टाइगर सफारी के नाम पर अवैध निर्माण के मामले की जांच करेगी सीबीआई

टाइगर सफारी के नाम पर अवैध निर्माण के मामले की जांच करेगी सीबीआई

नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने देश के प्रसिद्ध कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में टाइगर सफारी के नाम पर 6000 पेड़ों के अवैध पातन और अवैध निर्माण के प्रकरण की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है।

अदालत के सीबीआई के निर्णय से प्रदेश के कुछ सफेदपोशों, ब्यूरोक्रेट्स के साथ ही वन महकमे के उच्चाधिकारियों की परेशानी बढ़ सकती है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ ने देहरादून निवासी अनु पंत एवं हाईकोर्ट की ओर से लिये गये स्वतः संज्ञान वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आज ये आदेश जारी किया। अदालत ने विगत एक सितम्बर को इस मामले में निर्णय सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने अपने आदेश में प्रदेश की जांच एजेंसियों को सीबीआई को सहयोग करने के निर्देश भी दिये हैं। अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि वह इस प्रकरण में किसी को दोषी साबित नहीं कर रहे हैं लेकिन विभिन्न एजेंसियों की जांच में आये तथ्यों से यह प्रकरण सीबीआई जांच के लायक है। अदालत ने सीबीआई से इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच की बात कही है।

यह प्रकरण वर्ष 2021 में पहली बार तब सुर्खियों में आया जब उच्च न्यायालय ने कुछ अखबारों की रिपोर्ट के आधार पर इस प्रकरण का स्वतः संज्ञान लिया और जनहित याचिका दायर कर ली। इसके कुछ समय बाद वर्ष 2021 में ही देहरादून निवासी अनु पंत की ओर से भी इस प्रकरण को एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी। अदालत ने दोनों याचिकाओं की सुनवाई करते हुए प्रदेश सरकार को वर्ष 2021, 06 जनवरी, 2022 और जनवरी, 2023 में प्रदेश सरकार को तीन अलग-अलग मौके देते दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने के निर्देश दिये लेकिन सरकार की ओर से कथित दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गयी।

सरकार की ओर से सिर्फ कालागढ़ के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) किशन चंद के खिलाफ ही कार्यवाही कर इतिश्री कर ली गयी याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी की ओर से अदालत के समक्ष विभिन्न जांच का हवाला देते हुए कहा गया कि प्रदेश सरकार दोषियों को बचाना चाहती है और कार्यवाही से बच रही है। नेगी की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि कालागढ़ वन प्रभाग के मोरघट्टी और पाखरो में टाइगर सफारी के नाम पर बड़ी संख्या में अवैध निर्माण हुआ है। इसके लिये 6000 पेड़ों का अवैध रूप से पातन किया गया है। टाइगर सफारी के लिये केन्द्र सरकार की अनुमति नहीं ली गयी है और तत्कालीन प्रमुख सचिव वन और प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव) की ओर से वित्तीय स्वीकृति दे दी गयी। आरोप लगाया कि शासन और उच्चाधिकारियों की शह पर अवैध निर्माण किया गया है।

अदालत के समक्ष यह तथ्य भी रखे गये कि केन्द्रीय अधिकार प्राप्त कमेटी (सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी), राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) और राज्य के आडिटर जनरल की रिपोर्ट में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत, तत्कालीन प्रमुख सचिव वन, पीसीसीएफ (वन्य जीव) के साथ ही अन्य अधिकारियों को भी दोषी माना गया है। इसके बावजूद सरकार दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय उन्हें प्रोन्नत करने में लगी है। इसी साल छह जनवरी को अदालत ने अंतिम बार आदेश जारी कर मुख्य सचिव को दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने और अनुपालन रिपोर्ट अदालत में पेश करने को कहा था लेकिन इसके बावजूद मुख्य सचिव की ओर से अदालत में संतोषजनक जवाब पेश नहीं किया गया। सरकार की ओर से विजिलेंस जांच का हवाला देते हुए बार-बार सीबीआई जांच का विरोध किया गया लेकिन अदालत ने सरकार के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।

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