को मजबूती प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन किया , वैसी ही तत्परता मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए दिखायी जानी चाहिए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा-ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण कानून को रद्द कर दिया है। हमने यहां सर्वसम्मति से इस कानून को मराठा समुदाय के स्वाभिमानपूर्ण जीवन के लिए पास किया था। अब सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार इस मसले पर कानून नहीं बना सकती। केवल प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ऐसा कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने देश के संविधान की जुबान बोली है। दरअसल, इसी बीती 5 मई को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा लोगों के लिए आरक्षण कोटा रद्द कर दिया और कहा कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसद से अधिक नहीं हो सकती। अदालत ने कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पर तय करने के 1992 के मंडल फैसले को वृहद पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया। साथ ही अदालत ने सरकारी नौकरियों और दाखिले में मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी महाराष्ट्र के कानून को खारिज करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमें इंदिरा साहनी के फैसले पर दोबारा विचार करने का कारण नहीं मिला। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और एस जस्टिस रवींद्र भट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले पर फैसला सुनाया।
उधर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस मामले को लेकर राज्य में लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की है। उन्होंने कहा कि इस समुदाय को आरक्षण का निर्णय महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से लिया गया था और यह गायकवाड़ आयोग की सिफारिश पर आधारित था लेकिन, शीर्ष अदालत ने उसे इस आधार पर निरस्त कर दिया कि राज्य को इस तरह के आरक्षण देने का हक नहीं है। ठाकरे ने कहा कि केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 , शाहबानो प्रकरण, हरिजन उत्पीड़न कानून के संदर्भ में जैसी तत्परता दिखायी थी, उसे इस समुदाय (मराठा समुदाय) को मदद प्रदान करने में भी वैसी ही तत्परता दिखानी चाहिए। उनका इशारा अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के लिए , तीन तलाक को दंडनीय बनाने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाये गये कानून या संवैधानिक संशोधन तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति (उत्पीड़न रोकथाम) अधिनियम को शीर्ष अदालत द्वारा शिथिल बनाये जाने के बाद उसमें कड़े प्रावधान बनाये रखने के लिए केंद्र द्वारा उठाये गये कदम की ओर है। ठाकरे ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र से राज्यसभा सदस्य छत्रपति संभाजीराजे एक साल से इस विषय पर प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांग रहे हैं लेकिन यह व्यर्थ गया। उन्होंने सवाल किया, उन्हें प्रधानमंत्री ने क्यों समय नहीं दिया।
उन्होंने यह भी कहा, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत नहीं किया जा सकता, लेकिन किसी को भी लोगों को नहीं भड़काना चाहिए। हम जब तक आरक्षण का मामला जीत नहीं जाते, प्रयास जारी रहना चाहिए।
देश की शीर्ष अदालत ने इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया और कहा कि 1992 में मंडल फैसले के तहत निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा के उल्लंघन के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है। इसमें कोई अनुचित बात भी नहीं कही गयी है। यह बात उद्धव ठाकरे भी जानते हैं कि महाराष्ट्र में आर्थिक और सामाजिक आधार पर 50 फीसद से ज्यादा पिछडे नहीं होंगे लेकिन वे किसी जाति विशेष तक सीमित नहीं हैं।आरक्षण का मतलब भी यही है कि जो लोग विकास की दौड़ में पीछे छूट गये हैं, उनको बराबरी पर लाना। उद्धव ठाकरे ऐसे लोगों को आगे बढाने के लिए प्रयास करेंगे तो उसमें कोई अदालत बाधा नहीं डालेगी। यह सच है कि पाटिल का संगठन आरक्षण से जुड़े मराठा आंदोलन में अग्रणी रहा था। वहीं, केंद्रीय मंत्री राम दास अठावले ने कहा कि केंद्र को मराठा, जाट, राजपूत एवं रेड्डी जैसे 'क्षत्रिय समुदायों' को अलग से आरक्षण देना चाहिए। मराठा आरक्षण कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किये जाने पर उन्होंने आरोप लगाया कि शिवसेना की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने इस मामले को ढंग से पेश नहीं किया। उन्होंने कहा, श्मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे मराठा और जाटों, राजपूतों एवं रेड्डी जैसे अन्य क्षत्रिय समुदायों के उन सदस्यों के लिए आरक्षण का अनुरोध करने जा रहा हूं जिनकी आय आठ लाख रुपये तक है। इस प्रकार राज्य में मराठा आरक्षण को लेकर राजनीति चल रही है लेकिन इसे उचित नहीं कहा जा सकता। (हिफी)