नीतीश का शिक्षक कार्ड
नई दिल्ली। बिहार के राजनीतिक गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा दलित नेता श्याम रजक की हो रही है। श्याम रजक ने जद यू का साथ छोड़ कर राजद का दामन थाम लिया है। इन्ही श्याम रजक ने जुलाई 2017 में कहा था कि लालू प्रसाद यादव को अपने परिवार की और नीतीश कुमार को अपनी कुर्सी की फिक्र है। यह वीडियो सार्वजनिक होने के बाद श्याम रजक और नीतीश कुमार में दूरियां बढ़ने लगी थीं । श्याम रजक नीतीश कुमार के नाक के बाल कहे जाते थे लेकिन बाद में उन्हें पार्टी स्तर पर नजरअंदाज किया जाने लगा। हालांकि इसी बीच उन्हें नीतीश कैबिनेट में जगह तो मिली लेकिन पार्टी स्तर पर कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई। अब माना जा रहा था कि जेडीयू श्याम रजक का टिकट तक काटने की तैयारी में थी। ऐसे में सम्मान बचाने के लिए श्याम रजक के सामने पार्टी से अलग होने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने स्तर से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। उनको गठबंधन धर्म भी निभाना है और अपनी पार्टी को भी मजबूत करना है। इसी के चलते 18 अगस्त को नीतीश सरकार की कैबिनेट बैठक हुई। इस बैठक में कुल 28 एजेंडों पर मुहर लगी। इस कैबिनेट मीटिंग में नीतीश सरकार ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नियोजित शिक्षकों की मांगों को मानकर शिक्षकों को एक बड़ा तोहफा दिया है। बता दें कि बिहार में नियोजित शिक्षक इसकी लंबे समय से कुछ मांग कर रहे थे और इसको लेकर लंबे समय उन्होंने प्रदर्शन किया था। अब सरकार के फैसले के बाद, नियोजित शिक्षकों को बड़ी राहत मिली है।
बिहार कैबिनेट ने बड़ा निर्णय लेते हुए प्रदेश के नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त नियमावली को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही लंबे अरसे से लंबित पड़े शिक्षकों की अधिकतर मांगों को मान लिया गया है। सरकार के इस फैसले से करीब पौने चार लाख शिक्षकों को सीधा फायदा मिलने वाला है। नीतीश के कैबिनेट के इस फैसले के साथ ही शिक्षकों को प्रोन्नति, स्वैच्छिक स्थानांतरण समेत कई सुविधाओं का अब लाभ मिल सकेगा। इसके साथ ही सरकार ने वेतन में भी 22 फीसदी तक का इजाफा कर दिया है, जिसका लाभ एक अप्रैल 2021 से मिलेगा। कैबिनेट के इस फैसले से सरकार के खजाने पर 2765 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। जानकारी के अनुसार, वेतन वृद्धि 15 से 22 प्रतिशत तक की गई है जिसमें वरिष्ठता के आधार पर निर्णय किया जाएगा। शिक्षकों को मिलने वाले लाभ में ईपीएफ के तौर पर 12-12 फीसदी का अंश 12 फीसदी सरकार अपने हिस्से से देगी। स्थानान्तरण, प्रोमोशन समेत अन्य तरह की सुविधा का तोहफा मिलने वाला है। अब बिहार के नियोजित शिक्षक किसी कोने में ट्रांसफर ले सकेंगे। इसके साथ ही संयुक्त सीमित परीक्षा के माध्यम से प्रोमोशन का भी लाभ मिलेगा। वहीं, शिक्षक की मौत के बाद परिजनों को नौकरी का अवसर मिलेगा।
बिहार में इस साल होने वाले संभावित विधानसभा चुनाव को लेकर अब राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता अपने नए साथी की तलाश में जहां अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर नफा-नुकसान में जुट गए हैं, वहीं राज्य में नए समीकरण को भी बल मिल रहा है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल जेडीयू और एलजेपी के बीच जहां दिनों दिन तल्खी बढ़ती दिख रही है, वहीं विपक्षी दल के महागठबंधन में शामिल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) की नजदीकी भी जेडीयू
से बढ़ती जा रही है। हालांकि बीजेपी ने अभी इसे लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
