आंध्र में राजधानी का खेल
अमरावती। विकास के नाम पर स्वार्थ का खेल चलता है। ईमानदारी की डींग हांकने वाली सरकारें भी दूध की धुली नहीं रह गयी हैं। इन स्वार्थों की परतें जब खुलती हैं तो कई सफेद वर्दी वाले भी काले नजर आने लगते हैं। दक्षिण भारत के राज्य आंध्र प्रदेश में यही हुआ है। आज से सात वर्ष पहले अर्थात् 2014 में आंध्र प्रदेश का विभाजन हो गया था और तेलंगाना के नाम से नया राज्य बन गया। इसके बाद राजधानी को लेकर दोनों राज्यों में विवाद छिड़ गया। फैसला किया गया कि 10 साल तक हैदराबाद ही दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी रहेगा लेकिन इसके बाद इसे तेलंगाना को दे दिया जाएगा।
आंध्र प्रदेश में उस समय चन्द्रबाबू नायडू की सरकार हुआ करती थी। चंद्रबाबू ने कृषि विशेषज्ञों की सलाह को दर किनार करते हुए अमरावती में आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी बनाने का फैसला कर लिया। जाहिर है कि जब अमरावती को राज्य की राजधानी बनाया जाना है तो वहां की जमीन सोने के भाव बिकने लगी। इस लालच में लोकतंत्र के तीनों स्तंभ अर्थात् न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका फंस गये। सभी ने जमीनें खरीद लीं। इस बीच वक्त ने करवट ली और आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की सरकार बनी तो उन्हें पूरे गोरखधंधे की भनक लग गयी। जगन मोहन ने राज्य में तीन राजधानी बनाने का कानून पारित करा लिया और असली राजधानी विशाखापत्तनम को बनाया। जगन मोहन की सरकार ने कहा कि कार्यपालिका यानी सरकार विशाखापत्तनम से कार्य करेगी और विधान भवन अमरावती में होगा जबकि प्रदेश का हाईकोर्ट कुर्नूल में होगा। इस प्रकार जगन मोहन रेड्डी से चंद्रबाबू नायडू के चहेते खफा हो गये। इनमें न्यायपालिका से जुड़े लोग भी शामिल हैं जिनकी शिकायत जगन मोहन रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से की थी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई भी हो रही है। सीजेआई एसए बोबडे ने कहा है कि हाईकोर्ट का फैसला परेशान करने वाला है। दरअसल, सरकार के फैसलों पर हाईकोर्ट स्टे दे देता है।
दो जून, 2014 को तेलंगाना राज्य बनने के समय आंध्र प्रदेश पुनर्गठन कानून में ये प्रावधान किया गया था कि हैदराबाद अगले दस साल तक आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों ही राज्यों की संयुक्त राजधानी रहेगी। आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के लिए जगह खोजने के लिए केंद्र सरकार ने तब शिवराम कृष्णन कमेटी का गठन भी किया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में आंध्र प्रदेश के लिए एक से ज्यादा राजधानी का मॉडल अपनाने की सिफारिश की थी।
कमेटी ने सलाह दी थी कि विजयवाड़ा और गुंटूर के बीच का इलाका बेहद उपजाऊ और बहुफसली होने की वजह से राजधानी बनाने लायक नहीं है। कमेटी ने नई राजधानी के लिए कुछ जगहों के सुझाव भी दिए थे। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कमेटी की सिफारिशों को तवज्जो नहीं दी और नई राजधानी के लिए अमरावती को चुना। इतना ही नहीं 22 अक्टूबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरावती में नई राजधानी के निर्माण के लिए बुनियाद रखी। तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि शिवराम कृष्णन कमेटी की रिपोर्ट रखे जाने से काफी पहले से चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने राजधानी के लिए अमरावती की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया था। बाद में सरकार ने अस्थाई विधानसभा, सचिवालय और दूसरी इमारतों के निर्माण कार्य के साथ-साथ कई नई सरकारी परियोजनाओं पर काम शुरू कर दिया गया। चंद्रबाबू नायडू सरकार के मंत्रियों ने राजधानियों का मॉडल समझने के लिए कई राज्यों और देशों का दौरा किया। इसी सिलसिले में नई राजधानी के निर्माण के लिए सिंगापुर की कंपनियों के साथ कई समझौता ज्ञापनों पर दस्तखत भी किए गए।
