अब पश्चिम बंगाल में ओवैसी का धावा- दीदी की बढ़ी चिंता
पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद देश की राजनीति में एक बदलाव दिखाई पड़ रहा है। इस बदलाव को अगले साल अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए विशेष माना जा रहा है। वामपंथियों के तीन गढ़ हुआ करते थे जिनमें सबसे मजबूत पश्चिम बंगाल था। इस गढ़ को ममता बनर्जी ने छीन लिया। त्रिपुरा के गढ़ को भाजपा ने छीन लिया। इसके बाद माना जा रहा था कि वामपंथ को देश ने लगभग नकार दिया है लेकिन बिहार में कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन वामपंथियों ने किया और पश्चिम बंगाल में क्या बिहार की गणित ही काम करेगी? बिहार विधानसभा की गणित को ही देखें तो एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी वहां बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। इसके बाद ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में जब भाजपा ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया तो भाजपा को इसका फायदा तो मिला और वह 4 से 48 सीटों पर पहुंच गयी लेकिन भाजपा के खिलाफ लामबंदी में के. चंद्रशेखर राव की पार्टी को नुकसान हुआ और ओवैसी की पार्टी को जबर्दस्त समर्थन मिला। ओवैसी को जीएचएनएम में 44 पार्षद मिले हैं। इसलिए यह संभावना भी जतायी जा रही है कि भाजपा के विरोध में ओवैसी भी पश्चिम बंगाल में कोई करिश्मा कर सकते हैं। विशेष रूप से ममता बनर्जी के लिए उसी तरह चिंता की बात होगी, जैसे तेलंगाना में केसी राव की पार्टी के साथ हुआ है। ममता बनर्जी की पार्टी में बिखराव भी दिख रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीतने के बाद से एआईएमआईएम के हौसले बुलंद हैं। असदुद्दीन ओवैसी अब बंगाल के सियासी पिच पर उतरकर किस्मत आजमाने की कवायद में हैं। बंगाल में टीएमसी के खिलाफ बीजेपी पहले से ही मोर्चा खोले हुए थी और अब ओवैसी की दस्तक ममता बनर्जी के लिए बेचैनी बढ़ाने वाली है। बंगाल की करीब 27 फीसदी मुस्लिम आबादी के मद्देनजर असदुद्दीन ओवैसी को बंगाल में अपनी जगह बनाने का सियासी मौका नजर आ रहा है, जिसके लिए उन्होंने बाकायदा एक प्लान बनाया है।
बंगाल में एआईएमआईएम के प्रवक्ता और सदस्य इमरान सोलंकी ने बताया कि बंगाल चुनाव को लेकर असदुद्दीन ओवैसी के साथ पार्टी नेताओं की बैठक हुई है, जिसमें प्रदेश के सभी नेताओं की बात सुनने के बाद उन्होंने हर जिले में एक समिति बनाने की बात कही है। हैदराबाद में हमारी पार्टी के पूर्व महापौर माजिद हुसैन जल्द ही बंगाल पहुंचेंगे और उन्हीं के कंधों पर बंगाल चुनाव की जिम्मेदारी होगी। माजिद हुसैन संगठन को खड़ा करने के साथ असदुद्दीन ओवैसी को रिपोर्ट करेंगे। बिहार चुनाव की कमान माजिद हुसैन संभाल चुके हैं।
उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल चुनाव में अभी चार से पांच महीने का समय है। संगठन बनने के बाद ही तय होगा कि पार्टी विधानसभा में कैसे और किन सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हमारी कोशिश है कि सूबे की सभी सीटों पर पार्टी चुनाव लड़े, क्योंकि पार्टी कार्यकर्ता पूरी तरह से सक्रिय हैं और बाकायदा लोगों से संपर्क भी कर रहे हैं।
एआईएमआईएम बिहार चुनाव के बाद से ही बड़े पैमाने पर सदस्यता अभियान चला रही है, जिसमें पश्चिम बंगाल में ही 10 लाख से अधिक पंजीकृत सदस्य बन चुके हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से सदस्यता अभियान चला रही है और पार्टी बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर अपने आपको देख रही है। एआईएमआईएम नेता इमरान सोलंकी ने कहा कि हमारी ऑनलाइन सदस्यता अभी भी जारी है। राज्य के मुर्शिदाबाद जिले में अकेले 2 लाख सदस्य हैं। बिहार चुनाव में मिली पांच सीटों के बाद पार्टी का तेजी से ग्राफ बढ़ा है। बिहार के जिस सीमांचल इलाकों में पार्टी को जीत मिली है वो बंगाल से लगे हुए हैं।
