किसान आंदोलनःआखिर कृषि कानूनों ने डूबा ही दी भाजपा की नैय्या

किसान आंदोलनःआखिर कृषि कानूनों ने डूबा ही दी भाजपा की नैय्या

चंडीगढ। देश में नये कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसानों के आंदोलन और रोजाना सुरसा के मुंह की तरह बढती डीजल-पैट्रोल की कीमतों ने पंजाब में स्थानीय निकाय चुनावों की मतगणना के परिणामों ने भाजपा की लुटिया लगभग पूरी तरह से डुबाकर रख दी। धर्मपुत्र सनी देओल का ढाई किलों का हाथ तो भाजपा के लिए वजनदार निकला ही नही, साथ ही शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरनजीत कौर का काफी समय तक रहा केंद्रीय मंत्री का तमगा भी अपने दल का भाग्य नही चमका पाया।

दरअसल देश में पिछले काफी समय से आये दिन डीजल और पैट्रोल के साथ रसोई गैस की कीमतें बढ रही है। जिन्हें लेकर देश के विपक्षी दल कोई बडा आंदोलन खडा नही कर पाये है। विपक्षी दलों को बिस्तर में पडा हुआ देखकर भाजपा ने रोजाना बढते डीजल, पैट्रोल और रसोई गैस के साथ-साथ अन्य वस्तुओं की बढती कीमतों को जनता का मौन समर्थन मान लिया। इसी बीच भारी बहुमत के वजन में डुबी भाजपा ने नये कृषि कानून बनाकर लागू कर दिये। भाजपा को उम्मीद थी कि उसके अन्य फैसलों की तरह किसान भी इसे हाथों हाथ लेगें। मगर किसानों ने सरकार के इस फैसले को पूरी तरह नकार दिया। शुरूआती हो-हल्ले का कोई असर होता ना देख किसान एकजुट होकर आंदोलन करने पर उतर आये और पंजाब हरियाणा से होते हुए किसान अपना विरोध जताने राजधानी की सीमाओं तक पहुंच गये। किसान अभी तक भी राजधानी दिल्ली के गाजीपुर, सिंघु और टीकरी बाॅर्डर पर अभी तक भी डटे रहकर धरना प्रदर्शन कर रहे है। नये कृषि कानूनों और रोजाना बढते डीजल, पैट्रोल और रसोई गैस के साथ आवश्यक वस्तुओं के दामों के विरोध का पंजाब के स्थानीय नगर निकाय चुनावों ने लोगों के हाथ में मौका थमा दिया।

पंजाब के मतदाताओं ने इसे विरोध का सुनहरा मौका मानते हुए चुनावी त्यौहार में जमकर अपनी भागेदारी करते हुए अपने मताधिकार का प्रयोग किया। बुधवार को जब मतपेटियों से परिणाम का जिन्न बाहर निकला तो उसने राजनीति के जानकारों मे उधेडबुन शुरू करा दी। राजनीति के जानकारों को मतपेटियों से निकले परिणाम का शायद सपनों में भी अनुमान नही रहा होगा। संभवत यह रोजाना सुरसा के मुंह की तरह रोजाना बढते डीजल-पैट्रोल और रसोई गैस के साथ अन्य आवश्यक वस्तुओं के दामों और नये कृषि कानूनों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन का अभी तक समाधान ना होने का ही असर रहा कि धर्मपुत्र सांसद सनी देओल के संसदीय क्षेत्र गुरदासपुर से भाजपा का सुपडा ही साफ हो गया। मतदाताओं ने भाजपा के किसी प्रत्याशी को सदन के भीतर बैठने लायक नही समझा। बानूर में कांग्रेस को 12 सीटें जीतकर भाजपा को करारी मात दी है। अकाली दल को महज एक सीट मिली है। रायकोट में कांग्रेस को 15 सीटें, दोराहा में कांग्रेस को 9 सीटों पर जीत मिली है तो अकाली दल को और आम आदमी पार्टी को सीट जीतकर ही सब्र से रहना पडा है। इतना ही नही अबोहर, बठिंडा, कपूरथला, होशियारपुर, मोंगा और बटाला म्यूनिश्पल काॅर्पोरेशन कांग्रेस ने सफलता के झंडे गाडे है। खन्ना में कांग्रेस ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की है तो 6 सीटें अकाली दल के खाते में गई है। जगरोन में कांग्रेस को 17 सीटें मिलीं है तो 5 पर निर्दलीय सफलता प्राप्त की है। एक सीट पर अकाली दल को जीत नसीब हुई है।

भारतीय जनता पार्टी के गढ़ माने जाने वाले पठानकोट म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में कांग्रेस के हाथ का जादू चला है। कांग्रेस ने यहां 50 वार्डों में 23 में जीत हासिल की है। फरीदकोट नगर निगम में कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की है। निगम के 25 वार्डो में से कांग्रेस ने 16 सीटें अपने खाते में जमा करते हुए जीत दर्ज की है, वहीं अकाली दल 7 में जीत हासिल करने में सफल रही। इसके अलावा, आप को एक और निर्दलीय को एक सीट हाथ लगी है।

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