विपक्षी एकता का पुनः प्रयास

विपक्षी एकता का पुनः प्रयास

कोलकाता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जब से केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी और कांग्रेस पार्टी को कई राज्यों से सत्ता गंवानी पड़ी, तभी से विपक्षी दलों की एकता की ध्वनि भी सुनाई पड़ रही है। हालांकि यह बिल्ली के गले में घंटी बांधने वाला नाटक कुछ समय के लिए ही चलता है। अभी लगभग तीन वर्ष पहले कर्नाटक में जब विधानसभा के चुनाव हुए थे और कांग्रेस ने जेडीएस से समझौता करके भाजपा को सरकार बनाने से रोक दिया था, तब कुमार स्वामी गौड़ा के शपथ ग्रहण समारोह में लगभग सभी विपक्षी दलों के नेता मंच पर मौजूद थे और विपक्षी एकता का शोर भी मचाया था। आश्चर्य यह कि विपक्षी एकता तो नहीं हो सकी लेकिन भाजपा ने कांगे्रस और जेडीएस के विधायकों की बगावत कराकर सत्ता पर कब्जा कर लिया। अब पश्चिम बंगाल में काफी जोर लगाने के बाद भी भाजपा को सरकार बनाने में सफलता नहीं मिल पायी तो तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी विपक्षी दलों की लीडर बनकर उभरी है। उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं ने तो इस बात की घोषणा कर दी है। कांग्रेस भी इस बात की घोषणा करती, इसका इंतजार ममता बनर्जी काफी दिनों तक करती रहीं लेकिन अब उनका धैर्य समाप्त हो गया और वे भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को एक होने का आह्वान कर रही है।

पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री के तौर पर लगातार तीसरी बार शपथ लेने वाली तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों का परोक्ष रूप से आह्वान किया है। अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ साथ मिलकर लड़ाई लड़ी जा सकती है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि पहले कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़नी है और इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर कोई फैसला किया जाएगा। राज्य विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड जीत की पृष्ठभूमि में ममता ने कहा कि इस जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से बधाई देने संबंधी कोई फोन उनके पास नहीं आया, जबकि अब तक यह परंपरा रही है कि प्रधानमंत्री फोन करते हैं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी भूमिका के बारे में पूछे जाने पर कहा, 'मैं सड़क पर लड़ाई लड़ने वाली योद्धा हूं। मैं लोगों का हौसला बुलंद कर सकती हूं ताकि हम भाजपा के खिलाफ मजबूत लड़ाई लड़ें। अगर हम सामूहिक रूप से फैसला कर सकते हैं तो 2024 की लड़ाई हम मिलकर लड़ सकते हैं। लेकिन पहले हमें कोविड संकट से लड़ना है और फिर इस बारे में फैसला करना है। अभी इसका समय नहीं है।' पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने दावा किया कि वाम दल अपना वो वोटबैंक वापस हासिल नहीं कर पाए जो उन्होंने भाजपा के हाथों खो दिया है और इस वजह से वामपंथी दलों की स्थिति में और गिरावट आ गई। ममता ने कहा, 'वाम दलों के साथ राजनीतिक मतभेद हैं, लेकिन मैं उन्हें शून्य पर पहुंचता नहीं देखना चाहती। बेहतर होता कि वे भाजपा से अपना वोट बैंक वापस हासिल कर लेते। उन्होंने भाजपा को इस कदर फायदा पहुंचाया कि आज वे शून्य हो गए। उन्हें इस बारे में सोचने की जरूरत है। दीपांकर भट्टाचार्य (भाकपा माले) इस रास्ते पर नहीं चले।'

