को-वैक्सीन मे गोवंश का अंश? सरकार ने बताई पूरी सच्चाई

को-वैक्सीन मे गोवंश का अंश? सरकार ने बताई पूरी सच्चाई

नई दिल्ली। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए तैयार किये गये स्वदेशी टीके को-वैक्सीन को लेकर सोशल मीडिया पर चल रही बातों को लेकर केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखा है। केंद्र सरकार ने को-वैक्सीन में गोवंश का अंश होने की अफवाहों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि इस मामले में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर गलत ढंग से रखा गया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि नवजात बछड़े के सीरम का इस्तेमाल सिर्फ वेरो सेल्स को तैयार करने और विकसित करने के लिए ही किया जाता है। दरअसल कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग में राष्ट्रीय संयोजक गौरव पंधे ने एक आरटीआई के जवाब का हवाला देते हुए इस बात का आरोप लगाया था कि कोरोना से बचाव के लिए तैयार की गई स्वदेशी को-वैक्सीन बनाने के लिए 20 दिन के बछड़े की हत्या की जाती है।

अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि दुनिया भर में वीरो सेल्स की ग्रोथ के लिए अलग-अलग तरह के गोवंश और अन्य जानवरों के सीरम का इस्तेमाल पहले से ही किया जाता रहा है। यह एक ग्लोबल स्टैंडर्ड्स प्रक्रिया है। लेकिन इसका इस्तेमाल शुरुआती चरण में ही किया जाता है। वैक्सीन के उत्पादन के आखिरी चरण में जानवरों के सीरम का कोई इस्तेमाल नहीं होता है। इस तरह से इसे वैक्सीन का हिस्सा नहीं कहा जा सकता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि वीरो सेल्स को डवलप किए जाने के बाद उसे कई बार पानी और केमिकल्स से धोया जाता है। इस प्रक्रिया को बफर भी कहते हैं। इसके बाद इन वीरो सेल्स को वायरल ग्रोथ के लिए कोरोना वायरस से इंपैक्टेड कराया जाता है। वायरल ग्रोथ की प्रक्रिया में वीरो सेल्स पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद इस नए वायरस को भी निष्क्रिय किया जाता है। इस खत्म हुए वायरस का ही इस्तेमाल फिर वैक्सीन तैयार करने के लिए किया जाता है। इस तरह से कई तरह की प्रक्रिया होती हैं और अंतिम राउंड में बछड़े के सीरम का इस्तेमाल करने की बात गलत साबित होती है। साफ है कि वैक्सीन में बछड़े का सीरम नहीं होता है।

इससे पहले गौरव पंधी ने ट्वीट किया था कि कोवैक्सीन बनाने में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए 20 दिन से भी कम के बछड़े की हत्या की जाती है। पंधी ने एक आरटीआई के जवाब में मिले दस्तावेज शेयर किए थे।

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