बिहार में हालांकि बीजेपी और जेडीयू को छोड़कर कोई भी दल कोरोना काल में चुनाव प्रचार रैली नहीं कर पाया है। एलजेपी के प्रमुख चिराग पासवान लगातार बिहार सरकार में कमियों को सार्वजनिक मंचों से उठाकर जेडीयू से अपनी दूरी को मतदाताओं के बीच ला चुके हैं। चुनाव की आहट सुनकर चिराग स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अचानक पटना पहुंचे और अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर आगे की रणनीति बना ली है। कहा जा रहा है कि ही जल्द ही एलजेपी की संसदीय दल की बैठक होनी है, जिसमें भविष्य को लेकर कुछ आधिकारिक घोषणा की जा सकती है। वैसे, चिराग पासवान दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा से भी मिलकर अपनी बात रख चुके हैं। चुनाव आयोग की चुनाव कराने की तैयारी को देखते हुए सभी दलों ने चुनाव को लेकर तैयारी शुरू कर दी है। यही वजह है कि राजनीतिक दल और नेता अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए नए ठिकाने की तलाश में जुटे हुए हैं।
नाम न छापने की शर्त पर एलजेपी के एक नेता कहते भी हैं, उनका गठबंधन बीजेपी से है। जेडीयू तो गठबंधन में बाद में शामिल हुआ है। सूत्र बताते हैं कि जेडीयू की तरफ से एलजेपी को नजरअंदाज किया जा रहा है, जिस कारण एलजेपी नाराज है। कहा जा रहा है कि एनडीए में होने के बावजूद जेडीयू की तरफ से विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में एलजेपी की अनदेखी की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि एलजेपी चाहती है कि हर हाल में 2015 के विधानसभा चुनाव या 2019 के लोकसभा चुनाव के आधार पर सम्मानजनक सीटें मिलें।
चिराग इस बीच जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव से भी मिल चुके हैं। जबकि पप्पू यादव किसी दलित को बिहार के मुख्यमंत्री बनाने को लेकर अभियान चला रहे हैं। वैसे, सूत्र यह भी कहते हैं कि जेडीयू, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासावन की पार्टी एलजेपी को नाराज नहीं करना चाहती है। पासवान की पहचान बिहार की सियासत में एक दलित नेता की रही है। जेडीयू से नाराजगी के बाद मंत्री रहे श्याम रजक भी आरजेडी में चले गए हैं।
जेडीयू हालांकि इस समीकरण को दुरुस्त करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को अपने पाले में लाने को लेकर व्यग्र दिख रही है। मांझी भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ करते नजर आ रहे हैं। वैसे, बीजेपी अभी तक 'वेट एंड वॉच' की स्थिति में है। बीजेपी, बिहार में किसी भी सहयोगी दल को फिलहाल नाराज नहीं करना चाहती है। बीजेपी के नेता हालांकि खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि एनडीए एकजुट है और सभी दल चुनाव की तैयारी में जुटे हैं।
बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही नेताओं के दल बदल का दौर शुरू हो चुका है। इसी कड़ी में अब तक सबसे बड़ी घटना नीतीश कुमार की कैबिनेट के मंत्री श्याम रजक का जेडीयू से निकाला जाना और उनके आरजेडी में जाने की लगभग तय संभावना है। श्याम रजक बिहार के राज्य स्तर की राजनीति मौसम वैज्ञानिक माने जाते हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि ये केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की तरह अक्सर हवा का रुख भांपने में सफल रहे हैं। यही वजह है कि श्याम रजक लालू यादव के जमाने से ही बिहार सरकार में मंत्री पद को सुशोभित करते रहे हैं।
फुलवारीशरीफ में चाय दुकानों पर इन दिनों होने वाली बातचीत पर ध्यान देने से पता चलता है कि जेडीयू इस बार श्याम रजक का टिकट काटने का मन बना चुकी थी। इस सीट से अरुण मांझी को उम्मीदवार बनाने की तैयारी है। अरुण मांझी अभी से इलाके का दौरा कर रहे हैं। यही बात श्याम रजक को नागवार गुजरी। उन्होंने अरुण मांझी से इस बारे में पूछा तो जवाब आया कि पार्टी का आदेश है आप वहीं जाकर बात करें। श्याम रजक समझ गए कि उन्हें पार्टी साइड में करने की तैयारी में है। इस बार उन्हें आखिरी बार ही मंत्री बनने का सौभाग्य मिला है।
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)