हाय! कैसी औलाद- वृद्ध कैसे उठायें जिंदगी का बोझ
लखनऊ। कलेजे के टुकड़े को मां-बाप हर गम उठाने के बावजूद हंसते हुए पालते हैं। उसकी हर आरजू को पूरी करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। उनकी इच्छा होती है कि उनका बच्चा पढ़ लिखकर कामयाब आदमी बन जाये और उनकी बुढ़ापे की लाठी बने। लेकिन आज के कलयुग में कामयाब इंसान बनने के बाद अपने वृद्ध मां-बाप को मरने के लिए छोड़ देते हैं। उनका क्या हाल होगा, पलटकर भी नहीं देखते।
कुछ इसी तरह की कहानी को बयां करता एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस फोटो पर लोगों के बहुत से कमेंट आ रहे हैं और सभी वृद्ध के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं। फोटो में दिखाया गया है कि एक लगभग 90 वर्षीय वृद्ध जिसकी कमर पूरी तरह से झुक चुकी है। लम्बी सफेद दाढ़ी है। वह अंगूर से भरे ठेले को खींचकर बाजार की ओर इस आस में ले जा रहा है कि उसके अंगूर बिक जायें, तो उसके घर का चूल्हा जल सके।
इस फोटो को आईपीएस ने ट्वीट किया है। फोटो को शेयर करते हुए उन्होंने लिखा है कि शहर में वृद्धाश्रम खुले या बुजुर्गों को रोजी-रोटी कमाने निकलना पड़े, तो ये औलाद के रूप में हमारा और नागरिक के रूप में पूरे समाज का, बहुत बड़ा फेलियर है। अगर हम ज्ञान और अनुभव बांटने वाले बड़े-बुजुर्गों का ध्यान न रख सकें, तो देश का ध्यान कैसे रखेंगे? आईपीएस ने बिल्कुल सही कमेंट किया है। अगर संतान के होते हुए भी मां-बाप को उस उम्र में मेहनत करनी पड़े, जबकि उनका शरीर जवाब दे चुका है, तो ऐसी संतान से तो बेसंतान होना ही अच्छा है।
कोई वृद्धाश्रम शहर में खुले, तो इसका मतलब यह है कि कहीं न कहीं तो चूक है। कोई न कोई तो अपने बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर रहा है, जो वृद्ध वृद्धाश्रम में रहने के लिए आ रहा है। क्या फायदा ऐसी संतान के लालन-पालन का। मां-बाप न जाने कितने दुःख सहकर अपनी संतान को पालता-पोसता है और बाद में संतान बूढ़े मां-बाप को इस तरह से अकेला छोड़ दे। कहीं न कहीं, यह समाज का फेलियर है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव है। भारतीय संस्कृति न तो कभी ऐसी थी और न ही कभी ऐसी होगी, जो कि मां-बाप का तिरस्कार करना सिखाये। संतान को यह समझना होगा कि जिन बूढ़े मां-बाप को वे बोझ समझ रहे हैं, उन्हीं ने अब तक उनका बोझ उठाया है और उन्हें इस लायक बनाया है कि वे अपना बोझ उठा सकें।