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम की घोषणा के बाद एक ओर जहां भाजपा का विजय रथ रुक गया है वहीं, उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस के लिए भी मुश्किलें बढ़ी हैं। इसी बीच पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की अभूतपूर्व जीत के बाद राजनीतिक पंडितों को लग रहा है कि एक बार फिर क्षेत्रीय दल और नेता राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनकर उभरेंगे। कोविड-19 संकट से निपटने को लेकर विपक्ष की आलोचना झेल रही भाजपा की पश्चिम बंगाल में हार हुई है। भाजपा सूत्रों का दावा है कि पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन का टूटना, बनर्जी नीत तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण, मतदान प्रतिशत में कमी, खास तौर से कोविड-19 के कारण अंतिम कुछ चरणों में मतदान की कमी आदि ने राज्य में पार्टी की हार में मुख्य भूमिका निभाई है। पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष का हालांकि कहना है कि तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नेताओं का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है, वहीं पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने तृणमूल कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन का श्रेय ममता बनर्जी को दिया है। विजयवर्गीय ने कहा, 'तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी के कारण जीती है। ऐसा लगता है कि जनता ने दीदी को चुना है। हम आत्मविश्लेषण करेंगे कहां गलती हुई है, क्या यह संगठन का मुद्दा था, या चेहरे की कमी या भीतरी-बाहरी का विवाद। हम देखेंगे कि कहां गलती हुई है।' जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर मणिन्द्र नाथ ठाकुर का कहना है कि पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम बनर्जी के साथ नए गठजोड़ को बढ़ावा दे सकते हैं। उन्होंने बनर्जी को इंदिरा गांधी के बाद सबसे मजबूत महिला नेता बताया। यह रेखांकित करते हुए कि बंगाल के बाहर भी बनर्जी की पार्टी का संगठन है, उन्होंने कहा कि गठबंधन की राजनीति के दूसरे चरण में संभवतः क्षेत्रीय दल-क्षत्रप मुख्य भूमिका में होंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस जिन राज्यों में मजबूत है, उसकी भूमिका वहां बनी रहेगी। राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों/क्षत्रपों का काफी दबदबा था जो 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बहुमत की सरकार बनने के बाद लगभग धराशायी हो गया था।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपील की कि अब इस राजनीति को खत्म कर सभी को मिलकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई पर ध्यान देना चाहिए और इसे खत्म कर के ही दम लेना चाहिए। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने ममता को सोशल मीडिया पर बधाई दी है।

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने बंगाल में टीएमसी की जीत पर बधाई दी। उन्होंने साथ ही दीदी जियो दीदी हैशटैग भी इस्तेमाल किया। वह चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल गए थे और ममता बनर्जी का खुलकर समर्थन किया था। अखिलेश ने ट्वीट किया, पश्चिम बंगाल में भाजपा की नफरत की राजनीति को हराने वाली जागरुक जनता, जुझारू ममता बनर्जी जी और टीएमसी के समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं को हार्दिक बधाई। यह भाजपाइयों के एक महिला पर किए गए अपमानजनक कटाक्ष 'दीदी ओ दीदी' का जनता की ओर से दिया गया मुंहतोड़ जवाब है।

नतीजों पर राजनीतिक विश्लेषक लव कुमार मिश्रा ने कहा था कि भाजपा ने कोरोना के सुनामी के बीच अपनी पूरी ताकत बंगाल में झोंक दी थी। ऐसा माहौल बनाया गया कि भाजपा जीत रही है। इसके बावजूद टीएमसी की जीत भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं है। उनका कहना है कि बंगाल के चुनाव परिणाम के कई राजनीतिक मायने भी निकलेंगे। विधानसभा में सीटों के लिहाज से पश्चिम बंगाल में यूपी के बाद सबसे ज्यादा 294 सीटें हैं। यही कारण था कि भाजपा देश के दूसरे सबसे बड़े सियासी राज्य पर अपना झंडा फहराना चाहती थी। भाजपा की असफलता से विपक्षी दलों की एकता को नया अवसर मिला है। ममता बनर्जी इसी को भुनाना चाहती है।

इसीलिए ममता ने कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले पर भी भाजपा को निशाने पर लिया। उन्होंने अन्तिम चार चरणों में भाजपा के चुनावी सभा और रोड शो को संक्रमण के लिए दोषी ठहराया। जनता को वो यह समझाने में सफल रही कि बंगाल में जो महामारी फैल रही है, उसके लिए भाजपा जिम्मेवार हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव तो टाला जा सकता था या फिर आठ की जगहों पर चार चरणों में कराया जा सकता था, लेकिन भाजपा ने अपने स्वार्थ में चुनाव को लंबा खींचा और महामारी को बढ़ाया। ममता के वार के काट के लिए भाजपा के पास न तो मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा था और न ही कोई तेजतर्रार महिला नेता जो ममता को उनकी शैली में जवाब दे पाता। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि बंगाल में दीदी की यह जीत उन्हें 2024 के आम चुनाव में विपक्षी गठजोड़ का लीडर बना दे। आने वाले दिनों में ममता अपना उत्तराधिकारी घोषित कर स्वयं केंद्र की राजनीति में आ सकती हैं। (हिफी)

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