चंद्रबाबू सरकार ने अपनी तरह के भव्य और विशाल राजधानी के निर्माण के लिए कई ब्लूप्रिंट रखे जिसमें भविष्य की अमरावती की झलक मिलती थी। लेकिन साल 2019 में हालात तेजी से बदले। तेलुगूदेशम पार्टी ने बहुमत गंवा दिया और वाईएस जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व में नई सरकार बनी। नई सरकार ने पहले ही दिन से अमरावती के विकास की सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी। ये इशारा काफी था कि अमरावती के हाथ से नई राजधानी का ओहदा निकलने वाला है।
जगनमोहन सरकार ने बाद में राजधानी के मुद्दे पर रिपोर्ट देने के लिए जीएन राव समिति का गठन किया। इससे पहले कि जीएन राव कमेटी अपनी रिपोर्ट देती, मुख्यमंत्री जगनमोहन ने विधानसभा में ये संकेत दिए कि उनकी सरकार तीन राजधानियों के मॉडल पर विचार कर रही है। बाद में जीएन राव समिति ने भी इसी तर्ज पर अपनी रिपोर्ट देकर सरकार के प्रस्ताव के लिए रास्ता साफ कर दिया। वित्तमंत्री बुग्गना राजेंद्रनाथ रेड्डी ने राजधानी के विकेंद्रीकरण का कानून विधानसभा में रखा और सदन ने इसे पारित भी कर दिया। विधानसभा में 12 घंटे तक चली जोरदार बहस के दौरान मुख्यमंत्री जगनमोहन ने कहा कि राजधानी के कामकाज का बंटवारा करके और विकेंद्रीकरण पर ध्यान देकर उनकी सरकार पिछली सरकारों की ऐतिहासिक गलतियों को ठीक कर रही है। उन्होंने ये भी कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री ने आंध्र प्रदेश के लोगों के सामने एक काल्पनिक राजधानी की तस्वीर रखी थी जिसका निर्माण कभी भी मुमकिन नहीं था। जगनमोहन की दलील थी कि राजधानी के विकेंद्रीकरण का मॉडल राज्य के सभी इलाकों के लोगों की बेहतरी के लिए है। उन्होंने कहा कि एक ही जगह के विकास पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बजाय राजधानियों के विकास के लिए पहले से उपलब्ध बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल बेहतर है।
विपक्ष के नेता चंद्रबाबू नायडू ने विधानसभा में इस बहस पर कहा, मुख्यमंत्रियों के बदलने पर हम हर बार राजधानी कैसे बदल सकते हैं। विकास का विकेंद्रीकरण होना चाहिए न कि राजधानियों का। विकेंद्रीकरण का रास्ता विकास की तरफ नहीं जाता है। उन्होंने ये भी कहा कि मौजूदा सरकार ने ये फैसला पिछली सरकार से बदला लेने के लिए किया है। दूसरी तरफ अमरावती के विकास के लिए जमीन देने वाले किसान राजधानी पर सरकार के फैसले के खिलाफ सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अमरावती इलाके के सैंकड़ों किसान और महिलाओं ने निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया और विधानसभा परिसर तक पहुंचने के लिए सुरक्षा घेरे को तोड़ा।
गांववालों ने सरकार के विरोध में काले झंडे लेकर प्रदर्शन किया जबकि कुछ प्रदर्शनकारियों ने तो गृहमंत्री सुचरित्र के घर में दाखिल होने की भी कोशिश की। अमरावती के इलाके में भी पुलिस की बड़े पैमाने पर तैनाती की गई थी।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी विधानसभा के सत्र दो शहरों में होते हैं। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में साल में एक बार सर्दियों में विधानसभा नागपुर में बैठती है। ठीक इसी तरह, हिमाचल में शिमला और धर्मशाला में विधानसभा बैठती है। धर्मशाला को राज्य की शीतकालीन राजधानी भी माना जाता है। कर्नाटक भी बेंगुलुरु के अलावा बेलगांव में विधानसभा बैठती है। उत्तराखंड में हाई कोर्ट नैनीताल में है। इसी तरह से छत्तीसगढ़, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट राजधानी के बाहर दूसरे शहरों में स्थित है। इसलिए आंध्र प्रदेश का फैसला भी कोई अजूबा नहीं है।
मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की अध्यक्षता में राज्य कैबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित कर आंध्र प्रदेश राजधानी विकास प्राधिकरण को खत्म कर दिया है। इस प्राधिकरण का गठन राजधानी अमरावती के विकास के लिए किया गया था। अमरावती के किसानों के लिए कैबिनेट ने मुआवजे की अवधि बढ़ाकर 10 से 15 साल कर दी है। इन किसानों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के वर्ल्ड क्लास कैपिटल बनाने की पेशकश पर अपनी जमीन दी थी। उनका मुआवजा भी सियासत के झगड़े में फंस गया है। (हिफी)