आरोपी आम आदमी होता तो क्या उसे भी इतनी ही छूट मिलती?-SC

आरोपी आम आदमी होता तो क्या उसे भी इतनी ही छूट मिलती?-SC

नई दिल्ली। लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के मामले की जांच पड़ताल के नाम पर मुख्य आरोपी की अभी तक गिरफ्तारी नहीं किए जाने पर नाराज उच्चतम न्यायालय ने सरकार से पूछा है कि अगर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के पुत्र के स्थान पर इस मामले में कोई अन्य आम आदमी आरोपी होता तो क्या सरकार की ओर से उसे भी इसी तरह की छूट दी जाती?

शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में सीजेआई की पीठ ने लखीमपुर खीरी में 3 अक्टूबर दिन रविवार को हुई हिंसा के मामले की सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई है और कहा कि जब मामला धारा 302 का है तो अभी तक इस मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई है? उच्चतम न्यायालय ने कहा है मामला सीबीआई को सौंपना भी सही नहीं रहेगा। बल्कि इसके लिए कोई और तरीका देखना होगा। सुनवाई के दौरान पुलिसिया कार्यवाही में शिथिलता बरतने के चलते उत्तर प्रदेश सरकार को मुख्य न्यायाधीश के कड़े सवालों का सामना करना पड़ा। मुख्य न्यायाधीश की ओर से राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए सवाल किया गया कि क्या हत्या के आरोपियों को पुलिस इसी तरह नोटिस भेजकर पूछताछ के लिए बुलाती है? सीजेआई ने पूछा है कि अब तक हत्यारोपी को हिरासत में किस आधार पर नहीं लिया गया है? अदालत के सवालों का जवाब देते हुए राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील हरीश साल्वे ने कहा है कि किसानों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गोली के घांव दिखाई नहीं दिए हैं, इसलिए उन्हें नोटिस भेजा गया था। सरकार के वकील ने बताया कि घटनास्थल से दो कारतूस बरामद हुए हैं। इससे लगता है कि आरोपी का निशाना कुछ और था। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के पुत्र आशीष मिश्रा को नोटिस भेजे जाने के मामले में अदालत ने अपनी टिप्पणी करते हुए कहा है कि जिस व्यक्ति पर हत्या या किसी को गोली से घायल करने का आरोप है उसके साथ इस देश में इस तरह का व्यवहार किया जाएगा? इस पर वकील हरीश साल्वे ने कहा है कि अगर व्यक्ति नोटिस के बाद नहीं आता है तो कानूनी सख्ती का सहारा लिया जाता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार की ओर से की गई कार्यवाही से संतुष्ट नहीं दिखाई दी। अदालत ने कहा कि 8 लोगों की बेरहमी के साथ हत्या कर दी गई। इस मामले में सभी आरोपियों के लिए कानून एक समान है। अदालत ने कहा कि हमें उम्मीद है कि राज्य सरकार इस गंभीर मामले में अपनी ओर से जरूरी कदम उठाएगी। अदालत की ओर से राज्य सरकार को आदेश दिया गया है कि इस मामले की जांच एक वैकल्पिक एजेंसी से कराई जाए और इसकी जानकारी उच्चतम न्यायालय को दी जाए। जब तक कोई वैकल्पिक एजेंसी इस मामले की जांच शुरू नहीं कर देती है उस समय तक राज्य के डीजीपी की जिम्मेदारी होगी कि वह घटना से जुड़े सभी सबूतों को सुरक्षित रखें।



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