एआईएमआईएम ने बंगाल में अपनी उपस्थिति को दमदार तरीके से दर्ज करने के लिए आक्रमक चुनाव प्रचार की रणनीति बनाई है। पार्टी 100 से अधिक विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, लेकिन यह भी जानती है कि 65 से अधिक सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिमों का सीधा प्रभाव है। ऐसे में ओवैसी की नजर ऐसी सीटों पर खास तौर पर है। मालदा, मुर्शिदाबाद, नादिया, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना जैसे जिलों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। दिलचस्प बात यह है कि मुर्शिदाबाद जिले की कुछ विधानसभा सीटों पर 60 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोट हैं, जहां एआईएमआईएम कांग्रेस और टीएमसी दोनों पूरे जोरशोर से चुनावी किस्मत आजमाने के लिए बेताब हैं। पार्टी का दावा है कि कोलकाता में ही 6 फीसदी गैर-बंगाली बोलने वाले मुस्लिम हैं, जिनका शहरी सीटों पर राजनीतिक असर है। टीएमसी ने भी घोषणापत्र में मुसलमानों के लिए 17 फीसदी आरक्षण का आश्वासन दिया है, जो अभी तक पूरा नहीं हो सका है। यही वजह है कि मुस्लिम समुदाय बंगाल में राज्य में ममता बनर्जी की टीएमसी से अलग अपने लिए राजनीतिक विकल्प तलाश रहा है, जिसे एआईएमआईएम भी बाखूबी समझती है।
पार्टी के एक नेता ने कहा कि अगर ममता बनर्जी खुद को मुस्लिमों का समर्थक मानती हैं तो उन्होंने अपने घोषणापत्र के 17 फीसदी मुस्लिम आरक्षण के प्रावधान को क्यों लागू नहीं किया। बंगाल में कोई भी मुस्लिम विश्वविद्यालय नहीं हैं। यहां 15 प्रमुख जिले हैं, जिनमें से 5 जिले मुस्लिम बहुल हैं। यहां विकास का कोई काम नहीं हुआ हैं। चुनाव के दौरान ममता अपने भाषणों में कहती हैं कि मैंने पहले से ही 90 फीसदी काम मुस्लिमों के लिए किया है।
बंगाल के मुस्लिमों में मजबूत पकड़ रखने वाले मौलाना तोहार सिद्दीक के बेटे अब्बास सिद्दीकी जैसे धार्मिक नेताओं के परिवार के सदस्य भी, बंगल में मुस्लिमों के एक मजबूत विकल्प के तौर पर एआईएमआईएम के साथ हाथ मिलाने की अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं। यहां एआईएमआईएम का ग्राउंड सपोर्ट तेजी से बढ़ा है और ऐसे ही रहा तो बंगाल में 50 से अधिक सीटों पर ममता बनर्जी को कड़ी चुनौती होगी। इमरान सोलंकी ने समझाया कि अब्बास सिद्दीकी बंगाल में एक उभरता हुआ चेहरा हैं, जिन्होंने खुद को चुनाव के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया। इसीलिए उनके चुनाव लड़ने को लेकर पार्टी में चर्चा हुई है और वो लड़ने की इच्छा जाहिर करते हैं तो पार्टी इसे गंभीरता से लेगी। इमरान ने जोर देकर कहा, हम मानते हैं कि बीजेपी और टीएमसी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पश्चिम बंगाल में चुनावी सरगर्मियों के बीच नेताओं को विशेष सुरक्षा भी दी जा रही है। अब नया नाम सामने आया है बीजेपी सांसद जॉन बरला का। गृह मंत्रालय ने सुरक्षा की समीक्षा की है जिसमें बंगाल के नेताओं की सुरक्षा को और ज्यादा पुख्ता करने के लिए निर्देश दिए गए हैं। इसी कड़ी में लगातार पश्चिम बंगाल से जुड़े नेताओं की सुरक्षा में इजाफा किया जा रहा है। पश्चिम बंगाल के 25 नेताओं को अब तक गृह मंत्रालय की तरफ से सुरक्षा दी गई है।
पश्चिम बंगाल की ममता सरकार और केंद्र सरकार के बीच तलवारें खिंच गई हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हुए हमले के बाद एक्शन लिया और तीन अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुलाया लेकिन राज्य सरकार ने अफसरों को भेजने से इनकार किया है। इस प्रकार ममता बनर्जी एक तरफ भाजपा और केन्द्र सरकार से टकरा रही है तो दूसरी तरफ ओवैसी जैसे नेता भी उनके वोट बैंक में सेंध लगाएंगे। (हिफी)