देवता के कोप से बचने को दूल्हा बनी बहन बारात ले भाई के लिए भाभी लाई

देवता के कोप से बचने को दूल्हा बनी बहन बारात ले भाई के लिए भाभी लाई

नई दिल्ली। भारत विभिन्न धर्म एवं परंपराओं वाला देश है, जहां पर भाषा ही अलग अलग नहीं बल्कि रीति रिवाज की प्रथक प्रथक हैं। देवता के कोप से बचने के लिए बहन ने ऐसी जुगत भिड़ाई कि भाई पर कोई आंच ना आए और उसके लिए बहू भी आ जाए। इसलिए बहन दूल्हा बनी और मंडप में सात फेरे लेकर भाई के लिए भाभी भी लेकर आई।

दरअसल गुजरात के छोटा उदयपुर जिले के तीन आदिवासी गांव में शामिल अंबाला गांव के हरि सिंह राय सिंह राठवा के बेटे नरेश का विवाह फेरकुवा गांव के वजलिया हिंमता राठव की बेटी लीला के साथ तय हुआ था। शादी के लिये निर्धारित की गई तिथि पर समाज की परंपरा के मुताबिक नरेश की बहन ने हाथों पर मेहंदी रचाई और सिर पर सेहरा सजाते हुए बारात लेकर लड़की के दरवाजे पर पहुंच गई। सदियों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक लड़की वाले के घर शादी का मंडप सजा। बारातियों की खूब आवभगत हुई। उधर दूल्हा बनी बहन ने अपनी होने वाली भाभी के गले में जयमाला भी डाली, फिर शादी के मंडप में पहुंचकर भाभी के साथ सात फेरे लिए। तमाम रस्मों के बाद बाकायदा विदाई के साथ दूल्हा बनी बहन भाई के लिए भाभी लेकर घर लौटी।

बताया जा रहा है कि अंबाला, सुरखेड़ा और सनाडा गांव के आराध्य देव भरमादेव और खूनपावा हैं। यह आदिवासी समाज के आराध्य देव भी हैं। मान्यता है कि भरमादेव कुंवारे देव हैं, इसलिए यदि अंबाला, सुरखेड़ा और सनाडा गांव का कोई लड़का बारात लेकर जाएगा तो उसे देवता के कोप का भाजन बनना होता है। कोप से बचने के लिए और ग्रामीणों को दुष्प्रभाव से बचाने के लिए दूल्हे की बहन ही बारात लेकर जाती है और दुल्हन के साथ मंगल फेरे लेती है।

बताया जा रहा है कि कुछ साल पहले आधुनिकता की चपेट में आए तीन युवकों ने परंपरा में बदलाव करने का प्रयास किया। दुर्भाग्यवश तीनों ही युवक किन्ही कारणों से इस दुनिया से चल बसे। इसके बाद किसी की हिम्मत परंपरा को तोड़ने की नहीं हुई है।

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